आपने पारले-जी बिस्किट की सफलता की कई कहानियां पढ़ी होगी। आपने कई बार कई जगह पढ़ा होगा कि कैसे पारले-जी बिस्किट ‘देश का बिस्किट’ है। आपने पढ़ा होगा कि कैसे पारले-जी बिस्किट का भारत दीवाना है। पारले-जी की सफल मार्केटिंग रणनीति पर भी आपने पढ़ा होगा- आपने पारले-जी से संबंधित बहुत कुछ पढ़ा होगा लेकिन आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि पारले-जी बिस्किट का उत्पादन कुछ ही वर्षों में बंद होने वाला है। पारले-जी बिस्किट आने वाले वक्त में इस देश में कोई पूछेगा भी नहीं। आने वाले वक्त में पारले-जी बिस्किट कोई नहीं खाएगा। आने वाले वक्त में पारले-जी बंद हो जाएगा। इसके पीछे की वज़ह हम आपको बताएंगे लेकिन उससे पहले आइए आपको पारले-जी के बारे में कुछ ख़ास जानकारियां दे देते हैं।
विले पारले से पड़ा नाम
1929 में सिल्क व्यापारी मोहनलाल दयाल ने मुंबई के विले पारले इलाके में एक बंद पड़ी फैक्ट्री खरीदी। इस फैक्ट्री में उन्होंने कन्फेक्शनरी बनाने की योजना तैयार की। फैक्ट्री में मोहनलाल के परिवार के सदस्यों ने ही काम की शुरुआत की। फैक्ट्री शुरू होने के 20 साल बाद 1939 में बिस्किट बनाना शुरू किया गया। बिस्किट का नाम उस स्थान के नाम पर रखा गया- ‘पारले- ग्लूको।’
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इस वक्त तक भारत में बिस्किट आयात किए जाते थे। इसकी वजह से बिस्किट महंगे होते थे। बिस्किट खाना लग्जरी हुआ करता था। पारले ने इस को अपनी मार्केटिंग स्ट्रैटजी का केंद्र बनाया। पारले ने अपना बिस्किट सस्ती कीमत में लॉन्च किया- जल्द ही यह बिस्किट आम जनता में लोकप्रिय हो गया।
‘पारले-जी’ कैसे बना?
इसके बाद कई उतार-चढ़ाव आए लेकिन पारले-ग्लूको बिस्किट लोकप्रिय बना रहा। 1947 में जब देश को दो हिस्सों में बांट दिया गया- उस वक्त भारत में गेहूं की कमी हो गई। ऐस में कंपनी ने जौ से बिस्किट बनाने शुरू कर दिए।
1960 के दशक तक कई ग्लूकोज बिस्किट बाजार में आने लगे। ऐसे में पारले-ग्लूको को दूसरों से अलग करने के लिए कंपनी ने ‘पारले-ग्लूको’ को ‘पारले-जी’ में बदल दिया। तब से अभी तक पारले-जी बिस्किट बेचा जाता है।
हम अपने लेख में आगे बढ़ें और आपको बताएं कि आने वाले वक्त में पारले-जी बिस्किट का उत्पादन क्यों बंद हो जाएगा- उससे पहले आप यह जान लीजिए कि पारले- एक कंपनी है। यह कंपनी कई तरह के बिस्किट बनाती है। पारले-जी उनका पहला लेकिन कईयों में से एक उत्पाद है।
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कौन खाता है पारले-जी बिस्किट?
पारले-जी बिस्किट निम्न आय वर्ग के बीच सबसे ज्यादा खाया जाता है। कई बार पारले-जी बिस्किट लोग भोजन की अनुपलब्धता की वजह से भी खाते हैं। पारले-जी बिस्किट सस्ता जरूर है लेकिन उसकी गुणवत्ता- दूसरे बिस्किटों की अपेक्षा कम होती है- इसलिए मिडिल क्लास और इससे ऊपर की श्रेणियों में जो लोग अपना जीवन निर्वहन करते हैं- वो पारले-जी बिस्किट को वरीयता नहीं देते हैं।
पारले-जी बिस्किट बनाने वाली कंपनी पारले भी पारले-जी बिस्किट से कोई लाभ नहीं कमाती बल्कि वो अपने दूसरे उत्पादों से लाभ कमाती है और पारले-जी की कीमत उतनी ही रखती है। दरअसल, कंपनी जानती है कि पारले-जी के ग्राहक कौन हैं-ऐसे में उन्होंने पारले-जी की कीमत बढ़ाई तो कोई भी उसका बिस्किट नहीं खाएगा। हां, लेकिन एक रणनीति पर कंपनी काम करती है- कंपनी को घाटा ना हो इसलिए वो बिस्किट का वजन कम कर देती है- मूल्य उतना ही रखती है।
इतिहास होगा पारले-जी!
भारतीय अर्थव्यवस्था निरंतर आगे बढ़ रही है। लोअर मिडिल क्लास, अपर मिडिल क्लास में परिवर्तित हो रहा है। अपर मिडिल क्लास और ऊपर बढ़ रहा है। देश से गरीबी कम हो रही है। सरकार की कोशिश है कि हर किसी को इस लायक बना दिया जाए जिससे कि वो अपने खाने-रहने का इंतजाम अच्छे से कर पाए।
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आर्थिक नीतियां निरंतर उदार हो रही हैं। नई-नई कंपनियां आ रही हैं- प्रत्येक सेक्टर में विदेशी निवेश हो रहा है। ऐसे में जब गरीबी ख़त्म होगी- जब देश आगे बढ़ेगा तो पारले-जी बिस्किट खाने वाले लोग अपने-आप ही कम हो जाएंगे- पारले-जी बिस्किट की खपत कम होती जाएगी- और एक दिन ऐसा आएगा जब पारले-जी बिस्किट इतिहास की बात होगी- और वो दिन ज्यादा दूर नहीं है- आने वाले 10 या फिर 20 वर्षों में पारले-जी बिस्किट का उत्पादन बंद हो जाएगा।
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