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‘वामपंथी चिंटुओं’ को साइड करिए, ‘परिवारवाद’ और ‘फ्री-बांटो मॉडल’ से बर्बाद हुआ श्रीलंका

‘वामपंथी मठाधीशों’ ने श्रीलंका की ‘बर्बादी’ में भी राष्ट्रवाद को गरियाने का मौका ढूंढ लिया।

Chaman Kumar Mishra द्वारा Chaman Kumar Mishra
12 May 2022
in चर्चित, समीक्षा
‘वामपंथी चिंटुओं’ को साइड करिए, ‘परिवारवाद’ और ‘फ्री-बांटो मॉडल’ से बर्बाद हुआ श्रीलंका

Source: TFI

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श्रीलंका की स्थिति हर दिन ख़राब होती जा रही है. आर्थिक मोर्चा पर बुरी तरह बर्बाद होने के बाद श्रीलंका में हिंसा हो रही है. प्रदर्शनकारी सड़कों पर सरकार के विरोध में नारेबाजी कर रहे हैं. आगजनी कर रहे हैं. तोड़फोड़ कर रहे हैं. श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे ने देश में आपातकाल लगाया हुआ है. प्रदर्शनकारियों को देखते ही गोली मारने के आदेश जारी किए गए हैं.

इसके बाद भी प्रदर्शनकारी सड़कों पर हैं. भारी विरोध के बीच प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे ने इस्तीफा दे दिया. इसके बाद भी प्रदर्शनकारियों का गुस्सा शांत नहीं हुआ. राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे का घर प्रदर्शनकारियों ने आग के हवाले कर दिया. देखते-देखते राष्ट्रपति का पैतृक आवास राख में बदल गया.

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श्रीलंका में ऐसी स्थिति अचानक नहीं बनी है. पिछले करीब 1 महीने में श्रीलंका की स्थिति हर दिन बिगड़ी है. इसके पीछे कई कारण हैं. श्रीलंका में बीते दो सालों में विदेशी मुद्रा भंडार में 70% से ज्यादा की गिरावट आई है. महंगाई दर 17 फीसदी पार कर चुकी है. यह आंकड़ा दक्षिण एशिया के किसी भी देश में महंगाई का सबसे भयानक स्तर है.

और पढ़ें: श्रीलंका मामले पर भारत यह सुनिश्चित कर रहा है कि राजीव गांधी वाली ‘गलतियां’ न दोहराई जाए

वामपंथियों ने ढूंढ लिया नफरती एजेंडा

श्रीलंका में 1 कप चाय की कीमत 100 रुपये से ऊपर है. चीनी 300 रुपये किलो तो चावल 500 रुपये किलो है. खबरों के अनुसार, अभी श्रीलंका में एक पैकेट ब्रेड की कीमत 150 रुपये से ऊपर है. इसी तरह से दूसरी चीजों के दाम भी बढ़े हुए हैं.

श्रीलंका में आग लगी है और भारत के वामपंथी, कांग्रेसी और तथाकथित उदारवादियों ने इसमें भी अपना नफरती एजेंडा ढूंढ लिया. श्रीलंका के मामले को बताते हुए वामपंथी लिख रहे हैं कि भारत भी श्रीलंका की तरह बर्बाद हो जाएगा. तथाकथित उदारवादी कह रहे हैं कि भारत की स्थिति भी श्रीलंका की तरह हो जाएगी.

इसके बाद धुर्त कम्युनिस्ट एक तर्क भी रहे हैं- उनका कहना है कि श्रीलंका में भी राष्ट्रवाद की ऐसी ही लहर चल रही थी, जैसी भारत में चल रही है. तथाकतिथ उदारवादियों की नेता सागरिका घोष का कहना है कि श्रीलंका प्रदर्शन संदेश देता है कि जब आर्थिक संकट आता है तो बाहुबली राष्ट्रवाद और बहुसंख्यकवादी राजनीति कोई समाधान नहीं है.

Message from #SriLankanProtests : muscular nationalism and majoritarian politics is no solution when an economic crisis explodes. Identity politics won’t feed hungry stomachs! #SrilankanCrisis #SriLanka

— Sagarika Ghose (@sagarikaghose) May 11, 2022

 

युवा कांग्रेस के अध्यक्ष श्रीनिवास बीवी ने ट्वीट करते हुए लिखा कि जिस ‘राष्ट्रवाद’ का टॉनिक आज सरकार और मीडिया सभी हिंदुस्तानियों को पिला रही है, वही ‘राष्ट्रवाद’ का टॉनिक महिंदा राजपक्षे ने श्रीलंका के लोगों को पिलाकर सत्ता हासिल की थी।

और पढ़ें: श्रीलंका को आर्थिक संकट से बचाना केवल भाईचारा मात्र नहीं है, भारत के पास है ‘long term strategy

 

जिस 'राष्ट्रवाद' का Tonic आज सरकार और मीडिया सभी हिंदुस्तानियों को पिला रही है,

वही 'राष्ट्रवाद' का Tonic महिंदा राजपक्षे ने श्रीलंका के लोगों को पिलाकर सत्ता हासिल ली थी,

आज श्रीलंका की परिस्थिति सामने है, और हम सभी को वक्त रहते सीखने के लिए बहुत कुछ..

जाग जाओ या तैयार रहो..!

— Srinivas BV (@srinivasiyc) May 10, 2022

 

अर्बन नक्सल स्वरा भास्कर इस पर ना बोलें ऐसा हो नहीं सकता- स्वरा भास्कर ने कई ट्वीट, रिट्वीट किए हैं. सभी ट्वीट्स का सार यही है कि भारत श्री लंका बन जाएगा.

Sri Lanka Burma India

No country grows where men like these are free to do what they do! pic.twitter.com/fX36nhxp5P

— Alishan Jafri (@alishan_jafri) May 10, 2022

 

ख़ुद को पत्रकार कहने वाली रोहिणी सिंह ने भी एक ट्वीट को रिट्वीट करते हुए जो बोला है उसका सार यही है कि आज जो भारत में हो रहा है, वही श्रीलंका में हो रहा था-

Rasta wahi, manzil wahi. pic.twitter.com/esVZ5RE14Y

— Rofl Gandhi 2.0 🏹 (@RoflGandhi_) May 10, 2022

 

न्यूज़ चैनलों में भूत-प्रेत लाने वाले और कोरोना की महामारी में लाशों पर डॉक्यूमेंट्री बनाकर कमाई करने वाले अर्बन नक्सल जो ख़ुद को फ़िल्मकार भी कहते हैं विनोद कापड़ी ने भी जो ट्वीट किया है, उसका भी यही सार है कि राष्ट्रवाद की वज़ह से श्रीलंका में यह सब हो रहा है.

विनोद कापड़ी का ट्वीट

वामपंथी गुर्गों के मठाधीश रवीश कुमार ने भी इसको लेकर एक बहुत बड़ा लेख लिखा है…मठाधीश रवीश कुमार के पूरे लेख का सार यही है कि जनता ही ग़लत है…जनता में बुद्धि नहीं है.

और पढ़ें: राजीव गांधी की हत्या के बाद से ही टूट गया था श्रीलंकाई तमिलों से नाता, अब पीएम मोदी इसे संवार रहे हैं

 

इस देश के कांग्रेसियों ने, तथाकथित उदारवासियों ने, वामपंथियों ने बहुत वर्षों तक ऐसे ही झूठ का डर दिखा-दिखाकर देश की बहुसंख्यक आबादी को डराकर रखा है. इन सभी चिंटुओं के अनुसार श्रीलंका में जो हो रहा है वैसा ही भारत में भी हो सकता है. हालांकि इन मठाधीशों को इतनी बेसिक समझ नही है कि आज श्रीलंका में जो भी हो रहा है उसका कारण राजनीतिक सत्ता पर राजपक्षे परिवार का एकाधिकार और ग़लत आर्थिक नीतिया हैं.

राजपक्षे परिवार का एकाधिकार

राजपक्षे परिवार श्रीलंका की राजनीति में वैसा ही घुसा हुआ है जैसे एक वक्त में गांधी परिवार भारत की राजनीति में घुसा हुआ था. परिवारवाद ने श्रीलंका को इस स्थिति तक पहुंचाया है. वर्तमान में राजपक्षे परिवार के आधा दर्जन से ज्यादा सदस्य श्रीलंका की केंद्रीय सरकार में शामिल हैं-

श्रीलंका के राष्ट्रपति- गोटाबाया राजपक्षे

पूर्व प्रधानमंत्री- मंहिंदा राजपक्षे (हाल ही में इस्तीफा दिया)

पूर्व गृह मंत्री- चमल राजपक्षे

पूर्व वित्त मंत्री- बासिल राजपक्षे

पूर्व खेल और तकनीक मंत्री- नमल राजपक्षे (महिंदा राजपक्षे के बेटे)

पूर्व कृषि मंत्री- शाशेंन्द्र राजपक्षे (चमल राजपक्षे के बेटे)

Source: TOI

 

और पढ़ें: श्रीलंका से कच्चातीवु द्वीप वापस लेने का यही है सही समय

 

ग़लत आर्थिक नीतियां

ऑर्गेनिक खेती

सरकार ने फैसला लिया कि श्रीलंका केवल ऑर्गेनिक खेती करने वाला दुनिया का पहला देश होगा। इस आदर्श को प्राप्त करने के लिए सरकार ने रासायनिक उर्वरकों के आयात पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया। इससे उत्पादन में भारी कमी हो गई और किसानों को भारी नुकसान हुआ।

टैक्स कम करने से हुआ नुकसान

लोगों की नजर में बेहतर होने के लिए सरकार ने टैक्स दरें घटाकर आधा कर दीं। केवल 15 फीसदी का टैक्स लेने से सरकार को प्रति वर्ष 60 हजार करोड़ रुपये का भारी नुकसान हुआ।

कोरोना ने तोड़ी कमर

श्रीलंका की अर्थव्यवस्था का लगभग 10 फीसदी अकेले पर्यटन से आता है। कोरोना काल में प्रतिबंधों के कारण दूसरे देशों के पर्यटक श्रीलंका नहीं आ सके। इससे उसे कोई कमाई नहीं हुई और उसे डॉलर में कोई आय नहीं हुई।

इस तरह से देखें तो हमें साफ दिखता है कि परिवारवाद और फ्री बांटों मॉडल ने श्रीलंका को आज यहां तक पहुंचाया. लोगों का वोट लेने के लिए- लोगों की नज़रों में अच्छा बना रहने के लिए वहां की सरकार ने टैक्स कम कर दिया. लोगों को चीज़ें मुफ्त दी गईं. परिणाम यह हुआ कि देश की अर्थव्यवस्था ढह गई. यही काम हिंदुस्तान में दिल्ली के मालिक अरविंद केजरीवाल करते हैं.

फ्री बांटो मॉडल को वो देश भर में अब लेकर जा रहे हैं लेकिन वामपंथी चिंटू उस पर सवाल नहीं उठाएंगे. परिवारवाद को कांग्रेस, समाजवादी पार्टी समेत तमाम क्षेत्रीय पार्टियां लेकर चलती हैं लेकिन वामपंथी चिंटू उस पर भी सवाल नहीं उठाएंगे- हमारे प्यारे वामपंथी चिंटू तो बस हर उस चीज पर प्रश्न खड़ा करेंगे जिसमें मोदी की आलोचना करने को मिले. तो आप लगे रहिए- देश को सच हम बताते रहेंगे.

और पढ़ें: ऋण संकट: देश के कई बड़े राज्य मिनी श्रीलंका बनने की ओर अग्रसर हो चले हैं

 

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