मेहनत के दम पर सफलता कई लोग हासिल कर लेते हैं। परंतु सफलता पाने के बाद हर व्यक्ति के सामने दो विकल्प मौजूद होते हैं- पहला यह कि वे इस सफलता को सिर पर चढ़ा लें और दूसरा यह कि इसे स्वयं पर हावी ना होने दें और इसके बाद भी मेहनत कर नए मुकाम हासिल करने के प्रयास करते रहे। अधिकतर लोग पहला विकल्प चुनते हैं, वे सफलता सिर पर चढ़ाकर औंधे मुंह गिर जाते हैं। हालांकि गोल्डन बॉय नीरज चोपड़ा की बात अलग है। ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीतने के बाद नीरज चोपड़ा ने दूसरा विकल्प चुना और उन्होंने स्वयं पर सफलता को कभी हावी नहीं होने दिया। यही कारण है कि दिन पर दिन नीरज का प्रदर्शन और अधिक बेहतर ही होता चला जा रहा है।
दरअसल, नीरज चोपड़ा ने इस बार विश्व एथेलेटिक्स चैंपियनशिप में रजत पदक जीतकर देश का नाम एक बार फिर पूरे विश्व में ऊंचा कर दिया। अमेरिका के यूजीन में चल रही चैंपियनशिप की भालाफेंक स्पर्धा में नीरज ने 88.13 मीटर के थ्रो के साथ सिल्वर मेडल अपने नाम किया। 19 वर्षों के बाद ऐसा हुआ जब भारत ने इस प्रतियोगिता में कोई पदक जीता हो। इससे पूर्व वर्ष 2003 में भारत ने अपना एकमात्र पदक पेरिस में अंजू बॉबी जॉर्ज ने लॉन्ग जंप में ब्रॉन्ज मेडल जीता था।
इससे पहले नीरज ने जून 2022 में ही एक और रजत पदक अपने नाम किया था। जून में फिनलैंड में आयोजित हुए पावो नुरमी खेलों में नीरज ने सिल्वर मेडल पर अपना कब्जा जमाया था। इस दौरान उन्होंने स्वयं के ही रिकॉर्ड को ध्वस्त करते हुए 89.30 मीटर दूर का शानदार थ्रो किया था। इससे पहले नीरज का राष्ट्रीय रिकॉर्ड 88.07 मीटर था जो उन्होंने पिछले वर्ष मार्च में पटियाला में बनाया था। इसके बाद उन्होंने 7 अगस्त 2021 को 87.58 मीटर के थ्रो के साथ टोक्यो ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीतकर इतिहास रच दिया था।
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प्रदर्शन में करते रहे सुधार
नीरज एक के बाद एक कमाल कर रहे हैं और अपने प्रदर्शन में लगातार सुधार ही करते चले जा रहे हैं। परंतु यह सबकुछ संभव कैसे हो रहा है? देखा जाए तो इसके पीछे कई कारण नजर आते हैं। किसी भी खिलाड़ी का सबसे बड़ा सपना यही होता है कि वो अपने जीवन में एक ना एक बार ओलंपिक में तो अपने देश के लिए पदक जीतकर लाए। महज 23 साल की छोटी सी उम्र में नीरज ने अपने इस सपने को पूरा कर लिया और सीधा स्वर्ण पदक पर निशाना लगाया। गोल्ड मेडल जीतकर नीरज ने देश-विदेश में अपना नाम बना लिया। परंतु इसके बाद क्या? क्या ओलंपिक में मेडल जीतना ही किसी भी खिलाड़ी का अंतिम लक्ष्य होता है? बिलकुल नहीं। इसके बाद हर खिलाड़ी को अपना प्रदर्शन बेहतर करते हुए और मेडल लाने पर ध्यान देना चाहिए। इसी लक्ष्य पर नीरज भी आगे बढ़े। नीरज ओलंपिक में गोल्ड मेडल भले ही जीत गए थे। परंतु उन्होंने ना तो इसे अपना अंतिम लक्ष्य बनाया और ना ही इस पर कभी भी घमंड किया और यही बन रहा उनकी हालिया और बेहतर होते प्रदर्शन का कारण।
सफलता को स्वयं पर हावी नहीं होने दिया
जब भी किसी खेल में कोई बड़ी उपलब्धि हासिल होती है, तो देश-विदेश में चर्चा का हिस्सा बन जाती है। मीडिया में कई दिनों तक इसी की खबरें चलती रहती है। खिलाड़ी को सेलिब्रिटी बनाने के प्रयास होने लगते है। ऐसा ही कुछ नीरज चोपड़ा के साथ भी हुआ। नीरज चोपड़ा ने टोक्यो ओलंपिक में जब स्वर्ण पदक जीता, तो वे रातों-रात पूरे देश के सुपरस्टार बन गए। हर तरफ नीरज चोपड़ा छा गए। कई दिनों तक मीडिया में उनकी उपलब्धियां सुर्खियों में छाई रहीं। फिर RJ मल्लिशका जैसे भी कुछ लोग रहे, जो नीरज चोपड़ा के साथ “अनुचित” व्यवहार करने लगे और नीरज को यह एहसास कराने लगे कि वो किसी फिल्मी सितारे की भांति ही एक हीरो हैं। परंतु नीरज चोपड़ा तो ठहरे नीरज चोपड़ा, जो अपने देसी ठांट-बांट के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने ऐसे लोगों को हाथ जोड़कर दूर से ही “राम-राम” कर दी। वे अपनी सफलता के बाद विनम्र बने रहे और कभी घमंड नहीं किया। वो ओलंपिक में मेडल जीतने से पहले थे, एकदम वैसे ही बने रहे। ओलंपिक में स्वर्ण जीतने के बाद नीरज ने मेहनत जारी रखी। वो लगातार पसीना बहाते रहे और अब अधिक मेडल जीतकर ला रहे हैं।
नीरज यह भली-भांति जानते कि वे अगर सफलता को अपने सिर पर चढ़ा लेंगे, तो उनके करियर की उल्टी गिनती शुरू होते देर नहीं लगेगी। ओलंपिक में भारत के पहले पहला गोल्ड मेडल लाने वाले अभिनव ब्रिंदा ने स्वयं यह बात स्वीकार की थी कि कई बार सफलता से निपटना मुश्किल हो जाता है। वर्ष 2008 में अभिनव ब्रिंदा ने बीजिंग ओलंपिक के दौरान निशानेबाजी में स्वर्ण पदक अपने नाम किया था। यह ओलंपिक में भारत का पहला स्वर्ण पदक था। परंतु ओलंपिक खेलों में स्वर्ण पदक जीतने के तुरंत बाद अभिनव ब्रिंदा को मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ा था। इसके बाद वो डिप्रेशन में चले गए और यही नहीं जानते थे कि उन्हें अपने जीवन में आगे क्या करना है। जिसके बाद अभिनव ब्रिंदा का करियर एक तरह से समाप्त ही हो गया।
सफलता का नशा सिर पर चढ़ने से लोगों का दिमाग किस तरह से खराब हो जाता है इसका सबसे उत्कृष्ट उदाहरण हमें पहलवान सुशील कुमार के रूप में देखने को मिलता है। वर्ष 2012 में सुशील कुमार ने लंदन ओलंपिक में रजत पदक जीता था। परंतु ओलंपिक में मेडल जीतने से लेकर उनकी कहानी कब सलाखों के पीछे तक चली गई, पता ही नहीं चला। 23 वर्षीय जूनियर पहलवान सागर धनखड़ की हत्या के सिलसिले में सुशील कुमार तिहाड़ जेल में बंद हैं और अपने कर्मों की सजा भुगत रहे हैं।
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नीरज चोपड़ा के मामले में देखें तो पता चलता है कि उन्हें अपनी सफलता को संभालना आता है। यही कारण है कि दिन पर दिन वो अपने प्रदर्शन को बेहतर करते चले जा रहे है और मेडल लेकर आ रहे हैं। आने वाले समय में भी इसी तरह का शानदार प्रदर्शन जारी रखते हैं, तो भविष्य मे और मेडल देश के लिए लेकर आते रहेंगे।
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