बुद्धि भ्रष्ट होने का उदाहरण यदि कभी संदर्भित किया जाए तो अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) को सबसे पहले बुलाया जाएगा। यूँ तो भारत और पकिस्तान में कोई तुलना है ही नहीं पर क्योंकि एक राजाभोज तो दूसरा गंगूतेली है। ऐसे गंगूतेली पाकिस्तान को जब निकाय भारत से बेहतर बताए तो हंसी छूटनी स्वाभाविक है। कुछ ऐसा ही अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने इस बार किया है जहाँ उसने अपनी एक नई रिपोर्ट में उसने पाकिस्तान की ‘गैर-मौजूद सड़कों’ को भारत के 8-लेन एक्सप्रेसवे से बेहतर बता दिया। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के लिए यह कोई नई बात नहीं है, उसकी ये कथित रिपोर्टें सदा से भारत के प्रति विरोधाभासी नतीजे लेकर ही आई हैं।
दरअसल, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) द्वारा मई में प्रकाशित रिपोर्ट ने सड़क परिवहन की गति के मामले में भारत को 162 देशों में 127 वें स्थान पर रखा। यहाँ तक तो आंकड़े की बात हो गई, स्तर पर आएं तो पता चलता है कि रैंकिंग की तुलना में औसत गति के मामले में भी पाकिस्तान भारत से ऊपर है। रिपोर्ट विश्लेषण से पता चलता है कि परिणाम एक चुनिंदा नमूने पर आधारित हैं और सड़क यातायात की वास्तविक स्थिति के प्रतिनिधि नहीं हो सकते हैं।
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IMF की चाल खुद पर भारी पड़ गई
भारत के प्रति ऐसा रुख IMF द्वारा प्रकट किया गया पहला नमूना नहीं है जिसमें भारत के प्रति उसने कुंठित सोच का परिचय दिया हो, पहले भी अपने ज्ञान से भारत को चेताने के भरसक प्रयास किया है। लेकिन इस बार तो हद ही पार हो गई , ऐसी रिपोर्टों ने यह तो सिद्ध कर दिया कि इन रिपोर्टों को इतना ही संजीदा लेना चाहिए जितना मिस्टर बीन को दर्शक लेते हैं। जिस भारत को 2014 के बाद सड़क परिवहन में सबसे बढ़िया और दुरुस्त रोड मिले हों, सड़कों का सीधा जुड़ाव मिला हो, 1 नहीं 2 नहीं 4 नहीं, 8 लेन वाले मक्खन जैसे एक्सप्रेसवे मिले हों उसके यातायात और उसकी गति को यदि पाकिस्तान की रोड विहीन सड़कों के मुकाबले नीचला माना जाए तो निस्संदेह ऐसे निकायों को तो एक ही कथन से संदर्भित किया जाना चाहिए कि, “आंखन के अंधे और नाम नैनसुख” और उसके तुरंत बाद ऐसे निकायों को बंद कर देना चाहिए।
जिस पाकिस्तान को रोटी के लाले हों, दाने-दाने के लिए वहां की जनता मोहताज हो और सबकुछ गिरवी रखा ही ऐसी स्थिति हो उसकी सड़कों की हालत क्या ही होगी अनुमान लगाया जा सकता है। सड़कों पर गाडी तब होगी जब महंगाई कटेगी पर महंगाई की जगह जनता की जेब कटने में लगी है। जब खस्ता हाल सड़कों पर गाड़ियां ही नाम मात्र होंगी तो क्या ही जाम और क्या ही परिवहन व्यवस्था। भारत को नीचे दिखाने का आदी IMF इस बार अपने ही प्रपंच में फंस गया क्योंकि अब उसकी चाल उसी पर भारी पड़ रही है।
निश्चित रूप से, भारतीय उपमहाद्वीप में दो किलोमीटर के भीतर सभी मौसमों वाली सड़कों तक ग्रामीण आबादी की पहुंच के मामले में पाकिस्तान की स्थिति और भी खराब है। भू-स्थानिक प्रौद्योगिकी पर आधारित विश्व बैंक के 2019 ग्रामीण पहुंच सूचकांक के अनुसार, इसकी ग्रामीण आबादी के केवल 64% लोगों के पास ऐसी सड़कों तक पहुंच है, जबकि बांग्लादेश में यह 67% और भारत में 75% है।
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IMF की रिपोर्ट केवल ढकोसला है
आईएमएफ पेपर यह भी चेतावनी देता है कि क्योंकि औसत गति की गणना एक दिन में सबसे तेज समय के लिए की जाती है, यह संभव है कि गति उस समय भिन्न हो जब सामान या लोग वास्तव में किसी मार्ग पर चल रहे हों। इसी तरह, शहर की संख्या कम करने से बड़े देशों के लिए औसत गति बढ़ सकती है क्योंकि उनके पास कई बड़े शहर हैं, जो आम तौर पर बेहतर तरीके से जुड़े हुए हैं। मतलब सटीक न कभी थे और न हो पाएंगे, IMF इस बात से यही कहना चाह रहा है, ऐसे में बात तो यहीं ख़त्म हो गई कि IMF की रिपोर्ट संजीदगी से ली जाने वाली रिपोर्ट होती ही नहीं है।
पाकिस्तान और भारत की स्थिति में जमीन-आसमान के फर्क से सभी आमजन वाकिफ हैं, उन्हें पता है कि कैसे पाकिस्तान, अन्तर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थान अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) की चाटुकारिता में दंडवत रहता है। आमदनी और क़र्ज़ के लिए IMF का शरणागत पकिस्तान न कभी भारत के मुकाबले आगे बढ़ सका है और न ही बढ़ पाएगा क्योंकि आतंक प्रायोजित करने वाले देश उन्नति कर ही नहीं सकते। ऐसे में पाकिस्तान की ‘गैर-मौजूद सड़कें’ भारत के 8-लेन एक्सप्रेसवे से तेज हैं; आईएमएफ का यह दावा और उसकी रिपोर्ट ढकोसला निकली और कुछ नहीं।
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