श्री ब्रह्मा तथा शिव की उत्पत्ति –
स्वागत है आपका आज के इस लेख में हम जानेंगे की शिव पुराण इन हिंदी के बारे में साथ ही इससे जुड़े कुछ तथ्यों के बारें में भी चर्चा की जाएगी अतः आपसे निवेदन है कि यह लेख अंत तक जरूर पढ़ें.
श्री ब्रह्मा जी ने बताया कि श्री शिव ने पति-पत्नी व्यवहार से मेरी भी उत्पति की तथा फि मुझे अचेत करके कमल पर डाल दिया। यही काल महाविष्णु रूप धारकर अपनी नाभि से एक कमल उत्पन्न कर लेता है। ब्रह्मा आगे कहता है कि फिर होश में आया। कमल की मूल को ढूंढना चाहा, परन्तु असफल रहा। फिर तप करने की आकाशवाणी हुई। तप किया। फिर मेरी तथा विष्णु की किसी बात पर लड़ाई हो गई फिर रूद्र रूप धारण करके सदाशिव पाँच मुख वाले मानव रूप में प्रकट हुए, उनके साथ शिवा (दुर्गा) भी थी।
फिर शंकर को अचानक प्रकट किया (क्योंकि यह पहले अचेत था, फिर सचेत करके तीनों को इक्कठे कर दिया) तथा कहा कि तुम तीनों सृष्टी-स्थिति तथा संहार का कार्य संभालो।रजगुण प्रधान ब्रह्मा जी, सतगुण प्रधान विष्णु जी तथा तमगुण प्रधान शिव जी हैं। इस प्रकार तीनों देवताओं में गुण हैं, परन्तु शिव (काल रूपी ब्रह्म) गुणातीत माने गए हैं
शिव महिमा –
भगवान शिव सदैव लोकोपकारी और हितकारी हैं। त्रिदेवों में इन्हें संहार का देवता भी माना गया है। अन्य देवताओं की पूजा-अर्चना की तुलना में शिवोपासना को अत्यन्त सरल माना गया है। अन्य देवताओं की भांति को सुगंधित पुष्पमालाओं और मीठे पकवानों की आवश्यकता नहीं पड़ती । शिव तो स्वच्छ जल, बिल्व पत्र, कंटीले और न खाए जाने वाले पौधों के फल यथा-धूतरा आदि से ही प्रसन्न हो जाते हैं। शिव को मनोरम वेशभूषा और अलंकारों की आवश्यकता भी नहीं है। वे तो औघड़ बाबा हैं।
सार विचार –
काल रूपी ब्रह्म अर्थात् सदाशिव तथा प्रकृति (दुर्गा) श्री ब्रह्मा, श्री विष्णु तथा श्री शिव के माता पिता हैं। दुर्गा इसे प्रकृति तथा प्रधान भी कहते हैं, इसकी आठ भुजाऐं हैं। यह सदाशिव अर्थात् ज्योति निरंजन काल के शरीर अर्थात् पेट से निकली है। ब्रह्म अर्थात् काल तथा प्रकृति (दुर्गा) सर्व प्राणियों को भ्रमित रखते हैं। अपने पुत्रों को भी वास्तविकता नहीं बताते। कारण है कि कहीं काल (ब्रह्म) के इक्कीस ब्रह्मण्ड के प्राणियों को पता लग जाए कि हमें तप्तशिला पर भून कर काल (ब्रह्म-ज्योति निरंजन) खाता है। इसीलिए जन्म-मृत्यु तथा अन्य दुःखदाई योनियों में पीडि़त करता है तथा अपने तीनों पुत्रों रजगुण ब्रह्मा जी, सतगुण विष्णु जी, तमगुण शिव जी से उत्पत्ति, स्थिति, पालन तथा संहार करवा कर अपना आहार तैयार करवाता है। क्योंकि काल को एक लाख मानव शरीरधारी प्राणियों का आहार करने का शाप लगा है, कृपया श्रीमद् भगवत गीता जी में भी देखें ‘काल (ब्रह्म) तथा प्रकृति (दुर्गा) के पति-पत्नी कर्म से रजगुण ब्रह्मा, सतगुण विष्णु तथा तमगुण शिव की उत्पत्ति।
शिव पुराण का पाठ कैसे करें –
शिव पुराण हिंदू धर्म के संस्कृत ग्रंथों में 18 पुराण शैली में से एक है, और शैव धर्म साहित्य संग्रह का हिस्सा है। यह ग्रंथ मुख्य रूप से भगवान शिव और देवी पार्वती के साथ जुड़ा है, लेकिन इसमें सभी देवी, देवताओं का वर्णन मिलता है, और उनका सम्मान करता है। शिव पुराण में शिव-केंद्रित ब्रह्मांड विज्ञान, पौराणिक कथाओं, देवताओं के बीच संबंध, नैतिकता, योग, तीर्थ (तीर्थयात्रा) स्थल, भक्ति, नदियाँ और भूगोल, और अन्य विषयों के अध्याय शामिल हैं। यह पाठ शैववाद के साथ धर्मशास्त्र पर ऐतिहासिक जानकारी का एक महत्वपूर्ण स्रोत है। शिव पुराण के सबसे पुराने अध्यायों में महत्वपूर्ण वेदांत दर्शन है।
शिव पुराण में क्या लिखा है –
सभी पुराणों में शिव पुराण को सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। इसमें भगवान शिव के कल्याणकारी स्वरूप के गुणगान, उनकी पूजा, पत्तियों, शिवलिंग और भगवान शिव के निराकार स्वरूप प्रतीक के बारे में, शिवलिंग की उत्पत्ति के बारे में, सृष्टि के निर्माण से जुड़ी रहस्यमयी बातों के बारे में, शिवरात्रि के दिन के महत्व के बारे में, साथ ही घोर कलयुग के बारे में बताया है।
शिव पुराण में श्लोक –
शिवपुराण में 24,000 श्लोक मिलते हैं, जो सात संहिताओं में विभक्त है।
शिव पुराण कब पढ़ना चाहिए –
शिव पुराण जैसे पवित्र ग्रंथ का पाठ कभी भी कर सकते है। हर दिन हर समय शिव पुराण का पाठ शुभकारी ही है। पर फिर भी इसका पाठ अगर श्रावण मास में किया जाए तो अति शुभ फल देनेवाला माना गया है, क्यूंकि श्रावण मास शिवजी का पसंदीदा मास माना जाता है। इसके अलावा सोमवार को इसका पाठ ज़रूर करना चाहिए, सोमवार को शिव पुराण का पाठ करने से शिवजी की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
शिव पुराण का पाठ –
किसी भी महीने में ये पाठ किया जा सकता है, पर सावन माह में भगवान शंकर की कृपा प्राप्त करने के लिए शिव महापुराण के श्रवण वाचन का बहुत महत्व है।
- महाशिवरात्री पर भी इसके पाठ का बहुत महत्व है। इसके अलावा आप कभी इसका पाठ करना चाहे, तो सोमवार से इसकी शुरुआत कर सकते हैं, क्योंकि ज्यादा दिनों तक नियमों में बंधे रहना मुश्किल होता है।
- तो सात दिनों में शिव पुराण की सात संहिताओं का पाठ किया जा सकता है। इसके अलावा पूरे एक महीने में भी इसका पाठ किया जा सकता है।
शिव पुराण पढ़ने के नियम-
- इसका संपूर्ण फल पाने के लिए नियमों का पालन करना भी जरूरी है। शिवपुराण में ही इसके नियमों का वर्णन है। शिवपुराण को पढ़ने या सुनने से पूर्व, तन और मन शुद्ध करें।
- साफ स्वच्छ वस्त्र धारण करें। पाठ शुरू करने से पहले गंगाजल का छिड़काव जरूर करें। मन में भगवान शिव के प्रति श्रद्धा और आस्था रखें।
- किसी की निंदा चुगली न करें, अन्यथा पुण्य समाप्त हो जाते हैं। गरीब रोगी, पापी, भाग्यहीन एवं निःसंतानी को शिवपुराण की कथा जरूर सुननी चाहिए।
- शिवपुराण का पाठ करने वालों को व्रत का पालन करना चाहिए। हो सके तो पाठ के बाद फलाहार ले, नहीं तो पाठ के बाद ही सात्विक भोजन ग्रहण करें और तामसिक पदार्थों का त्याग करे।
शिव पुराण का रहस्य –
- शिवपुराण के अनुसार धन संबंधी समस्या खत्म करने का उपाय बताते है। इस पुराण में कई चमत्कारी उपाय बताए गए हैं। जो हमारे जीवन की धन संबंधी समस्या को खत्म करते हैं, साथ ही अक्षय पुण्य प्रदान करती है।
- शिवलिंग के पास प्रतिदिन रात्रि के समय 10 से 12 के बीच दीपक लगाना चाहिए।
- दीपक लगाते समय ओम नमः शिवाय मंत्र का जाप करना चाहिए। नियमित रूप से अपनाने वाले व्यक्ति को अपार धन संपत्ति प्राप्त हो सकती है। इस उपाय के साथ ही प्रतिदिन सुबह के समय शिवलिंग पर जल, दूध, चावल आदि पूजन सामग्री अर्पित करना चाहिए।
- भोलेनाथ की कृपा से आप सबके बीच जीवन की सब परेशानियां दूर हो जाए और आपकी सब मनोकामनाएं पूर्ण हो।
आशा करते है कि शिव पुराण इन हिंदी के बारे में सम्बंधित यह लेख आपको पसंद आएगा एवं ऐसे ही रोचक लेख एवं देश विदेश की न्यूज़ पढ़ने के लिए हमसे फेसबुक के माध्यम से जुड़े।