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मुल्ला, मौलाना और कथित बुद्धिजीवी मजे में, उनके भड़काए चेलों पर लाठियां और बुलडोजर

आरफ़ा, ज़ुबैर, राणा और मौलानाओं के बहकावे में ना आकर, मुस्लिम युवाओं को अपना दिमाग इस्तेमाल करना पड़ेगा।

Animesh Pandey द्वारा Animesh Pandey
14 June 2022
in मत
Violence after Friday Namaz

Source: Tfipost.in

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“जब कुर्बानी दी जाती है तो हमेशा सिपाही की दी जाती है, राजा और राजकुमार तो जिंदा रहते हैं।” मिर्जापुर के इस संवाद का अपना अलग ही अर्थ है, क्योंकि घर फूँक कर तमाशा देखने का सबसे स्पष्ट उदाहरण हमारे देश के कट्टरपंथी मुसलमानों से बेहतर कोई नहीं दे सकता।

देश में उपद्रव भी करेंगे, आगजनी भी करेंगे और जब खुद पर बात आएगी तो अपने इन्हीं सिपाहियों की बलि चढ़ाने में कोई परहेज भी नहीं करेंगे। इस अनोखे ‘बिजनेस मॉडल’ से इन्होंने दशकों से भारत और भारतीय उपमहाद्वीप में कितना रक्तपात मचाया है, इसके बारे में एक ट्विटर यूजर ने एक बहुत अनोखा और सटीक विश्लेषण किया है।

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कुशल मेहरा ने वर्तमान परिस्थितियों पर टिप्पणी करते हुए एक विश्लेषणात्मक थ्रेड पोस्ट किया, “युवा, दिग्भ्रमित मुस्लिम युवा सड़कों पर पत्थर फेंकते हैं और बदले में अपने घर तुड़वाते हैं और यदि पकड़े जाएँ तो कभी-कभी तो पुलिस से भी पिटते हैं। पर दाढ़ी वाले मौलाना और उनके अंग्रेज़ी चाटुकारों पर आंच तक नहीं आती, बाकी चाहे पिटते रहे, बर्बाद हो जाएँ!”

While young brainwashed Muslim youth throws stones on the streets and then get their houses broken and also beaten up by the police danda their handlers (the bearded Maulana and the English speaking Rana/Arfa/Zubair) keep getting richer. The former is just an expendable item tbh.

— कुशल मेहरा (@kushal_mehra) June 13, 2022

वह कैसे? इसका उत्तर अपने ही थ्रेड में बताते हुए कुशल मेहरा ट्वीट करते हैं, “इन लोगों का स्वभाव दोगला किस्म का है। मौलाना हिंसा के लिए उकसाएंगे, ‘सर तन से जुदा’ जैसे नारे लगवाएंगे और आरफा, राना, ज़ुबैर जैसे लोग अंग्रेजी में विदेशी चंदे के लिए तरह-तरह के प्रपंच रचेंगे। बड़ा ही अनोखा बिजनेस मॉडल है। इसमें सबसे घृणित लोग हैं वे जो फर्राटेदार अंग्रेज़ी बोलते हुए नफरत फैलाते हैं। कम से कम मौलाना लोग तो खुलेआम अपनी गुंडई प्रदर्शित करते हैं, हम जानते हैं वे क्या है, परंतु जो कट्टरपंथी अंग्रेज़ी बोलते हैं- एजेंडा फैलाते हैं- उनका कोई भरोसा नहीं कि वे कब कैसे और किस ओर हो जाएँ।”

While young brainwashed Muslim youth throws stones on the streets and then get their houses broken and also beaten up by the police danda their handlers (the bearded Maulana and the English speaking Rana/Arfa/Zubair) keep getting richer. The former is just an expendable item tbh.

— कुशल मेहरा (@kushal_mehra) June 13, 2022

अब कुशल मेहरा अपने विश्लेषण में किस जगह गलत हैं? क्या आपको पता है पाकिस्तान कैसे बना था? केवल कट्टरपंथी मुसलमानों की धर्मांधता और जवाहरलाल नेहरू की प्रधानमंत्री पद की लालसा इसके लिए दोषी नहीं थी। कुशल मेहरा ने जिस मॉडल पर प्रकाश डाला इसका सबसे सटीक उदाहरण तो पाकिस्तान की रचना ही थी। जिसे बनाया अल्लामा मुहम्मद इकबाल और मुहम्मद अली जिन्ना जैसे लोगों ने जो किसी एंगल से अनपढ़ गंवार नहीं थे।

और पढ़ें: अब तो मुसलमान भी ओवैसी को गंभीरता से नहीं लेते

दोनों ही प्रख्यात विद्वान थे, उच्च से उच्चतम शिक्षा ग्रहण की थी और साथ ही साथ एक समय काफी उदारवादी भी माने जाते थे। मुहम्मद इकबाल ने तो ‘तराना ए हिन्द’ में विश्व प्रसिद्ध गीत ‘सारे जहां से अच्छा’ भी लिखा था, पर किसे पता था कि यही व्यक्ति पाकिस्तान का समर्थन करेगा और फिर ‘मुस्लिम हैं हम वतन सारा जहां हमारा’ जैसा गीत लिखेगा- एक तरह से कहें तो मुहम्मद इकबाल चंदन के वृक्ष से लिपटे हुए सर्प के समान था।

और जिन्ना? किसी समय भारत विरोधी मुस्लिम लीग से लोहा लेने वाले मोहम्मद अली जिन्ना एक समय भारत के उग्र नेताओं में से एक माने जाते थे, जिन्होंने गांधी द्वारा असहयोग आंदोलन के वापिस लिए जाने का और भगत सिंह की फांसी का विरोध भी किया था। परंतु अंदर की धर्मांधता कब तक छुपी रहती, एक दिन जनाब का असली व्यक्तित्व सामने आ ही गया।

राणा अय्यूब और आरफा खानम शेरवानी जैसे लोग तो बालक हैं, असल में किसी ने मुस्लिम जनता को सबसे ज्यादा उल्लू बनाया है तो वो मुहम्मद अली जिन्ना हैं। जिन्होंने प्रारंभ में धर्मनिरपेक्षता का स्वांग रचा और 1930 तक आते-आते एक सम्पूर्ण ‘कट्टरपंथी’ में परिवर्तित हो गए। आश्चर्य की बात थी कि महोदय का उर्दू में हाथ तंग था, परंतु उन्हें पाकिस्तान का महान नेता यानी कायदे-ए-आज़म कहा जाता है!

और पढ़ें: ‘द अटलांटिक’ सरेआम भारतीय मुसलमानों को अशांति फैलाने के लिए भड़का रही है

आज जो कुछ भी भारत में घटित हो रहा है, वो पूर्ववर्ती इतिहास से तनिक भी भिन्न नहीं है और यदि हमने अब भी सीख नहीं ली तो ये घटनाएँ ऐसे ही होती रहेंगी। परंतु ये घटनाएँ उन लोगों के लिए भी एक सीख होनी चाहिए, जिनके बच्चे आँख मूंदकर अपने कट्टरपंथी मौलानाओं के एक इशारे पर उपद्रव करने पर उतर जाते हैं। भले ही उनका और उनके परिवार का जीवन नरक हो जाए, क्योंकि मौलाना और बुद्धिजीवियों को तो कोई फ़र्क पड़ता नहीं।

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