कभी वो भी दिन हुआ करते थे जब सालों साल भारतीय खेल संघों पर प्रतिबंध के कलंक लटके रहते थे और कोई ताकता तक नहीं था। कभी ऐसे भी दिन हुआ करते थे जब किसी स्पर्धा में केवल फलाने स्थान प्राप्त करने को ही उपलब्धि मान लिया जाता था और उस पर फिल्म से लेकर पुस्तक और अभिलेख और न जाने क्या-क्या बनते थे। परंतु नये भारत में ऐसा नहीं है।
इस लेख में जानेंगे कि कैसे भारतीय खेलों में एक नयी क्रांति आयी है जिसके बाद हर चुनौती का सामना करने के लिए भारतीय खेल तैयार हैं।
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अंडर 17 वर्ल्ड कप तय शेड्यूल पर ही होगा
हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय में फुटबॉल की वैश्विक संस्था FIFA ने भारतीय फुटबॉल महासंघ पर लगे निलंबन को तत्काल प्रभाव से हटाते हुए उसे पुनः अपनी संस्था में सम्मिलित किया है। इसका स्पष्ट अर्थ है कि भारत में प्रस्तावित अंडर 17 वर्ल्ड कप तय शेड्यूल पर ही होगा और जिस व्यक्ति ने रोड़ा डालने का प्रयास किया था यानी एनसीपी के नेता और एआईएफ़एफ़ के पूर्व अध्यक्ष प्रफुल्ल पटेल उनके विनाश की नींव भी पड़ चुकी है।
बता दें कि प्रफुल्ल पटेल की अध्यक्षता में AIFF में भ्रष्टाचार अपने चरमोत्कर्ष पर था। कई लोग ये भी कहते हैं कि FIFA द्वारा प्रतिबंध लगवाने में इनकी ही भूमिका हैं। अब इसमें कितनी सत्यता हैं यह तो जांच का विषय है, परंतु इतना तो स्पष्ट है कि इनके कारण भारत को वैश्विक स्तर पर अपमान का सामना करना पड़ा।
एक ऐसा भी समय था जब 2012 में भारतीय ओलंपिक असोसिएशन पर अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक कमेटी ने ओलंपिक खेलों में तिरंगे के अंतर्गत प्रतिनिधित्व करने से ही रोक लगा दी, यहां तक कि लगभग डेढ़ साल तक किसी ने कोई सुध नहीं ली। परंतु FIFA के प्रतिबंध की घोषणा पर क्या केंद्र सरकार, क्या खेल मंत्रालय, स्वयं सुप्रीम कोर्ट तक को संज्ञान लेना पड़ा, इस तरह से प्रफुल्ल पटेल को दिन में ही तारे दिखायी देने लगे।
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कपिल सिब्बल के गोलमोल उत्तर
जब प्रफुल्ल पटेल की ओर से प्रतिनिधित्व कर रहे अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने गोलमोल उत्तर देने का प्रयास किया, तो न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने स्पष्ट कहा “आप हमको दिक्कत बताते हैं और आप टूर्नामेंट को नष्ट कर रहे हैं। मिस्टर प्रफुल्ल पटेल टूर्नामेंट को तबाह करने की कोशिश कर रहे हैं। आप भी अब ये काम कर रहे हैं। हम आपसे निपट लेंगे।”
लगभग 10 दिनों में ही भारत पर से निलंबन का कलंक धोने में केंद्र सरकार से लेकर न्यायपालिका ने जिस प्रकार से आकाश पाताल एक किए हैं, वो अपने आप में प्रशंसा के योग्य हैं। परंतु यही एक कारनामा नहीं, जो ये बताता है, जो दिखाता है कि हम खेलों के महासागर में कितना आगे बढ़ रहे हैं।
सूबेदार नीरज चोपड़ा की सफलता एक और प्रमाण है जो ये सिद्ध करता है कि आवश्यक नहीं कि परिस्थितियां आपके साथ ही हों। निरंतर प्रयास और सतत परिश्रम से आप विकट से विकट परिस्थितियों में भी विजय प्राप्त कर सकते हैं। हाल ही में इतिहास रचते हुए नीरज चोपड़ा ने प्रतिष्ठित IAAF डायमंड लीग चैम्पियनशिप के फाइनल मीट में न केवल जगह बनायी, जहां पहुंचना भी बड़े-बड़े एशियाई एथलीटों के लिए स्वप्न माना जाता था, अपितु विश्व चैम्पियनशिप 2023 के लिए प्रत्यक्ष क्वालिफ़िकेशन प्राप्त की है।
जिस देश में कॉमनवेल्थ में ही मेडल प्राप्त करने को संसार में विजय प्राप्त करना मान लेते थे, वहां पर भाला फेंक में विशेषज्ञता प्राप्त करने वाले इस धावक ने कि भई प्रसिद्धि तो सब ठीक है, पर जो मज़ा जीतने में है, वो और कहीं नहीं। पहले जूनियर विश्व चैम्पियनशिप, फिर एशियन गेम्स, और फिर सीधा टोक्यो ओलिंपिक्स में जो इन्होंने गर्दा उड़ाया, उसके बारे में जितना लिखा जाए उतना कम। निस्संदेह भारत को प्रथम व्यक्तिगत स्वर्ण पदक अभिनव बिन्द्रा ने जिताया, परंतु नीरज चोपड़ा के स्वर्ण पदक की बात ही कुछ और थी, क्योंकि ये स्वतंत्र भारत में एथलेटिक्स का प्रथम पदक है– न कांस्य, न रजत, सीधा स्वर्ण।
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परंतु वे उतने पर ही नहीं रुके, इसी वर्ष विश्व एथलेटिक्स चैम्पियनशिप में चोट से जूझने के बाद भी रजत पदक प्राप्त करने में सफल रहे, जो लंबी कूद में अंजू बॉबी जॉर्ज द्वारा प्राप्त कांस्य पदक के बाद भारत का द्वितीय पदक है। अब भारत पहले वाला भारत नहीं रहा, जो केवल क्रिकेट के बल पर चमकता था, और थोड़ा बहुत हॉकी के कारण जाना जाता था। अब भारत हर खेल में अपने आप को परखने के लिए तैयार है।
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