घमंड तो रावण का भी चूर हुआ था फिर इंसान या किसी देश की क्या ही औकात है? घमंड एक ऐसी दीमक है जो किसी को भी धीरे-धीरे बर्बाद कर सकती है। अब घमंड की बात हो और अमेरिका का नाम न आए, ऐसा तो हो नहीं सकता। अमेरिका कथित महाशक्ति बनकर पूरी दुनिया को अपने हिसाब से चलाना चाहता हैं। परंतु आज उसी महाशक्ति का प्रभाव धीरे-धीरे कर कम होता चला जा रहा है। जिस डॉलर के दम पर अमेरिका इतना इतराता है, उसकी काट भी अब भारत निकालता नजर आ रहा है। भारतीय रुपया ने डॉलर (Dollar) की लंका लगाने की तैयारी पूरी कर ली है।
दरअसल, देखा जाये तो रूस और यूक्रेन (Russia Ukraine war) के बीच युद्ध ने दुनिया को कई सबक सिखाए हैं। जिसमें एक सबक यह भी है कि हमें किसी भी चीज के लिए एक देश पर पूरी तरह से निर्भर नहीं होना चाहिए। अभी तक किसी का काम भले ही डॉलर के बिना न चलता है। अंतरराष्ट्रीय व्यापार में हर चीज खरीदने के लिए डॉलर की आवश्यकता पड़ती है। परंतु अब कई देश मिलकर डॉलर का विकल्प तलाशने की तैयारी में जुटे हुए है। इनमें भारत और रूस भी शामिल हैं। भारत और रूस स्वयं को डॉलर मुक्त बनाने के लिए आपस में रुपये और रुबल में निरंतर व्यापार करने के प्रयास कर रहे हैं।
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India Russia trade
इस दिशा में कदम आगे बढ़ाते हुए कुछ समय पूर्व ही यूको बैंक और येस बैंक ने रूस के कुछ बैंको के साथ साझेदारी की है। इसके तहत दोनों देशों के बीच व्यापार के लिए रुपये में ही भुगतान किया जाने लगा। परंतु भारत की योजना केवल यही तक सीमित रहने की नहीं है। रूस को केवल शुरुआत है, इसके बाद अब भारत रुपये को वैश्विक स्तर पर मजबूत करने के लिए कदम आगे बढ़ाने जा रहे हैं।
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) तो पहले ही वैश्विक कारोबार रुपए में करने का ऐलान कर चुका है। ताजा जानकारी के अनुसार भारत कई छोटे देशों के साथ रुपयों के साथ द्विपक्षीय व्यापार करने के लिए बातचीत कर रहा है। देखा जाये तो भारत की प्रमुख भुगतान प्रणाली NPCI द्वारा निर्मित UPI को दुनियाभर से मान्यता मिल रही है, जिसके बाद भारत अपनी स्वदेशी भुगतान विधियों का भी अंतर्राष्ट्रीयकरण करने के प्रयासों को सफल बनाना चाहता है।
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रुपये में व्यापार के लिए छोटे देशों से बातचीत
द इकोनॉमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट की मानें तो छोटे देशों के साथ भारत सरकार की इस चर्चा का मुख्य उद्देश्य एक अलग तरह के पारिस्थितिकी तंत्र बनाकर स्विफ्ट को प्रतिस्थापित करना और डॉलर के प्रभुत्व वाले ट्रेडों को कोसों दूर करना है। रिपोर्ट के अनुसार इन देशों में जिम्बाब्वे, जिबूती, मलावी, सूडान और इथियोपिया जैसे अफ्रीकी देश सम्मिलित हैं। इससे साफ है कि भारत की नरेंद्र मोदी सरकार डॉलर पर अपनी निर्भरता कम करने और रुपये को मजबूत करने की कोशिशों में जुटी है।
इकोनॉमिक टाइम्स ने भारतीय आर्थिक व्यापार संगठन (IETO) के अध्यक्ष आसिफ इकबाल के हवाले से ये कहा कि “हम छोटे देशों के एक समूह के साथ जुड़ रहे हैं, जो समर्पित रुपया खाते के माध्यम से द्विपक्षीय व्यापार में रुचि ले सकते हैं।” उन्होंने आगे कहा- “हम द्विपक्षीय वार्ता को शुरू करने के लिए मदद कर रहे हैं, जिसके बाद हम NPCI से जुड़े UPI भुगतान प्रणाली के लिए एक पिच बनाएंगे। इस तरह के छोटे कदमों से रुपये को गैर-डॉलर द्विपक्षीय व्यापारों के माध्यम से धीरे-धीरे अंतरराष्ट्रीय दबदबा हासिल करने में मदद मिलेगी।
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अमेरिकी डॉलर का वर्चस्व
अमेरिकी डॉलर ने 1970 के दशक के आरंभ में सऊदी अरब के समृद्ध तेल साम्राज्य के साथ डॉलर में वैश्विक ऊर्जा व्यापार करने के लिए एक समझौते के साथ अपना खाता खोला था। ब्रेटन वुड्स प्रणाली के पतन से डॉलर की स्थिति में काफी ज्यादा सुधार देखने को मिला। इसने अनिवार्य रूप से अन्य विकसित बाजार मुद्राओं के आगे अमेरिकी डॉलर को खड़ा कर दिया। इसके बाद डॉलर ने कई ऊंचाइयों को छुआ। किंतु कहते हैं न जो जितना ऊंचा उड़ता है उतना ही नीचे भी आता है, वैसे ही अमेरिकी डॉलर की उड़ान के दिन भी खत्म करने के लिए भारत अपनी हर मुमकिन कोशिश में जुटा लगा हुआ है और भारतीय रुपया विश्व व्यापार में अपनी ठसक बनाने के लिए अमेरिकी डॉलर को मृत्यु शय्या पर लेटाने की तैयारी कर रहा है।
मूलतः रुपए को वैश्विक मुद्रा बनाने की शुरुआत वर्ष 2014 में मोदी सरकार के आने के बाद से हुई है। मोदी सरकार की सरल व्यापारिक नीति और सुलभ ऑनलाइन भुगतान व्यवस्था ने रुपए को एक नयी पहचान दिलायी है। वैसे तो हम नेपाल, भूटान एवं बांग्लादेश के साथ द्विपक्षीय समझौते के तहत रुपये एवं संबंधित देशों की मुद्रा में व्यापार करते थे किंतु रुपए को वैश्विक मुद्रा बनाने के क्रम में रूस-यूक्रेन युद्ध मील का पत्थर साबित हुआ।
देखा जाये तो डॉलर के वर्चस्व को खत्म करने और रुपये को मजबूर करने के लिए भारत द्वारा उठाया जा रहा यह कदम छोटा तो अवश्य नहीं है। क्योंकि कहते हैं न कि छोटे-छोटे प्रयासों से ही बड़ी सफलता मिलती हैं। ऐसे ही एक न एक दिन भारत अपने प्रयासों में सफल जरूर होगा। वो दिन दूर नहीं जब भारतीय रुपया, डॉलर का काल बन जायेगा।
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