जापान को भारत का विश्वसनीय मित्र माना जाता है। आज भारत और जापान के बीच संबंध काफी अच्छे हैं और इसका श्रेय अगर किसी को दिया जाना चाहिए तो वो जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे ही थे। शिंजो आबे ने भारत-जापान के रिश्ते को मजबूत करने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। बीते दिन शिंजो आबे का 67 साल की उम्र में निधन हो गया। जापान के नारा शहर में एक चुनावी सभा के दौरान उन्हें गोली मार दी गयी, जिसके कारण शिंजो आबे की मृत्यु हो गयी।
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क्वाड के वास्तुकार शिंजो आबे ही रहे हैं
शिंजो आबे का निधन पूरे विश्व के लिए एक बड़ी क्षति है। शिंजो आबे दुनिया के महान दूरदर्शी नेता के रूप में देखे जाते थे। वो शिंजो आबे ही थे, जिन्होंने एशिया पैसिफिक, क्वाड को बनाने में अहम भूमिका निभाई। शिंजो आबे ने कपटी चीन की विस्तावादी नीति को भांप लिया था और उन्होंने चीन पर नजर रखने के लिए जापान के साथ भारत, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के साथ QUAD के गठन में बड़ी पहल की थी।
शिंजो आबे को ही QUAD का जनक माना जाता है। क्वाड की स्थापना वैसे तो वर्ष 2007 में ही हो गयी थी। परंतु इसके बाद से ही यह ठंडे बस्ते में पड़ा रहा। करीब 10 सालों तक क्वाड निष्क्रिय रहा। लेकिन फिर हिंद प्रशांत क्षेत्र में चीन के बढ़ते हस्तक्षेप को देखते हुए वर्ष 2017 के बाद QUAD पर दोबारा काम शुरू हुआ। QUAD को पुनर्जीवित करने के लिए भी शिंजो आबे ने कई प्रयास किए। आज के समय में QUAD एक संगठन का रूप ले चुका है, जो चीन की नजरों में बहुत खटकता है। जब भी क्वाड सदस्य एक साथ आते हैं तो चीन इससे बौखला जाता है। चीन को नियंत्रण में रखने में QUAD एक अहम भूमिका निभाता है। इस क्वाड के वास्तुकार शिंजो आबे ही रहे हैं।
शिंजो आबे की मृत्यु भारत के लिए एक निजी क्षति है। एक राजनेता से इतर आबे भारत के उस विशेष मित्र की तरह थे, जो हर मोड़ पर कंधे से कंधा मिलाकर साथ खड़े रहे। शिंजो आबे सबसे लंबे समय तक जापान के प्रधानमंत्री बने रहे थे। इस दौरान उन्होंने भारत और जापान के रिश्तों को ऐतिहासिक ऊंचाईयों तक पहुंचाया। 2006 में भारत और जापान के बीच ‘रणनीति और वैश्विक साझेदारी’ पर हस्ताक्षर हुए थे, जो भारत-जापान के रिश्तों को मजबूत करने की दिशा में पहला कदम था।
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भारतीय संसद में शिंजो का ऐतिहासिक भाषण
जापान के प्रधानमंत्री के रूप में अपने पहले कार्यकाल में ही शिंजो आबे वर्ष 2007 में पहली बार भारत आए थे। तब उन्होंने 22 अगस्त को भारतीय संसद में एक ऐतिहासिक भाषण दिया था, जिसे ‘दो समुद्रों के मिलन’ के रूप में जाना जाता है। अपने इसी भाषण में शिंजो आबे ने मुक्त और खुले हिंद-प्रशांत क्षेत्र की वकालत की थी।
शिंजो आबे जापान के ऐसे पहले प्रधानमंत्री थे जो भारत के गणतंत्र दिवस की परेड में मुख्य अतिथि बने। वर्ष 2014 में भारत के 65वें गणतंत्र दिवस समारोह में आबे मुख्य अतिथि बने थे। इसके एक साल बाद यानी 2015 में वे भारत की यात्रा पर आए और इस दौरान शिंजो आबे ने पीएम मोदी के साथ वाराणसी के घाटों पर गए थे। आबे ने दशाश्वमेध घाट पर होने वाली प्रसिद्ध गंगा आरती देखी थी।
2017 में प्रधानमंत्री रहते हुए शिंजो आबे अंतिम बार भारत आए थे। इस दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट मुंबई-अहमदाबाद बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट की नींव रखी गयी थी। इस प्रोजेक्ट के दौरान ही आबे ने ‘जय जापान, जय इंडिया’ का नारा भी दिया था। चाहे वो डोकलाम का विवाद हो या फिर मौजूदा LAC विवाद हर मसले में जापान भारत के समर्थन में साथ खड़ा रहा और चीन की हरकतों का उसने खुलकर विरोध किया भारत के साथ संबंध बेहतर करने के लिए शिंजो आबे ने जो कुछ भी किया उनके उन योगदानों के कारण ही वर्ष 2021 में भारत में उन्हें भारत के दूसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था। शिंजो आबे के प्रधानमंत्री रहते हुए नरेंद्र मोदी के साथ भी रिश्ते काफी गहरे थे। दोनों एक दूसरे के परम मित्र की तरह थे। शिंजो आबे के निधन पर पीएम मोदी ने एक भावुक ब्लॉग लिखकर उनके साथ बिताए गए विशेष पलों को याद किया।
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जापानी अर्थव्यवस्था को सुधारने के लिए शिंजो आबे ‘आबेनॉमिक्स’ (Abenomics) के नाम से एक खास रणनीति लेकर आए थे, जिसने दुनियाभर में खूब चर्चाएं बंटोरीं। अपने इस सिद्धांत के जरिए वो विदेशी निवेशकों को जापान बुलाने का प्रयास करते रहे। इसके अलावा रक्षा मामलों में भी आबे ने देश को मजबूती देने का काम किया।
शिंजो आबे एक ग्लोबल लीडर थे, जो कई मामलों में दुनिया का प्रतिनिधित्व करने का दम रखते थे। इसके साथ ही जिस तरह उन्होंने चीन की चालों को बहुत पहले ही समझ लिया था, वो उनकी दूरदर्शिता का उदाहरण देता है। अब भले ही शिंजो आबे हमारे बीच नहीं रहे लेकिन उन्होंने कई काम ऐसे किए हैं, जिसके लिए दुनिया उन्हें हमेशा याद रखेगी।
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