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द्रविड़ राजनीति हमेशा से इतनी ही ‘गंदी’ रही है, बस अब दिखने लगी है

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने राष्ट्रगान नहीं गाया, इसी के बहाने द्रविड़ राजनीति समझ लीजिए।

Deeksha Sharma द्वारा Deeksha Sharma
3 August 2022
in चर्चित, मत
Periyar
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क्या आपने कभी सोचा है कि इतने वर्षों से भारत के उत्तर और दक्षिण में एक तरह का विभाजन और टकराव क्यों है? ऐसा क्यों है कि भारत के दक्षिण हिस्से के नेता अलग देश की मांग करते हैं? ऐसा क्यों है कि “हिंदी बोलने वाले पानी-पूरी बेचते हैं” ऐसे बयान भारत के दक्षिण के नेताओं के मुंह से निकलते हैं। वह भी तब जब उत्तर में ही जन्मे एक उद्योगपति ने अकेले तमिलनाडु राज्य में कई थर्मल, सोलर और ग्रीन एनर्जी प्लांट खड़े किए हैं। केवल एक वर्ष में 2,300 करोड़ रुपये के समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर कर राज्य के कई लोगों को रोजगार का अवसर प्रदान किया है। फिर भी ऐसा क्यों है कि दक्षिण भारत में उत्तर से आने वाले व्यक्ति को तिरछी नज़रों से देखा जाता है?

द्रविड़ियन पॉलिटिक्स बड़ा कारण है

इन सभी प्रश्नों का उत्तर है द्रविड़ियन पॉलिटिक्स। यह द्रविड़ राजनीति नास्तिकता, हिंदू विरोधी, हिंदी विरोधी और उत्तर भारतीय विरोधी आदर्शों के इर्द-गिर्द घूमती है। पिछले कुछ वर्षों में इंटरनेट और सोशल मीडिया हर घर पहुंचे हैं और यह उसी का परिणाम है कि दक्षिण में चल रही राजनीति की खिचड़ी उत्तर वालों को भी देखने को मिल रही है।

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लेकिन सबसे पहले जो प्रश्न उठता है वह यह है कि यह “आर्यन-द्रविड़” शब्दों का जन्म कहां से, क्यों और कैसे हुआ? “आर्य” एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ है श्रेष्ठ ये पूज्य। जबकि “द्रविड़” तमिल भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है तीन समुद्रों का संगम यानी अरब सागर, भारतीय समुद्र और बंगाल की खाड़ी। यह दक्षिण भारत को संदर्भित करता है जहां इन तीनों समुद्रों का संगम होता है।

अंग्रेजों ने भारत के लोगों को बांटने के लिए इन शब्दों का इस्तेमाल किया। उन्होंने आर्य आक्रमण का एक सिद्धांत तैयार किया जो कहता है कि आर्यों ने उत्तर पश्चिम भारत पर हमला किया और स्वदेशी द्रविड़ आबादी को दक्षिण की ओर खदेड़ दिया। वे दावा करते हैं कि आर्य मध्य एशिया से आए हैं।

और पढ़ें- Adultery, हिन्दू विरोध की हद, कानून की अवहेलना – पेरियार सिद्धांत सभी को पढ़ना चाहिए

हालांकि ये दावे पुरातत्व विज्ञान और तर्क की जांच के रूप में बिलकुल गलत साबित हुए हैं। भारत के दक्षिण में बसने वाले लोग उन्हीं श्री गणेश, महादेव, श्रीहरि और देवी को पूजते हैं जिन्हें उत्तर भारत में पूजा जाता है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि डीएनए अध्ययन से पता चलता है कि एक हरियाणवी का डीएनए मध्य एशियाई की तुलना में तमिल लड़के से अधिक मिलता-जुलता है।

रही बात उत्तर और दक्षिण में रहने वाले व्यक्ति की त्वचा के अलग रंग की तो त्वचा का रंग मुख्य रूप से मेलेनिन (मेलेनिन आपके शरीर में एक पदार्थ है जो बालों, आंखों और त्वचा की रंजकता पैदा करता है) वर्णक के कारण भिन्न होता है क्योंकि दोनों क्षेत्रों में अलग-अलग मात्रा में सूर्य का प्रकाश मिलता है। भले ही भारत के आर्यन और द्रविड़ के नाम पर बांटे जा रहे लोगों की भाषा, बोली, खान पान और वेशभूषा अलग हों लेकिन ये सत्य कोई नहीं झुटला सकता कि हम सब भारतीय हैं, भारत एक राष्ट्र है।

हाल ही में तमिलनाडु के चेन्नई में 44वें FIDE शतरंज ओलंपियाड का उद्घाटन नेहरू इंडोर स्टेडियम में हुआ। उद्घाटन भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और तमिलनाडु राज्य के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन की उपस्थिति में हुआ। इस समारोह के दौरान जब राष्ट्रगान शुरू हुआ तो पीएम मोदी तो राष्ट्रगान गाते हुए दिखे लेकिन मुख्यमंत्री स्टालिन चुपचाप होंठ दबाये खड़े रहे जिससे केवल एक ही प्रश्न उठता है कि क्या तमिल के मुख्यमंत्री की भाषा श्रेष्ठता ने उन्हें राष्ट्रगान का एक भी शब्द बोलने की अनुमति नहीं दी? क्या तमिल भाषा की श्रेष्ठता कम हो जाती यदि वे राष्ट्रगान के दो शब्द बोल देते? या फिर जिस भारतवर्ष में वे रह रहे हैं और इतने ऊंचे पद पर आसीन हैं उनको राष्ट्रगान आता ही नहीं?

Stalin doesn’t know Jana Gana Mana? This is what Dravidian politics has done to TN! pic.twitter.com/4ua53tQrJr

— Shefali Vaidya. 🇮🇳 (@ShefVaidya) August 2, 2022

केवल इतना ही नहीं, तमिल राज्य में ये द्रविड़ राजनीति इतने ज़हरीले स्तर पर पहुंच गयी है कि फिल्मी सुपरस्टार भी इससे बच नहीं सके हैं। कुछ हफ्ते पहले ही आर माधवन अभिनीत फिल्म ‘रॉकेटरी: द नंबी इफेक्ट’ में एक्टर सूर्या को एक अतिथि भूमिका निभाते हुए देखा गया था। जहां हिंदी फिल्म माधवन और शाहरुख के ‘जय हिंद’ कहने के साथ समाप्त होती है, वहीं तमिल संस्करण में सूर्या ‘जय हिन्द’ बोलने के बजाये एक कृत्रिम मुस्कुराहट के साथ फिल्म का समापन होता है।

और पढ़ें- पेरियार हिन्दू विरोधी, ब्राह्मण विरोधी था जिसका महिमामंडन नहीं आलोचना होनी चाहिए

नास्तिक द्रविड़ राजनीति

स्वतंत्रता के बाद छह दशक से अधिक समय तक तमिलनाडु की राजनीति द्रविड़ पार्टियों के इर्द-गिर्द घूमती रही है जो आगे चलकर नास्तिकता, हिंदू-विरोधी, हिंदी-विरोधी और उत्तर-भारतीय आदर्शों के विरोध के इर्द-गिर्द घूमती है। इस विचारधारा के समर्थक राज्य से हिंदू धर्म को खत्म करने की हर कोशिश कर रहे हैं।

जब भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस सीएन अन्नादुरई के नेतृत्व वाली डीएमके से हारी उस समय शायद ही कोई जानता था कि उस पार्टी की हार के साथ ही तमिलनाडु में राष्ट्रीय राजनीति का अंत हो जाएगा। कांग्रेस के बाद तमिलनाडु में पहली गैर-कांग्रेसी सरकार सी.एन. अन्नादुरई के नेतृत्व में बनी जिन्होंने हमेशा से ही हिंदी विरोधी आंदोलन का नेतृत्व किया।

तमिलनाडु में डीएमके और एआईएडीएमके (AIADMK) दोनों महत्वपूर्ण राजनीतिक दलों ने द्रविड़ आंदोलन के सहारे अपना सिक्का राज्य में जमाया। अन्नाद्रमुक में जयललिता के उदय के बाद ही तमिलनाडु में द्रविड़ विचारधारा पीछे हटने लगी थी लेकिन, स्टालिन के सत्ता में आने के साथ ही ऐसा लगता है कि राज्य फिर से हिंदू विरोधी राजनीति में तल्लीन हो गया है।

पेरियार- द्रविड़ राजनीति का जन्मदाता

मार्क्सवादी और इतिहासकारों के अनुसार, पेरियार एक सामाजिक कार्यकर्ता थे जो कथित तौर पर ‘ब्राह्मणवाद, जाति प्रथा और महिला उत्पीड़न के अत्याचारों के भारत को भंग करना’ चाहते थे। हालांकि, उनका रुख जाति व्यवस्था को सुधारने का नहीं था बल्कि एक समुदाय के रूप में ब्राह्मणों के विरुद्ध था। सीधे शब्दों में कहें तो पेरियार वह इंसान था जिसका सपना केवल हिंदुओं का विनाश देखना था। हिन्दुओं के विनाश के बाद पेरियार का अगला कदम राज्य और फिर देश में ईसाई मिशनरियों की नींव रखना था।

अपने इस मकसद के लिए पेरियार ने कई अभियान चलाये जिसमें से एक था 1953 में चलाया गया अभियान जिसमें पेरियार ने गणेश प्रतिमाओं को तोड़ने और भ्रष्ट करने के लिए आंदोलन आयोजित किए। उन्होंने रामायण के बारे में कई अफवाहें फैलायी थीं। कई ऐसे झूठ कहे जो मर्यादा पुरुषोत्तम राम को बदनाम करने के लिए थे।

द्रविड़ विचारधारा और कुछ नहीं बल्कि हिंदू धर्म को व्यवस्थित रूप से नष्ट करने के लिए पेरियार की चर्च के साथ मिलकर बनायी एक योजना है। जो ईसाई मिशनरियां ब्रिटिश राज के 200 वर्षों में नहीं कर सकीं वे अब पेरियार के साथ मिलकर उस काम को अंजाम देना चाह रही थीं.

द्रमुक और उसकी हिंदू विरोधी राजनीति

स्टालिन अपनी डीएमके द्रविड़ विचारधारा की आड़ में अपने हिंदू विरोधी और ब्राह्मण विरोधी कट्टरता के लिए बदनाम हैं। यह हिंदू विरोधी रुख दिवंगत द्रमुक अध्यक्ष एम. करुणानिधि के बयानों से स्पष्ट है, जिन्होंने कहा था, “भगवान राम एक शराबी हैं”।

जब से स्टालिन सत्ता में आए राज्य में कई मदिरों को तोडा गया, जहां एक तरफ राज्य के मंदिरों की संख्या घटती गयी वहीं दूसरी तरफ चर्च बढ़ते गए। मंदिरों और उसके कोष पर राज्य सरकार अपना हक़ जताती हैं लेकिन जब भी कोई मंदिर या देवमूर्ति टूटने की घटना होती है तो यही राज्य सरकार मूकदर्शक बनी रहती हैं। राज्य में जितनी तेजी से ईसाई मिशनरीयां बढ़ रही हैं, उतनी ही तेजी से धर्मांतरण किये जा रहे हैं। तमिलनाडु राज्य हिंदुओं के लिए एक जीवित नरक बन गया है जहां उन्हें इन मिशनरियों द्वारा धर्मांतरण के लिए मजबूर किया जाता है।

और पढ़ें- पेरियार को हटवा दिए कर्नाटक की पुस्तकों से, अच्छा बात नहीं है!

स्टालिन की पार्टी वह दल है जो मूर्ति पूजा के विरुद्ध हैं। मंदिरों को तोड़ने वालों और देवमूर्तियों को क्षति पहुंचाने वालों को उपद्रव मचाने की खुली छूट देती है। यह दल केवल ब्राह्मण विरोधी ही नहीं बल्कि हिंदु विरोधी है। सबसे निराशाजनक बात यह है कि इनका घृणा भाव धीरे-धीरे देश को काट रही है। द्रविड़ राजनीति विष तरह फैलती जा रही है और यह स्टालिन के हालिया कार्यों से स्पष्ट रूप से प्रदर्शित भी होता है।

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