राजनेता बनने के लिए लोगों का संघर्ष सुना होगा, दूसरे राजनेताओं के खिलाफ गलत बयानबाजी भी सुनी होगी, कभी-कभी वोट मांगने के लिए झूठे दावे और वादे भी सुने होंगे लेकिन एक अर्थशास्त्री को अपनी महत्वाकांक्षा के पीछे अर्थशास्त्र पर मूर्खतापूर्ण बयानबाजी करते हुए नहीं सुना होगा। मैंने सुना है अभी कुछ दिनों पहले ही सुना है। किसी सामान्य व्यक्ति को नहीं बल्कि दुनियाभर में प्रसिद्ध और भारत के पूर्व RBI गवर्नर रहे रघुराम राजन को सुना है। असल में राजनीति में अपना भविष्य तलाश रहे रघुराम राजन मोदी विरोध में इतने रंग चुके हैं कि वो अर्थव्यवस्था के मूलभूत नियमों को भी भूल गए हैं। अभी हाल ही में उन्होंने दावोस में इंडिया टुडे को दिए एक इंटरव्यू में कुछ ऐसी बातें कही कि कोई सामान्य व्यक्ति भी अपना माथा पकड़कर कहने लगेगा कि ‘भाई हिप्पोक्रेसी की भी सीमा होती है।’
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गजब टोपीबाजी है!
दरअसल, रघुराम राजन ने अभी हाल ही में दावोस में ‘विश्व आर्थिक मंच’ की बैठक को लेकर इंडिया टुडे के पत्रकार राहुल कंवल को इंटरव्यू दिया, जिसमें राहुल कंवल ने अर्थव्यवस्था से जुड़े कई प्रकार के सवाल किए। लेकिन उन सवालों का जवाब रघुराम राजन एक अर्थशास्त्री की तरह नहीं बल्कि विरोधी नेता की तरह दे रहे थे। पूरे इंटरव्यू में वो परिवहन, आयात, निर्यात और उद्योग जैसे सभी विषयों पर मोदी सरकार की नीतियों के विरोध में खड़े नजर आए। यही नहीं, उन्होंने इंटरव्यू में कई ऐसे जवाब भी दिए जोकि उनके ही जवाबों के विपरीत थे। आइए उन पर गौर करते हैं-
इंटरव्यू के दौरान जब राहुल कंवल ने सबसे पहले रघुराम राजन से मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों को लेकर उनके विचार जानना चाहे। उस पर राजन ने सरकार का विरोध करते हुए कहा कि सरकार बुनियादी ढांचे जैसे- सड़कों का निर्माण, पुलों का निर्माण कर रही है लेकिन सॉफ्ट इंफ्रास्ट्रक्चर प्वाइंट में प्रदर्शन संतोषजनक नहीं है। उसे ‘टैरिफ’ यानी आयात और निर्यात पर लगने वाले टैक्स पर ध्यान देना चाहिए। क्योंकि ‘टैरिफ’ दोनों ही चीजों को प्रभावित करता है।
उनके इस उत्तर का काउंटर करते हुए राहुल कंवल ने जवाब दिया कि टैरिफ तो दुनियाभर के देश लगाते हैं। उसके बाद रघुराम राजन ने अपना बचाव करते हुए कहा कि यदि भारत को दुनिया के बाजार में अपना स्थान बनाना है तो टैरिफ कम करना ही होगा।
‘….कोई पप्पू नहीं हैं’
इस सवाल के बाद कंवल ने भारत में इलेक्ट्रॉनिक क्षेत्र में हो रहे निर्माण को लेकर रघुराम राजन से सवाल किया। उन्होंने कहा, भारत में अब इलेक्ट्रॉनिक क्षेत्र में बड़ी तादाद में उत्पादन हो रहा है जोकि पहले बहुत कम होता था। इस सवाल के जवाब में रघुराम राजन ने कहा कि भारत में सिर्फ बाहर से पुर्जों को लाकर जोड़ने का काम किया जा रहा है और वह भी प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (PLI) योजना के अंतर्गत मिल रही सब्सिडी की वजह से, इसलिए यह कोई बहुत बड़ी उपलब्धि नहीं है।
लेकिन यहां राहुल कंवल का जवाब गौर करने योग्य है, जिसमें उन्होंने ताइवान, चीन, थाईलैंड जैसे देशों से चिप मैन्युफैक्चरिंग को यूएसए में ले जाने के लिए अमेरिका द्वारा 280 बिलियन डॉलर की सब्सिडी दिए जाने का जिक्र किया। लेकिन उसके बाद जब रघुराम राजन अपने ही जबावों में फंसने लगे तो उन्होंने कहा कि अमेरिका का सब्सिडी देना ठीक है लेकिन भारत का नहीं, क्योंकि पुर्जों को भारत लाकर असेंबल करने से बहुत कम लोगों को ही रोजगार मिलेगा।
यही नहीं, रघुराम राजन ने भारत सरकार द्वारा सेमीकंडक्टर उद्योग को बढ़ावा देने का भी विरोध किया जोकि आने वाले समय में भारत में चिप बनाने और निर्यात करने में बड़ी भूमिका अदा करेगा। उन्होंने गुजरात में 1.54 लाख करोड़ रुपये के सेमीकंडक्टर प्लांट लगा रही कंपनी वेदांता के बारे में कहा कि उसे इस क्षेत्र का अनुभव नहीं है। लेकिन वो यह भूल गए कि वेदांता के साथ में सेमीकंडक्टर क्षेत्र में ताइवान की धुरंधर कंपनी फॉक्सकॉन भी है, जोकि दुनिया की सभी बड़ी कंपनियो के लिए चिप बनाती है।रघुराम राजन ने इंडिया टुडे के साथ इस इंटरव्यू में एक दो बार नहीं बल्कि कई बार ऐसे बयान दिए, जो सीधे तौर पर उनकी कुंठा को प्रदर्शित करते हैं। इसके आलावा उन्होंने इसी इंटरव्यू में राहुल गांधी के बारे में भी कहा कि मैं उन्हें पिछले दस साल से जानता हूं। वो एक पढ़े लिखे और समझदार व्यक्ति हैं कोई पप्पू नहीं हैं।
ऑफिशियल तौर पर कांग्रेस के हो सकते हैं राजन!
ऐसे में रघुराम राजन द्वारा राहुल गांधी की इस प्रकार से तारीफ करना, भारत जोड़ो यात्रा में उनका शामिल होना और मोदी सरकार की नीतियों का सिर्फ विरोध के लिए विरोध करना स्पष्ट रूप से संकेत देता है कि वह कांग्रेस पार्टी में अपना स्थान बनाने में लगे हुए हैं। यदि रघुराम राजन के इस इंटरव्यू के बारे में संक्षेप में कहा जाए तो एक बात स्पष्ट रूप से देखने को मिलती है कि रघुराम राजन आरबीआई के गवर्नर पद से हटने के बाद से ही बौखलाए हुए हैं। उनके तर्कों में अर्थशास्त्री वाले तर्क कम और एक नेता वाले तर्क अधिक दिखते हैं। ऐसे में अब अगर राजन आने वाले समय में कांग्रेस पार्टी का हाथ थाम, राहुल के पीछलग्गू बन जाए तो आश्चर्यचकित मत होइएगा।
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