‘ जब नाश मनुज पर आता है , पहले विवेक हर जाता है ‘ यह पंक्ति वर्तमान समय में काँग्रेस पर सटीक बैठती है। पहले तो सत्ता विहीन हुई कांग्रेस अब नेता विहीन होने की कगार पर खड़ी है | कांग्रेस के अंदर ही एक ऐसा गुट है जो कांग्रेस आलाकमान के न निगलते बन रहा और न उगलते, अर्थात काँग्रेस के वो नेता जिन्हें सोनिया गाँधी न अपना पा रही हैं, और खैर निकालने का ख्वाब तो छोड़ ही दीजिए । यह सब इसलिए कठिन हो रहा है क्योंकि यह गुट जी-23 नेताओं का वो गुट है, जिसने काँग्रेस को बार-बार गिरने और ध्वस्त होने से बचाने का प्रयास किया। इन सभी नेताओं का मूल एजेंडा पार्टी को पुनर्जीवित करना था, परंतु सोनिया गांधी की सोच है ,कि कांग्रेस की कमान गांधी परिवार के से बाहर जा नहीं जानी चाहिए । यही कारण है कि यह सभी जी-23 गुट के नेता बीते 8 वर्षों से स्वयं को उपेक्षित महसूस कर रहे हैं । अब जब यह भिड़ंत जगजाहिर हो गई है, तो सोनिया गांधी मान-मनौव्वल की तैयारी कर चुकी हैं। उन्होंने नेतृत्व परिवर्तन को एक बार पुनः टालने का निर्णय तो लिया है , पर एक आशा पीछे छोड़ दी कि है, कि राष्ट्रपति चुनाव उपरांत इस पर बात की जाएगी। ऐसे में डूबती कांग्रेस को पुनर्जीवित करने के अंतिम प्रयास में, सोनिया गांधी ने विद्रोही जी 23 समूह की ओर आशान्वित होकर पहुँची हैं ।
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परिवारवादी मानसिकता है कांग्रेस की बर्बादी का कारण
कांग्रेस पार्टी को उसकी परिवारवादी सोच ने इस हद तक बर्बाद कर दिया है, कि आज उसके नेता अपनी बात रखने से पहले यह सोचते हैं, कि गुटों में विभाजित कांग्रेस के किस गुट की बात को सही मानकर सबके सामने रखा जाए। एक गुट बार-बार चाटुकारिता में परिवार की जी -हुजूरी करने को अपना कर्तव्य मानता है, तो दूसरा गुट पार्टी को पुनः खड़ा करने के लिए नेतृत्व परिवर्तन को आखिरी विकल्प के तौर पर देखता है। इसी क्रम में बीते लंबे अंतराल से इस जी-23 गुट के नेताओं ने सार्वजनिक रूप से अथवा पत्रों के माध्यम से कांग्रेस आलाकमान से यह आग्रह किया कि पार्टी को जीवंत करने के लिए सबसे बड़ा कदम उठाने की आज आवश्यकता है, नहीं तो जल्द ऐसा समय आएगा जब कांग्रेस को कार्यकर्ता मिलना भी मुश्किल हो जाएगा ।
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सोनिया गांधी ने की आपस में तालमेल बिठाने की बात
इसी बीच कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने जी-23 नेताओं से मिलकर हाल ही में कहा है, कि पार्टी की समस्याओं पर उनकी चिंता को समझा गया था | लेकिन उन्हें पार्टी के ढांचे में किसी भी बदलाव के लिए संगठनात्मक चुनावों की प्रतीक्षा करनी होगी, जैसा कि उन्होंने मांग की थी। जैसा कि जी 23 के एक प्रतिनिधि दल ने मंगलवार को असंतुष्ट समूह को शांत करने के लिए सोनिया गांधी से मुलाकात की थी , उन्होंने अपनी चिंताओं को दोहराया कि कैसे वे पार्टी के समर्थन, जमीनी आधार में गिरावट को तथा चुनावी विफलताओं के कारणों को किस रूप में देखते हैं। सूत्रों की मानें तो इस बार सोनिया ने धैर्यपूर्वक नेताओं को सुना और पार्टी के प्रदर्शन में गिरावट के बारे में उनकी बेचैनी का आंकलन भी किया। हालांकि, उन्होंने सदस्यों से कहा कि उन्हें आंतरिक चुनावों का इंतजार करना चाहिए, जो सिर्फ तीन महीने दूर हैं। दिलचस्प बात यह है , कि उन्होंने यह भी कहा था कि जी-23 द्वारा भेजे गए कुछ प्रस्तावों के खिलाफ मजबूत जवाबी तर्क थे, और उन्हें दोनों पक्षों में सामंजस्य बिठाना होगा। कांग्रेस के आंतरिक चुनाव सितंबर में होने हैं। साथ ही सोनिया गांधी ने जी 23 नेताओं से पार्टी के खिलाफ सार्वजनिक रूप से बोलने के संबंध में भी बात की है। जो कि पिछले काफी समय से आम हो गया था ।
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G23 नेताओं को पुनः पार्टी की मुख्यधारा में जोड़ने का प्रयास
इन सभी के बीच जिस बात पर सबसे अधिक ध्यान केंद्रित रहा वह है , G-23 गुट को पुनः पार्टी की मुख्यधारा में जोड़ना। कांग्रेस आलाकमान को देर सवेर ही सही, लेकिन अब पछतावा हो रहा है, कि उनकी परिवारवादी मानसिकता ने पार्टी को इतनी लचर हालात में ला दिया है, हालत यह है कि आज काँग्रेस को विपक्षी पार्टी का तमगा बचाने के लिए भी संघर्ष करना पड़ रहा है। ऐसे में राष्ट्रपति चुनाव तक नेतृत्व परिवर्तन को टालने के साथ- साथ जी-23 को साधने का ये प्रयास कितना कामयाब होता है, वह तो समय ही बताएगा पर यह तो तय है, कि कांग्रेस हाईकमान को यह समझ आ गया है, कि पार्टी संगठन से चलती है, परिवार से नहीं।