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पंजाब जीत के बाद अब AAP का होगा बंटाधार, केजरीवाल लेंगे राजनीतिक संन्यास!

AAP का टूटना तय है!

Aniket Raj द्वारा Aniket Raj
11 March 2022
in मत
Kejriwal

Source- Google

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अरविंद केजरीवाल का विवादों से पुराना नाता रहा हैं, पर जो भी हो इस आदमी ने अकेले दम पर पंजाब में 92 सीट जीत लिया है। 117 सदस्यीय पंजाब के विधानसभा में 92 सीटें जीतना निश्चित रूप से कोई आसान उपलब्धि नहीं थी। दरअसल, चुनाव में विजय उपरांत किसी पार्टी का सर्वोच्च नेता सबसे ज्यादा सुखी, निश्चिंत और सुरक्षित महसूस करता है लेकिन केजरीवाल के संदर्भ में ऐसा नहीं है, क्योंकि पंजाब में आम आदमी पार्टी की प्रचंड जीत से केजरीवाल की मुश्किलें प्रचंड रूप से बढ़ गई हैं। ऐसा हो सकता है उन्हें आम आदमी पार्टी से बाहर भी निकाल फेंका जाए या फिर यह जीत आम आदमी पार्टी में गृह युद्ध भी छेड़ सकती है। वैसे भी आम आदमी पार्टी के परंपरा, प्रतिष्ठा और अनुशासन में अपने सम्मानित नेताओं को पार्टी से निकाल फेंकना रीति-नीति रही है।

केजरीवाल के साथ भी अगर कुछ ऐसा ही हो जाए तो कोई नई बात नहीं होगी। अब हम ऐसा क्यों कह रहे हैं, इसके पीछे के तर्को और तथ्यों से आपको अवगत करा देते हैं और वैसे भी राजनीति संभावनाओं का ही खेल है। संभावनाएं और समीकरण बनते बिगड़ते रहते हैं। आज का राजा कल का रंक और फकीर भी हो सकता है। इस आर्टिकल में हम विस्तार से जानेंगे कि आखिर क्यों पंजाब में आम आदमी पार्टी को मिली बड़ी जीत न सिर्फ केजरीवाल के लिए बड़ा सिरदर्द साबित होगी, बल्कि उन्हें एक दोयम दर्जे का मुख्यमंत्री भी सिद्ध कर सकती है?

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केजरीवाल का अहंकार

हम सभी जानते हैं कि केजरीवाल राजनीतिक रूप से एक महत्वाकांक्षी व्यक्ति हैं। सत्ता ही उनका एकमात्र सिद्धांत है। हम लोगों के मन में हमेशा से एक भ्रम रहा है कि केजरीवाल एक प्रशासनिक व्यक्ति या फिर एक सामाजिक कार्यकर्ता है, पर ऐसा नहीं है। केजरीवाल ने एक कपटी राजनेता की तरह इन दोनों चीजों का इस्तेमाल, जनता को दिग्भ्रमित करके सत्ता हासिल करने के लिए किया है। उन्होंने अन्ना हजारे, प्रशांत भूषण, आशीष खेतान और कुमार विश्वास सरीखे नेताओं का प्रयोग कर लोकपाल के मुद्दे को एक बड़े जनआंदोलन में परिवर्तित किया और उन्हें ही पार्टी से निकाल दिया। योगेंद्र यादव और कपिल मिश्रा जैसे इसके संस्थापक सदस्यों को भी केजरीवाल ने निकाल फेंका और ऊपर से जन लोकपाल के अपने वादे को वो आज तक पूरा नहीं कर सके, पर इस भ्रमजाल के माध्यम से वह सत्ता के शिखर पर अवश्य पहुंच गए। पर, अभी भी उनके मन से राजनीतिक सर्वोच्चता को प्राप्त करने की अभिलाषा गई नहीं है।

महत्वाकांक्षा के भूखे हैं केजरीवाल

केजरीवाल भी जानते हैं कि दिल्ली एक केंद्रशासित प्रदेश है और केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त गवर्नर के अधीन इसकी प्रशासनिक और पुलिस व्यवस्था है। उनके जिम्मे सिर्फ जनता का विकास और कल्याणकारी योजनाओं से जुड़े मुद्दे हैं। परंतु स्वयं को तथाकथित सामाजिक कार्यकर्ता और आम आदमी के रूप में चिन्हित करने वाले केजरीवाल दिल्ली के मुख्यमंत्रीपद से खुश नहीं हैं, क्योंकि वो बस दिखावे के सीएम है। वह ज्यादा से ज्यादा ताकत और पुलिस तथा प्रशासनिक व्यवस्था पर अपना कब्जा चाहते हैं। इसीलिए, वह दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा भी दिलवाना चाहते हैं, पर केंद्र में मोदी सरकार के रहते ऐसा नहीं हो सकता है। अतः केजरीवाल दिल्ली के बाहर के किसी राज्य पर अपना नियंत्रण स्थापित करने के लिए आतुर हैं और वह राज्य है-पंजाब।

और पढ़ें: केजरीवाल के प्रधानमंत्री बनने के सपने को बर्बाद कर रहे हैं कुमार विश्वास!

भगवंत मान बनाम केजरीवाल की लड़ाई होगी शुरू

पंजाब जीतने के बाद अब भगवंत मान राज्य के मुख्यमंत्री बनेंगे और वो वहां के निर्विवाद नेता होंगे। उनके पास केजरीवाल से भी 20-30 अधिक विधायकों का समर्थन होगा। इससे दिल्ली से बाहर आम आदमी पार्टी के लिए एकमात्र लोकसभा सीट हासिल करने वाले भगवंत मान का कद काफी बढ़ जाएगा। वैसे भी भगवंत मान के प्रभाव के आगे पंजाब में केजरीवाल की एक नहीं चलती। हालांकि, केजरीवाल पंजाब पर कब्जा करना चाहते हैं, पर उनके इस रास्ते में सबसे बड़ा रोड़ा भगवंत मान ही हैं। केजरीवाल की महत्वाकांक्षा का खुलासा कुमार विश्वास भी कर चुके हैं। जिसमें उन्होंने कहा था कि जब पंजाब में खालिस्तानी ताकतों का समर्थन करने के लिए उन्होंने केजरीवाल को रोका तो केजरीवाल ने कहा कि या तो वह पंजाब के मुख्यमंत्री बनेंगे या फिर स्वतंत्र खालिस्तान के प्रथम प्रधानमंत्री। उनकी इसी कथन से उनके कुटिल नियत और गलत उद्देश्य का पर्दाफाश होता है।

पर, अपने इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए उन्होंने कठिन श्रम भी किया है। शायद इसीलिए पंजाब में केजरीवाल को प्रचंड बहुमत मिली है अन्यथा किसान आंदोलन का समर्थन तो कांग्रेस और अकाली दल के नेताओं ने भी किया था और विकास के मुद्दे पर भी पंजाब में आम आदमी पार्टी ने कोई अप्रत्याशित झंडे भी नहीं गाड़े, पर जीत उसे ही मिली है। मतलब साफ है, केजरीवाल ने खालिस्तानियों का समर्थन प्राप्त कर पंजाब में आम आदमी पार्टी के लिए अंडरकरेंट का निर्माण किया और जीत हासिल की। हालांकि, इसमें एक पेंच भी है। भगवंत मान भी राजनीतिक रूप से कोई नादान व्यक्ति नही हैं और महत्वाकांक्षा उनकी भी उतनी ही है जितनी केजरीवाल की है। उन्होंने कई मौकों पर केजरीवाल को अपनी बात मानने के लिए मजबूर किया है। अपनी राह में रोड़ा बनने वाले गुरप्रीत गोगी को उन्होंने जबरदस्ती आम आदमी पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया था। यहां तक कि मजीठिया से माफी मांगने के मुद्दे पर उन्होंने केजरीवाल को स्पष्टीकरण तक देने के लिए बाध्य कर दिया।

और पढ़ें: रूस-यूक्रेन संकट का असर – भारत करेगा चार गुना ज्यादा अनाज निर्यात

भगवंत मान के सामने केजरीवाल की लाचारगी तब दिखी जब न चाहते हुए भी केजरीवाल को आम जनसभा के सामने प्रत्यक्ष रुप से भगवंत मान को आम आदमी पार्टी कामुख्यमंत्री चेहरा घोषित करने के लिए बाध्य होना पड़ा था। अब इन्हीं दोनों की महत्वकांक्षा आम आदमी पार्टी में कलह का कारण बनने वाली है और इस लड़ाई में घी डालने का काम आम आदमी पार्टी के ही दिग्गज नेता करेंगे, जो केजरीवाल और भगवंत मान से खार खाए बैठे हैं या फिर वो जो आम आदमी पार्टी में और अधिक ताकत और रुतबा हासिल करना चाहते हैं, जैसे कि मनीष सिसोदिया और संजय सिंह सरीखे नेता। ये नेता या तो भगवंत मान की मदद करेंगे या फिर केजरीवाल की, ताकि उनका रास्ता साफ हो सके। भगवंत मान की छवि एक दारूबाज और अक्षम नेता के रूप में है, जबकि विकास का ढोंग करने वाले केजरीवाल के विकास पुरुष की छवि भी ठंडी पड़ चुकी है। सार्वजनिक रूप से कमजोर हो चुके यह दोनों नेता पार्टी को न सिर्फ कमजोर करेंगे, बल्कि तोड़ भी देंगे। तो तैयार हो जाइए आनेवाले समय में आम आदमी पार्टी का विघटन और गृहयुद्ध देखने के लिए।

Tags: अरविंद केजरीवालआम आदमी पार्टीपंजाबभगवंत मान
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