भारत एवं रूस दो ऐसे देश हैं जिसने सदैव एक दूसरे की मदद की है। मौजूदा समय में भी रूस के साथ भारत की दोस्ती एक नए आयाम के साथ आगे बढ़ रही है। रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने वर्ष 2015 में ईस्टर्न इकोनॉमिक फ़ोरम की स्थापना की थी, जिसका उद्देश्य पूर्वी क्षेत्रों का विकास करना है। भारत काफी पहले से ही इसमें भाग लेता आ रहा है। यह वैश्विक निवेश समुदायों के भीतर संबंधों को स्थापित करने और मजबूत करने के लिए एक प्रमुख अंतरराष्ट्रीय मंच है। 5-8 सितंबर 2022 तक होने वाले इसके सातवें संस्करण में भी भारत को बुलाया गया। वर्चुअल होने वाली इस कॉन्फ्रेंस में पीएम नरेंद्र मोदी ने भाग लिया और दोनों देशों के संबंधों और नीतियों को लेकर प्रतिक्रिया भी दी है। साथ ही उन्होंने आर्कटिक नीति को लेकर भी संकेत दे दिए हैं, जो आने वाले समय में पश्चिमी देशों की मुश्किलें बढ़ा सकते हैं।
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पीएम मोदी ने कही ये बात
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत-रूस के बीच द्विपक्षीय संबंधों का जिक्र करते हुए कहा कि दोनों देशों के बीच दोस्ती काफी पुरानी है और समय की मांग भी है। दोनों देशों की दोस्ती समय की कसौटी पर पूरी तरह से खरी उतरी है। उन्होंने कहा, “मुझे ईस्टर्न इकोनॉमिक फोरम को संबोधित करते हुए बेहद खुशी हो रही है और इस सम्मान के लिए राष्ट्रपति पुतिन को धन्यवाद देता हूं। भारतीय इतिहास और सभ्यता में ‘संगम’ का एक विशेष अर्थ होता है। नदियों, लोगों और विचारों का संगम या एक साथ आना है।” पीएम मोदी ने कहा कि कोरोना महामारी के दौरान रूस ने स्वास्थ्य के क्षेत्र में भारत को भरपूर मदद पहुंचाया है। टीकाकरण के क्षेत्र में रूस के सहयोग को हमेशा याद किया जाएगा।
पूर्वी आर्थिक मंच के समापन समारोह को वर्चुअल रूप से संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रूस के 11 पूर्वी क्षेत्रों के गवर्नरों को भारत आने का न्योता भी दिया। पीएम मोदी ने कहा कि “मैं रूसी सुदूर पूर्व के विकास के लिए राष्ट्रपति पुतिन के दृष्टिकोण की सराहना करता हूं। इस दृष्टिकोण को साकार करने में भारत रूस का एक विश्वसनीय भागीदार बनेगा। 2019 में, जब मैं फोरम में हिस्सा लेने के लिए व्लादिवोस्तोक गया था, मैंने सुदूर पूर्व नीति को लागू करने के लिए भारत की प्रतिबद्धता की घोषणा की थी।”
उन्होंने कहा, उस समय हमने भारत की ‘Act Far-East’ नीति की घोषणा की थी। परिणामस्वरूप, रशियन फार ईस्ट के साथ विभिन्न क्षेत्रों में भारत का सहयोग बढ़ा है। पीएम ने कहा कि भारत आर्कटिक विषयों पर रूस के साथ अपनी भागीदारी को मजबूत करने के लिए इच्छुक है। ऊर्जा के क्षेत्र में भी सहयोग की अपार संभावनाएं हैं। ऊर्जा के साथ-साथ, भारत ने फार्मा और हीरों के क्षेत्रों में भी Russian Far East में महत्वपूर्ण निवेश किए हैं।
पश्चिमी देशों के आधिपत्य में सेंध लगाएंगे भारत और रूस
आपको बताते चलें कि विकास की अनेक संभावनाएं समेटे आर्कटिक क्षेत्र ऊर्जा का नया भंडार है, जिस पर पूरी दुनिया की नजर टिकी हुई है। भारत भी आर्कटिक क्षेत्र को लेकर काफ़ी उत्साहित है। दरअसल, आर्कटिक क्षेत्र में न सिर्फ़ ऊर्जा संबंधी सम्भावनाएं हैं बल्कि अन्य संसाधन भी विद्यमान हैं, जिसे लेकर देशों में होड़ लगनी प्रारम्भ हो गई है। प्रधानमंत्री मोदी के भाषण के अनुसार यदि रूस और भारत एक साथ आते हैं तो एक ऐसा ब्लॉक तैयार हो सकता है, जो पश्चिमी देशों की ‘आधिपत्य’ को तोड़ सकता है।
ज्ञात हो कि पश्चिमी देश जो अपने आप को तुर्रम खां समझते थे, आज वे सभी महंगाई, ऊर्जा संकट एवं राजनैतिक अस्थिरिता से जूझ रहे है। कनाडा और अमेरिका की स्थिति भी कुछ ख़ास अच्छी नहीं है। विकास की जड़त्व को प्राप्त कर चुके ये देश अब न सिर्फ़ विकास के क्रम में ढलान पर हैं अपितु बढ़ती हुई एशियाई शक्तियों ने इनकी परेशानियो को और बढ़ा दिया है। अगर भू-राजनीति के दांव पेंच को ध्यान से देखा जाए तो यूरोप अपनी समस्याओं से जूझ रहा है। बड़े यूरोपीय देश जैसे इटली, जर्मनी, फ्रांस, यूके सबके हालत ख़स्ता हो चले हैं और रूस के द्वारा प्राकृतिक गैस की आपूर्ति रोके जाने के बाद ये देश घुटने पर आ गए हैं।
अब यदि ऐसे में भारत और रूस एक साथ मिलकर आर्कटिक क्षेत्र के संसाधनो का दोहन करते हैं तो यह दोनों देशों के लिए फायदे का सौदा तो होगा ही, साथ ही हम पर पश्चिमी देशों की निर्भरता भी बढ़ेगी और एक नया वर्ल्ड ऑर्डर बनकर तैयार होगा, जिसमें पश्चिमी देशों की औक़ात वो नही रह जाएगी जो आज है। हालांकि, प्रतिबंध के जाल में फंसे रूस की मंशा यह रही है कि भारत, चीन एवं कुछ अन्य देशों को लेकर एक ब्लॉक बनाया जाए, जिसमें डॉलर की हेजेमनी को कम किया जाए और नए पेमेंट सिस्टम की शुरुआत की जाए। मौजूदा समय में आप दुनिया के चौधरी तभी बन सकते हैं जब आप घर से मज़बूत हो और रूस जितना भी मज़बूत हो लेकिन उसकी अर्थव्यवस्था की हालत सही नहीं है। ऐसे में देखना यह भी होगा कि क्या रूस ऐसे किसी क़वायद में चीन को नजरअंदाज करेगा या उसे भी अपने साथ लेकर चलेगा।
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