भारत विश्व शांति और मानव कल्याण के प्रति समर्थक देश है. हमने हमेशा शांति और बंधुत्व का सन्देश दिया है. शायद इसीलिए हमने पूरे विश्व में सैन्यदूत की जगह शांतिदूत भेजे, पर इसका खामियाजा हमें रक्त चुकाकर भरना पड़ा क्योंकि विश्व ने हमारी ही वैज्ञानिकता और तकनीक का प्रयोग रक्तपात करने और देशों को जीतने के लिए किया. इसके भुक्तभोगी हम भी रहे. इस्लामिक लुटेरे जीते क्योंकि उनके पास बारूद था. अंग्रेज़ जीते क्योंकि उनके पास और भी उन्नत तोपखाना था. चीनी जीते क्योंकि १९६२ (1962) में उनके पास आधुनिक हथियार थे, तो हमारे पास सिर्फ शौर्य.
किन्तु, भारत ने अब अपने इसी इतिहास से सीख ले ली है और अपने सेना को ‘मेटावर्स’ तकनीक से प्रशिक्षित करने जा रही है. इस कदम को आगे बढ़ाते हुए सेना प्रशिक्षण कमान ने 13 मई को नई दिल्ली में ‘वारगेम रिसर्च एंड डेवलपमेंट सेंटर’ विकसित करने के लिए गांधीनगर स्थित राष्ट्रीय रक्षा विश्वविद्यालय (आरआरयू) के साथ एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए. इस परियोजना का प्रोटोटाइप नाम ‘वार्डेक’ है. यह भारत में अपनी तरह का पहला सिमुलेशन-आधारित प्रशिक्षण केंद्र होगा जो वर्चुअल रियलिटी वॉरगेम्स को डिजाइन करने के लिए कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) का उपयोग करेगा.
और पढ़ें: भारतीय सेना में कमांडिंग अधिकारियों की पदोन्नति अब ‘अनुभव’ नहीं ‘कौशल’ से तय होगी
वॉरगेम सेंटर किस बारे में है?
आइये हम आपको संक्षेप में इसका अर्थ समझाते हैं. इस सेंटर (वॉरगेम रिसर्च एंड डेवलपमेंट सेंटर) का इस्तेमाल सेना द्वारा “मेटावर्स-सक्षम गेमप्ले” के माध्यम से अपने सैनिकों को प्रशिक्षित करने और उनकी रणनीतियों का परीक्षण करने के लिए किया जाएगा. कुल मिलाकर यह काल्पनिक युद्धक्षेत्र सेना को वास्तविक युद्धक्षेत्र से भी ज्यादा असली लगेगा. इससे हमारे सैनिको को कम संसाधन में एकदम वास्तविक युद्धाभ्यास का अनुभव होगा. युद्ध के मॉडल को युद्धों के साथ-साथ आतंकवाद और आतंकवाद विरोधी अभियानों के लिए तैयार करने के लिए डिज़ाइन किया जाएगा.
केंद्र कहां और कब बनेगा?
केंद्र सरकार नई दिल्ली में इसी प्रकार का एक सैन्य क्षेत्र बनाएगी. आरआरयू के अधिकारियों ने इसकी पुष्टि की. आरआरयू आने वाले तीन से चार महीनों में इस केंद्र को विकसित करने के लिए टेक महिंद्रा के साथ भी हाथ मिला सकता है. गृह मंत्रालय (एमएचए) के तहत आनेवाला यह संस्थान (आरआरयू) राष्ट्रीय सुरक्षा और पुलिसिंग में माहिर है. राष्ट्रीय महत्व का यह संस्थान गांधीनगर के लवड गांव में स्थित है जिसको यह दर्जा संसद के एक अधिनियम द्वारा दिया गया है. ये अनुकरण अभ्यास कैसे चलेगा? आरआरयू के एक अधिकारी ने कहा, “मेटावर्स में सैनिकों को यथास्थिति का वास्तविक अनुभव मिलेगा. अगर 5 किलो वजन का हथियार गिरता या हवा का दबाव गिरता है, तो उन्हें ऐसा लगेगा जैसे यह असल घटना वास्तविक समय में हो रही है।“
कितने देश ऐसे युद्धाभ्यास का उपयोग करते हैं?
बताते चलें कि 9/11 के हमलों के बाद से सूचना प्रौद्योगिकी-सक्षम वॉरगेमिंग का उपयोग अमेरिका, इज़राइल, यूके जैसे कई देशों द्वारा आतंकवादी हमलों या युद्ध के मामले में संभावनाओं के लिए तैयार करने के लिए किया गया है. मार्च 2014 में पूर्व जर्मन चांसलर एंजेला मर्केल, पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग सहित कई विश्व नेताओं ने हेग शिखर सम्मेलन के दौरान एक परमाणु हमले के मामले में प्रतिक्रिया करने के तरीके के बारे में एक युद्ध सिमुलेशन खेल खेला था. उस मामले में परमाणु हमले का लक्ष्य ब्रिनिया नाम का एक काल्पनिक देश था. ध्यान देने वाली बात है कि सशस्त्र बलों के अलावा बीएसएफ, सीआरपीएफ, सीआईएसएफ, आईटीबीपी और एसएसबी भी बेहतर प्रशिक्षण के लिए मेटावर्स-सक्षम सिमुलेशन अभ्यास का उपयोग कर सकते हैं. एआई का उपयोग पूरी तरह से तल्लीन करने वाला प्रशिक्षण अनुभव प्रदान कर सकता है क्योंकि यह वास्तविकता के करीब एक युद्ध के मैदान का अनुकरण कर सकता है और युद्ध की संभावित घटना में कई घटनाओं का मानचित्रण कर सकता है. सरकार का यह कदम बेहद प्रशंसनीय है.
और पढ़ें: दुनिया का कोई भी देश भारतीय सेना को पर्वतीय युद्ध में मात नहीं दे सकता