बिहार में नीतीश सरकार द्वारा लाई गई शराबबंदी आज पूरी तरह से फ्लॉप हो गया है। आज बिहार में शराब माफियाओं का राज आ चुका है। बिहार में आज शराब माफिया ही नहीं बल्कि पुलिस भी शराब व्यापार में संलिप्त पाए जाते हैं। आपको बतादें कि आज फिर से नीतीश सरकार में पुलिस का शराब काण्ड देखने को मिल रहा है। दरअसल बिहार के मुजफ्फरपुर जिले में एक सहायक पुलिस उप निरीक्षक को पुलिस थाने के अंदर कथित तौर पर शराब पीने के आरोप में बुधवार को निलंबित कर दिया गया। जिले के मीनापुर थाने में तैनात एएसआई रामचंद्र पंडित ने मंगलवार की रात में कथित तौर पर शराब का सेवन किया। उस पर थाने के लॉकअप में एक कैदी को कथित तौर पर शराब पिलाने का भी आरोप है। मुजफ्फरपुर के एसएसपी जयंत कांत ने कहा कि कानून सबके लिए समान है।
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शराबबंदी होने के कारण बिहार में शराब का व्यापार और सेवन पूरी तरह से प्रतिबंधित है। दरअसल घटना का पता तब चला जब मीनापुर के एसएचओ सियाराम यादव को पता चला कि एक एएसआई थाने के अंदर शराब पी रहा था। वह जल्द ही थाने पहुंचा और नशे की हालत में उसे दबोच लिया। पंडित का ब्रेथ एनालाइजर टेस्ट किया गया जिसमें शराब के अंश पाए गए। हालांकि एसएचओ ने कहा कि उन्होंने लॉकअप में बंद कैदियों को शराब नहीं दी थी। एसएचओ द्वारा पकड़े जाने के बाद पंडित ने माफी मांगी। उन्होंने कहा कि उनके पास सिर्फ 7 साल की सेवा बाकी है और यह पहला आरोप था जिस पर वह अब सामना कर रहे हैं।
पुलिस का शराब माफियाओं के साथ संलिप्तता पाया जाता रहा है
पंडित ने यह भी दावा किया कि वह एक शादी समारोह में गए थे जहां लोगों के एक समूह ने उन्हें शराब की पेशकश की, और उन्होंने कुछ पी लिया। उन्होंने वरिष्ठ अधिकारियों से उनके अपराध के लिए उन्हें माफ करने का भी आग्रह किया। यह पहला केस नहीं है जब किसी पुलिस वाले के ऊपर शराब पीने का केस हुआ हो। शराबबंदी के कई सालों बाद भी पुलिस का शराब माफियाओं के साथ संलिप्त पाया जाता है। आज इस शराब व्यापार ने न लोगों को दिवालिया बना दिया है बल्कि कई लोगों के जीवन में अंधकार कर दिया है। पहले जो व्यक्ति शराब के लिए 100 रुपये खर्च करते थे, वे अब अपनी गाढ़ी कमाई से 200 रुपये अवैध शराब खरीदने के लिए तैयार हैं। आज जिस तरह से तस्कर शराब की तस्करी कर रहे हैं, वह पुलिस अधिकारियों की सहायता के बिना संभव नहीं है। और जल्द ही उनके झूठ का पर्दाफाश होने लगा।
बिहार में शराबबंदी को लेकर बहुत ही सख्त कानून बना हुआ है । कानून इतना सख्त है कि अगर आपका बिहार में घर है और कोई आपके घर में शराब की बोतल फेंकता है, और पुलिस पकड़ लेती है, तो पुलिस आपको अवैध रूप से शराब रखने के आरोप में गिरफ्तार कर लेगी। ज्ञात हो की 2018 में, गोपालगंज के एसपी ने एक थाना प्रभारी (एसएचओ) सहित दो पुलिसकर्मियों को अवैध शराब बेचते हुए पकड़ा, वह भी थाने के परिसर के अंदर। बाद में इसी तरह की गिरफ्तारियां हाजीपुर और समस्तीपुर जिलों में भी की गईं। वहीं इस तरह की घटना के बढ़ने के बाद नीतीश सरकार की काफी किरकिरी हुई और ऐसा लगा की शराबबंदी विफल हो गई। वहीं शराब प्रतिबंध के विफल होने से नीतीश कुमार की निराशा बढ़ती ही जा रही थी। हालांकि, उन्होंने प्रतिबंध को दोगुना करने का फैसला किया। आपको बतादें कि नवंबर 2021 में, नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली सरकार ने कानून-प्रवर्तन एजेंसियों के लिए मानदंडों को कड़ा कर दिया और कहा कि यदि किसी भी क्षेत्र में शराब पाई जाती है, तो उस विशेष क्षेत्र के स्टेशन हाउस ऑफिसर (एसएचओ) निलंबित होंगे। हालांकि आज के परिदृश्य में यह भी विफल होता दिख रहा है। नीतीश कुमार क़ानूनी हंटर से शराबबंदी चाहते है जो की प्रभावी नहीं साबित हुई है।
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सच कहें तो यह कभी भी बल के साथ काम नहीं करेगा। शराबियों ने अपनी मर्जी से शराब पीना छोड़ दिया है, लेकिन छोड़ने का आह्वान उनके दिल के अंदर से आया, ऐसा नहीं कि किसी सरकार ने उन्हें ऐसा करने के लिए मजबूर किया। पुलिसकर्मी भी हम सब की तरह लालची इंसान हैं। यदि आप उन्हें बहुत अधिक शक्ति देते हैं, तो वे इसका उपयोग अपने लाभ के लिए करेंगे। बिहार पुलिस यही कर रही है। नीतीश कुमार को यह सोचना चाहिए की शराबबंदी के कारण कई लोग अवैध शराब उद्योग में लिप्त हो रहे हैं और जहरीली शराब का सेवन कर रहे हैं जिसके बाद आये दिन लोगों की जान गवाने की खबर आती रहती है और नीतीश सरकार की शराबबंदी कानून को करारा तमाचा मारती है।