भारत मौजूदा समय में उन वैश्विक देशों की श्रेणी में शामिल हो गया है जिसके पीछे-पीछे दुनिया के तमाम देश चलना पसंद करते हैं. मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से ही देश के कद में आसमान जैसी ऊंचाई देखने को मिली है. वैश्विक मंचों पर भारत का रूख अब दुनिया के तमाम देशों का रूख तय करता है. एक ओर कोरोना महामारी के बाद दुनिया के तमाम देश मंदी से जूझ रहे हैं, महाशक्तियों की शक्ति निकल गई हैं, चीन और अमेरिका जैसी अर्थव्यवस्थाएं पानी मांग रही है लेकिन भारत की अर्थव्यवस्था हिलोरे ले रही है. मोदी सरकार के नेतृत्व में देश अब आयातक से निर्यातक बन गया है. वैश्विक कंपनियां भारत की ओर मुड़ रही हैं और भारत सरकार की योजनाओं का लाभ उठाते हुए देश में ही उत्पादन भी कर रही हैं.
मौजूदा समय में सेमीकंडक्टर की मांग पूरी दुनिया में बढ़ी है जिसे ध्यान में रखते हुए सरकार ने अपने पीएलआई स्कीम में इस सेक्टर को भी जोड़ा था. इसके अलावा सरकार दूसरी कंपनियों से भी बातचीत कर रही है, वहीं विदेशी कंपनियों ने इस स्कीम में निवेश करने का इंटरेस्ट दिखाया है. अमेरिका जो कभी चिप मार्केट का राजा हुआ करता था वो अब एक तरह से ‘भिखारी’ बन चुका है. वहीं, भारत दिन प्रतिदिन इस बाजार में अपना वर्चस्व जमाते जा रहा है और अब वो दिन दूर नहीं जब भारत वैश्विक चिप बाजार पर पूरी तरह से अपना आधिपत्य जमा लेगा.
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भारत बनेगा सेमीकंडक्टर का हब
कई भारतीय कंपनियां इस क्षेत्र में निवेश करने की ओर कदम बढ़ा चुकी है. ध्यान देने वाली बात है कि टाटा समूह आउटसोर्स सेमीकंडक्टर असेंबली और टेस्टिंग संयंत्र में करीब 30 करोड़ डॉलर का निवेश करने जा रहा है. दरअसल, एक OST संयंत्र सेमीकंडक्टर फाउंड्री से Silicon Wafers को प्राप्त करने के बाद उसे पैकेज और असेंबल करता है तथा उनकी टेस्टिंग करता है और अंत में उन्हें तैयार सेमीकंडक्टर चिप्स में बदल देता है. टाटा कंपनी उसी संयंत्र को स्थापित करने के लिए कर्नाटक, तेलंगाना और तमिलनाडु सरकार के साथ बातचीत कर रही है. भारत ने सबसे बड़े चिप मेकर ताइवान सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग कारपोरेशन (TSMC) से भी बातचीत की है, जिसके ग्राहकों में Qualcomm, NVidia और Apple शामिल हैं। यह दुनिया की सबसे बड़ी चिप मेकर कंपनी है और चिप्स के निर्माण व्यवसाय में TSMC का 56 प्रतिशत हिस्सा है.
ध्यान देने वाली बात है कि पीएलआई स्कीम के लिए आईटी मंत्रालय को देश में सेमीकंडक्टर निर्माण इकाइयों की स्थापना हेतु तीन आवेदन प्राप्त हुए हैं जिन्हें सरकार की ओर से मंजूरी भी मिल गई है. इसमें आईएसएमसी (ISMC), वेदांता (VEDANTA) और सिंगापुर स्थित आईजीएसएस (IGSS) वेंचर्स शामिल हैं. अनिल अग्रवाल की कंपनी वेदांता ने भारत में एक कारखाना बनाने के लिए ताइवान की इलेक्ट्रॉनिक्स दिग्गज फॉक्सकॉन के साथ करार किया है. वहीं, ISMC ने कर्नाटक में अपनी इकाई खोलने का फैसला किया है जबकि वेदांता-फॉक्सकॉन अभी भी एक स्थान की तलाश में है. सिंगापुर स्थित आईजीएसएस वेंचर्स भी अपने कारखाने के लिए स्थान ढूंढ रहा है. वैश्विक सेमीकंडक्टर (semiconductor) उद्योग का मूल्य 2018 तक लगभग 481 बिलियन डॉलर है और इसमें दक्षिण कोरिया, ताइवान और जापान की कंपनियों का वर्चस्व है, जो भारत के सहयोगी हैं.
इन सभी के बीच भारत चिप बनाने के इस उद्योग का अगला बड़ा दावेदार बनने की ओर अग्रसर है. भारत ने अब तक सेमीकंडक्टर क्षेत्र को 2,30,000 करोड़ रुपये की प्रोत्साहन राशि प्रदान की है. इनमें सबसे बड़ी है 76,000 करोड़ रुपये की पीएलआई योजना. ज्ञात हो कि इस समय वैश्विक चिप बाजार के एक बड़े हिस्से पर ताइवान और चीन का दबदबा है. ताइवान की यह चिप इंडस्ट्री किसी भी अर्थवयवसथा को काफी आगे पहुंचाने की ताकत रखती है और यही कारण है कि चीन और अमेरिका दोनों ही इस पर आधिपत्य चाहते हैं. लेकिन ताइवान भी किसी भी दबाव में आकर अपनी स्वतंत्रता गिरवी रखने को तैयार नहीं और इसलिए वह भी एक ऐसी मार्किट की खोज में है जहां वह आसानी से अपनी निर्माण इकाइयां स्थापित कर सके. ऐसे में यह भारत के लिए एक सुनहरा अवसर है.
अमेरिका की लुटिया डूबने वाली है
आपको बता दें कि अमेरिका एक ऐसा देश है जो टेक्नोलॉजी के मामले में हमेशा से खुद को अव्वल दिखाने का प्रयास करता रहा है लेकिन अब समय के साथ जब सेमीकंडक्टर्स की मांग बढ़ रही है तो अमेरिका इसमें पिछड़ता हुआ नज़र आ रहा है. सेमीकंडक्टर चिप टेक्नोलॉजी की नींव है. इसके बिना कार, टीवी, रेफ्रिजरेटर, वाशिंग मशीन, पर्सनल कंप्यूटर, लैपटॉप, मोबाइल आदि कुछ भी बनाना संभव नहीं है.
भारत की पीएलआई योजना की तरह अमेरिका के पास चिप्स अधिनियम नामक एक तंत्र है. इस अधिनियम से यह सुनिश्चित किया जाता है कि अमेरिका की चिप निर्माण इकाइयों को नियमित रूप से धन की आपूर्ति और अन्य प्रोत्साहन मिलते रहें ताकि चिप उद्योग में अमेरिका का आधिपत्य बना रहे. इसी अधिनियम के तहत इस वर्ष अमेरिकी चिप का बजट $52 बिलियन था. प्रारंभ में अधिनियम केवल घरेलू अमेरिकी चिप निर्माताओं को प्रोत्साहित करने के लिए था लेकिन बाद में विदेशी कंपनियों को भी इसमें शामिल किया गया. इसी बीच अमेरिका में एक बड़ी और विकराल समस्या सामने आई- धन की कमी.
खबर यह है कि अमेरिकी सरकार ने बजट तो तय कर दिया पर एक वर्ष से भी अधिक समय हो चुका है लेकिन धन संवितरण अभी तक नहीं दे सकी है. अब बाइडन का आलस इसकी वजह है या अमेरिका की बदहाली, यह कह पाना मुश्किल है. वैसे अमेरिका का खज़ाना सूखने की एक वजह यह भी बताई जा रही है कि बाइडन भारी भरकम रकम यूक्रेन को महंगे हथियार खरीदने के लिए भी दे रहे हैं ताकि वह रूस से लड़ सके. और इसके लिए वह स्वयं के देश की अर्थव्यवस्था को तहस-नहस करने के लिए भी तैयार हैं.
मौजूदा समय में अमेरिकी चिप निर्माताओं को खुद को वहां बनाए रखना मुश्किल हो रहा है. इसके लिए बाइडन प्रशासन के अलावा कोई और जिम्मेदार नहीं है.विदेशी निवेशक अब अमेरिकी चिप बनाने वाले उद्योग में निवेश करने से कतरा रहे हैं. विभिन्न कंपनियों ने अब बाइडन प्रशासन से कहा है कि वे या तो फंड आवंटित करें वरना ये कंपनियां वहां से चली जाएँगी। इन कंपनियों में से एक ताइवान की ग्लोबल वेफर्स है, जो सेमीकंडक्टर वेफर्स की दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी निर्माता है. अमेरिका के हालात सुधरते नहीं दिख रहे. वहीं, दूसरी ओर भारत सरकार की नीतियां कंपनियों को देश की ओर मुड़ने के लिए प्रोत्साहित कर रही है. कई देसी कंपनियां भी इस बाजार में उतर चुकी है, भारत सरकार की ओर से भी इसे जोर शोर से बढ़ावा दिया जा रहा है. ऐसे में वो दिन दूर नहीं जब भारत सेमीकंडक्टर का ग्लोबल हब बन जाएगा.
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