कुछ लोगों ने मानो कसम खा ली है कि वे अपनी हरकतों से बाज़ नहीं आएंगे चाहे उसके पीछे उनके देश की लंका ही क्यों न लग जाए। गलतियां सुधारनी नहीं और न ही उन्हें इतिहास से कोई सीख लेनी है। इस लेख में जानेंगे कि कैसे पाकिस्तान का एक जहाज “PNS Alamgir” “PNS Ghazi” की राह पर चल पड़ा था और कैसे वह इतिहास बनते-बनते रह गया था।
समुद्री रास्ते से भारत में घुसपैठ का प्रयास
हाल ही में पाकिस्तान का वॉरशिप [जंगी जहाज] “PNS आलमगीर” ने समुद्री रास्ते से भारत में घुसपैठ का प्रयास किया था परंतु इंडियन कोस्ट गार्ड पर तैनात डोर्नियर सर्विलांस एयरक्राफ्ट ने उसे खदेड़कर लौटने को मजबूर कर दिया। पीएनएस आलमगीर को आता देख पहले भारतीय एयरक्राफ्ट ने चेतावनी जारी की, परंतु वह अनवरत भारत की ओर बढ़ता रहा। भारत ने एक्शन लेने से पूर्व उन्हें रेडियो संचार सेट पर कॉल भी किया। मगर जवाब न आने पर भारतीय डॉर्नियर ने उस जहाज को खदेड़ने की कार्रवाई शुरू की, जिसे देख पाकिस्तानी जहाज का कप्तान घबराया और आलमगीर को भारतीय समुद्री सीमा से बाहर निकाल ले गया।
परंतु यह पाकिस्तानी जहाज “PNS ग़ाज़ी” की राह पर कैसे चल पड़ा? क्या है “PNS ग़ाज़ी” जिसके नाममात्र से पाकिस्तानी कंपयमान हो जाते हैं? इसके पीछे का कारण हम बतातें हैं, दरअसल कभी अमेरिकी नौसेना और बाद में पाकिस्तानी नौसेना की शान माने जाने वाले इस पनडुब्बी ने भारत में त्राहिमाम मचाया था, परंतु 1971 में वह ऐसे गायब हुआ जिसके बारे में आज भी बात करने से पाकिस्तानी कतराते हैं।
परंतु ये हुआ क्यों? नौसेना के अफसर आर ए नारासिया बताते हैं कि “हम लोग काम कर रहे थे कि एक तेज धमाके की आवाज़ सुनायी दी। हमें लग गया कि यह कोई धमाका था। इंटेलिजेंस रिपोर्ट्स के जरिए ये सामने आया कि नौसेना के वरिष्ठ अफसर एडमिरल कृष्णन को पता था कि आईएनएस विक्रांत पनडुब्बी को पाकिस्तानी नौसेना की ओर से बड़ा खतरा हो सकता है।” आईएनएस विक्रांत को डुबोने का जिम्मा पनडुब्बी पीएनएस ग़ाज़ी(PNS Gazi) को दिया गया था, जिसने 1965 में पश्चिमी तटों पर अप्रत्यक्ष रूप से त्राहिमाम मचाया।
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भारतीय नौसेना ने बिछाया था जाल
पीएनएस ग़ाज़ी को अमेरिकी नौसेना ने पाकिस्तान को उधार दिया था, उसका मूल नाम USS Diablo था। पीएनएस ग़ाज़ी विशाखापत्तनम के करीब आ चुकी थी। एडमिरल कृष्णन ने युद्धपोत आईएनएस विक्रांत को अंडमान आईलैंड्स की ओर ले जाने का आदेश दिया। उन्होंने आईएनएस विक्रांत का कॉल साइन भी बदल दिया। आईएनएस राजपूत के लिए इस्तेमाल होने वाला कॉल साइन आईएनएस विक्रांत के लिए तय कर दिया गया। आईएनएस राजपूत एक पुराना युद्धपोत था, जो बेस पर था। इसी प्रकरण में कथित रूप से एक पनडुब्बी, INS करंज का भी उपयोग हुआ, और 2017 की चर्चित बहुभाषीय ‘द ग़ाज़ी अटैक’ इसी प्रकरण पर आधारित है।
इसके बाद आईएनएस राजपूत से अनकोडेड मेसेज भेजे गए, जिससे ऐसा लगा कि उन्हें आईएनएस विक्रांत से भेजा गया। इससे पाकिस्तानी नौसेना को लगा कि विक्रांत विशाखापत्तनम पोर्ट से निकलने वाला है। उसने पीएनएस ग़ाज़ी को विशाखापत्तनम के और क़रीब पहुंचने का आदेश दे दिया। अपने टारपीडो से लैस ग़ाज़ी विशाखपत्तनम की ओर बढ़ चली।
इधर कृष्णन ने आईएनएस राजपूत के कमांडिंग ऑफिसर लेफ्टिनेंट कमांडर इंदर सिंह को बता दिया था कि वह जब हार्बर से निकलेंगे तो हो सकता है कि उनके आसपास दुश्मन की सबमरीन मिले। कृष्णन अपनी किताब ‘नो वे बट सरेंडर- ऐन एकाउंट ऑफ इंडो-पाकिस्तान वॉर इन द बे ऑफ बंगाल 1971’ में लिखते हैं, ‘चकमा देने की हमारी रणनीति सफल रही। डूब चुके ग़ाज़ी से हमने एक सीक्रेट सिग्नल रिकवर किया था। उसमें कराची के सबमरींस कमांडर ने 25 नवंबर को ग़ाज़ी को सिग्नल भेजा था कि इंटेलिजेंस से संकेत मिल रहा है कि वह युद्धपोत पोर्ट में ही है।’ उस सिग्नल में ग़ाज़ी से कहा गया था कि उसे ‘पूरे साजोसामान के साथ विशाखापत्तनम की ओर बढ़ना चाहिए।’ परंतु उन्हें क्या पता था कि भारतीय नौसेना उनके लिए पूरी तरह तैयार खड़ी थी और PNS ग़ाज़ी के लिए बंगाल की खड़ी में उनका कब्र सारी सुविधाओं सहित उनकी प्रतीक्षा कर रही थी।
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3 से 4 दिसंबर 1971 की रात को क्या हुआ, ये आज भी एक रहस्य है, परंतु उसी के पश्चात भारत पाकिस्तान युद्ध आधिकारिक तौर पर प्रारंभ हुआ, क्योंकि उसके पश्चात कुछ भी पहले जैसा नहीं रहा। आज भी पाकिस्तान ग़ाज़ी की पराजय को खुलेआम स्वीकारता नहीं है और आज भी वह 1971 की पराजय की भांति इस पराजय से मुंह मोड़ता है। PNS आलमगीर के प्रकरण से तो ऐसा प्रतीत होता है कि कोई विशेष परिवर्तन नहीं आया है।
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