भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब 2014 में देश की सत्ता संभाली थी, तब भारत आर्थिक दृष्टिकोण से अन्य देशों पर अधिक निर्भर था। पीएम मोदी ने देश को आगे बढ़ाने के लिए आत्मनिर्भर भारत अभियान की शुरुआत की। उनका उद्देश्य घरेलू विनिर्माण क्षमताओं को बढ़ाना था। अब मोदी सरकार के नेतृत्व में स्थिति ऐसी हो गई है कि भारत दुनिया के 70 देशों को रक्षा उपकरणों का निर्यात कर रहा है। एक समय में सबसे ज्यादा रक्षा उपकरणों का आयात करने वाला भारत अब रक्षा उपकरणों के निर्यात के क्षेत्र में महाशक्ति के रुप में उभरा है। फिलीपींस के साथ ब्रह्मोस मिसाइल सौदे पर हस्ताक्षर के साथ इस दावे को थोड़ी मजबूती मिली थी। रणनीतिक दृष्टिकोण से देखा जाए, तो भारत दक्षिण पूर्व एशिया में चीन के दुश्मनों को घातक हथियार प्राथमिकता के आधार पर बेच रहा है।
भारत उन्नत हथियार प्रणालियों की खरीद के लिए आयात पर निर्भर है। हालांकि, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में देश ने घरेलू रक्षा निर्माण उद्योग के भीतर होने वाले गतिविधियों में तेजी देखी है। ‘मेक इन इंडिया’ फ्लैगशिप कार्यक्रम के तहत, मोदी सरकार ने भारत के रक्षा उद्योग को व्यवस्थित रूप से मजबूत किया है और अब परिणाम दिखाई दे रहे हैं। चाहे वह ब्रह्मोस हो या LCA तेजस लड़ाकू जेट, भारत उन्हें विभिन्न देशों में निर्यात कर ‘महाशक्ति’ बनने की ओर अग्रसर हो चला है।
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सिंगापुर एयर शो में जलवा दिखाएगा ‘तेजस’
ध्यान देने वाली बात है कि 15 से 18 फरवरी तक सिंगापुर एयर शो 2022 में भाग लेने के लिए तेजस मार्क-1 लड़ाकू विमानों की एक टुकड़ी ने बीते शनिवार को कोयंबटूर में भारतीय वायु सेना (IAF) बेस से सिंगापुर के चांगी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे के लिए उड़ान भरी। सिंगापुर में भारतीय वायु सेना संभावित खरीदारों को यह दिखाकर प्रभावित करेगी कि LCA तेजस विमान कितने कुशल और दमदार हैं।
भारतीय वायु सेना ने एक बयान में कहा, “भारतीय वायुसेना स्वदेशी तेजस मार्क-1 विमान को दुनिया भर के प्रतिभागियों के साथ पेश करेगी। तेजस निम्न-स्तरीय एरोबेटिक्स के अपने प्रदर्शन के साथ दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर देगा। इसके इसकी बेहतर हैंडलिंग विशेषताओं और गतिशीलता को प्रदर्शित करने का मौका मिलेगा।”
भारत वास्तव में मलेशिया को LCA तेजस की बिक्री के लिए एक सौदा हासिल करने की कोशिश कर रहा है। बिजनेस स्टैंडर्ड के मुताबिक, भारतीय वायुसेना रॉयल मलेशियाई वायु सेना (RMAF) से ऑर्डर हासिल करने के लिए कड़ी मेहनत कर रही है, जो अपनी “पॉवर 55” योजना के तहत 36 हल्के लड़ाकू संस्करणों का मिश्रण खरीदना चाह रही है। यह सौदा लगभग 900 मिलियन डॉलर का होगा और भारत के लिए यह जीतना महत्वपूर्ण है, ताकि भारत अपनी रक्षा उपकरणों के बाजार के आधार को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ा सके।
मलेशिया के पास भारत ही है एकमात्र विकल्प
यह जितना आसान दिख रहा है, उतना आसान है नहीं। LCA तेजस को लेकर प्रतिस्पर्धा है। मलेशिया को हल्के लड़ाकू विमान बेचने के लिए भारत के साथ प्रतिस्पर्धा करने वालों में तुर्की, चीन-पाकिस्तान, रूस और दक्षिण कोरिया हैं। मलेशिया, चीन और पाकिस्तान द्वारा पेश किए गए लड़ाकू जेट विमानों को नहीं खरीदने जा रहा है, जिन्होंने कुआलालंपुर को सामूहिक रूप से JF-17 थंडर विमान की पेशकश की है। दक्षिण कोरिया और रूस की ओर से पेश किए गए FA-50 गोल्डन ईगल और मिग-35 रॉयल मलेशियाई वायु सेना के लिए सस्ती नहीं है।
इसलिए मुकाबले में भारत के एलसीए तेजस और तुर्की के हर्जेट लड़ाकू विमान हैं, लेकिन तुर्की ने अभी भी हर्जेट विमान नहीं उड़ाया है, क्योंकि उसका विकास अभी तक जारी है। दूसरी ओर, भारत का LCA तेजस मलेशिया भेजे जाने के लिए तैयार है और वह मलेशियाई वायु सेना के बजट के भीतर ही उनके सभी आवश्यकताओं को पूरा कर सकता है। इसलिए मलेशिया द्वारा LCA तेजस को चुनने की सबसे ज्यादा सम्भावनाएं हैं। वहीं, दूसरी ओर भारत अपने इस एक कदम से दुनिया भर के अधिक से अधिक देशों, विशेष रूप से दक्षिण पूर्व एशिया में रक्षा उपकरणों का निर्यात तेजी से शुरु कर सकता है।
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भारतीय रक्षा उद्योग के ढ़ांचे को बदल रही है मोदी सरकार
गौरतलब है कि मोदी सरकार धीरे-धीरे भारतीय रक्षा उद्योग के ढांचे को बदल रही है। टाटा और अडानी जैसी बड़ी निजी कंपनियों को इस क्षेत्र में जगह देने से लेकर आयुध निर्माणी बोर्ड में सुधारों पर जोर देने तक, पीएम मोदी ने यह सब करके दिखाया है। अब सरकार का ध्यान स्वदेशी रक्षा स्टार्टअप पर है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि रक्षा मंत्रालय की ऐसे स्टार्टअप्स से उपकरण खरीदने की बड़ी योजना है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इस वित्तीय वर्ष के बजट में घोषणा करते हुए कहा था कि रक्षा स्टार्टअप के लिए पूंजीगत व्यय का 68 फीसदी, भारतीय कंपनियों को जाएगा।
अब तक, लगभग सभी रक्षा अनुसंधान और विकास (R&D) फंड पीएसयू और रक्षा मंत्रालय के तहत अन्य विभागों में जाते थे। हालांकि, वित्त मंत्रालय ने घोषणा करते हुए कहा कि इस साल की शुरुआत में, रक्षा अनुसंधान एवं विकास का 25 प्रतिशत, उद्योग, स्टार्टअप और शिक्षाविदों को जाएगा, इस प्रकार निजी खिलाड़ियों के लिए उपलब्ध धन के पूल का विस्तार होगा। आने वाले वर्षों में इस तरह के फैसलों से देश के रक्षा निर्माण क्षेत्र को काफी मजबूती मिलेगी, जो दुनिया भर के खरीदारों को आकर्षित करेगा। आज उठाए जा रहे कदम, निकट भविष्य में वैश्विक महाशक्ति के रूप में भारत की स्थिति को मजबूत करेंगे।