90 के दशक की फिल्में हों और उसमें कादर खान न हों, ऐसा होना कुछ यूं है कि बंधु खाना बन गया और पता चला कि नमक ही नहीं है। जी हां तब के समय में फिल्मों के लिए अति आवश्यक थे कादर खान। आप चाहे जो रोल कह दें– लेखक, विलेन, हास्य अभिनेता, कादर खान हर रोल में ऐसे जंचते थे जैसे सांचे में पानी।
इस लेख में हम जानेंगे कादर खान के बारे में जिनका सफर अफगानिस्तान से प्रारंभ हुआ और खत्म हुआ टोरोन्टो में, पर इस बीच जो प्रभाव उन्होंने भारतीय सिनेमा, विशेषकर बॉलीवुड पर अपने बहुमुखी प्रतिभा से डाला, उसका कोई तोड़ नहीं।
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कादर खान कई फिल्मों के संवाद लेखक थे
कादर खान? जी हां, कुछ सोशल मीडिया के भोले बालक और उनके अनुयायी आएंगे बताने कि इन्होंने कैसे सनातन धर्म के विरुद्ध विष उगला, चाहे वो ‘कुली’ हो, ‘देश प्रेमी’ हो, आप बोलते जाइए और इनकी सूची बढ़ती जाएगी। यह पूर्णत्या असत्य नहीं है, परंतु एक सत्य यह भी है कि कादर खान इन फिल्मों के संवाद लेखक थे, कहानीकार नहीं। संवाद लेखक वही लिखेगा जो कथाकार उसे बताएगा, अपने मन से बनाकर तो लिखेगा नहीं। कभी इस बात पर सोचा है आपने?
कादर खान कितने प्रभावशाली थे इस बात का अंदाज़ा आप दिलीप कुमार के साथ हुई एक अनोखी घटना से लगा सकते हैं। कभी सिविल इंजीनियरिंग के प्रोफेसर होने के साथ-साथ कादर खान नाट्यकला के भी अद्भुत ज्ञाता थे, और उनकी कला ने दिलीप महोदय [यूसुफ खान] को भी प्रभावित किया था। परंतु एक स्टार के भी अपने नखरे होते हैं और यही वह झेलने को तैयार नहीं थे।
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कादर खान का एक साक्षात्कार
एक साक्षात्कार में कादर खान ने बताया था कि “दिलीप साहब ने मुझसे कहा कि मैं आपका नाटक देखना चाहता हूं। लेकिन मैंने कहा कि सर मेरी दो शर्ते हैं, यदि आप कबूल कर लें तो हमारी इज्जत अफजाई हो जाएगी। पहली शर्त यह कि आपको नाटक देखने के लिए टाइम पर आना होगा। दूसरी शर्त यह कि पूरा प्ले आपको बैठकर देखना होगा। हमारी संस्कृति है कि नाटक का पर्दा उठने और गिरने तक कोई अपनी जगह से नहीं हिलता। अगर आपको खराब लगे तो आप चले जाइये, लेकिन अगर आपको अच्छा लगे तो यह सोचकर मत उठिएगा कि मैं दिलीप कुमार हूं, और मेरे सामने बच्चे अच्छी एक्टिंग कर रहे हैं।”
आपको विश्वास नहीं होगा, परंतु दिलीप कुमार समय से आधा घंटा पहले आए। कादर खान के अनुसार, उन्होंने स्टेज पर आकर घोषणा की कि मुझे नहीं मालूम था कि स्टेज पर इतने अच्छे कलाकार होते हैं। उन्होंने कहा “मैंने कादर खान से कहा था कि मैं उन्हें फिल्म में लेना चाहता हूं”, और बस फिर क्या था कादर खान का फिल्मी सफर प्रारंभ हो गया था।
प्रारंभ में मनमोहन देसाई को कादर खान पर विश्वास नहीं था। उनका विचार स्पष्ट था, “तुम लोग शायरी तो अच्छी कर लेते हो पर मुझे चाहिए ऐसे डायलॉग जिस पर जनता ताली बजाए.”
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डायलॉग लिखने के लिए एक लाख से ज्यादा की फीस
फिर क्या था, इसे चुनौती की भांति लेते हुए कादर ख़ान संवाद लिखकर लाए और मनमोहन देसाई को कादर ख़ान के डायलॉग इतने पसंद आए कि वो घर के अंदर गए, अपना तोशिबा टीवी, 21000 रुपए और ब्रेसलेट कादर ख़ान को वहीं के वहीं उपहार में दे दिया। पहली बार कादर खान को डायलॉग लिखने के लिए एक लाख से ज्यादा की फीस मिली।
यहीं से शुरू हुआ मनमोहन देसाई, प्रकाश मेहरा और अमिताभ बच्चन के साथ उनका शानदार सफ़र। कादर ख़ान की लिखी फ़िल्में और डायलॉग एक के बाद एक हिट होने लगे। चाहे अग्निपथ हो, शराबी, सत्ते पे सत्ता- अमिताभ के लिए एक से बढ़कर एक संवाद कादर ख़ान ने दिए, और अभी तो हमने इनके बेजोड़ कॉमिक टाइमिंग का स्मरण भी नहीं कराया है। असली दुग्गल साब याद दिलाएं क्या?
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