कोई कम कमाता है तो लोग उसे हीन भावना से देखते हैं, कोई ज्यादा पैसे वाला हो जाए तो वह समाज के एक वर्ग की नजर में अपराधी हो जाता है। ज्यादा कमाने वाले व्यक्ति को ऐसे पेश किया जाता है मानों सारी दुनिया के गलत काम करके ही उसने पैसे बनाए हैं। अडानी ग्रुप के गौतम अडानी पर इस देश का विपक्ष हमेशा से ही हमलावर रहा है, वो अलग बात है कि गैर भाजपा शासित राज्यों में भी उनकी कंपनियां या उनके प्रोजेक्ट्स धड़ल्ले से चल रहे हैं। हाल ही में हिंडनबर्ग की रिपोर्ट सामने आने के बाद जब उनकी कंपनियों के शेयर्स की कीमते धड़ाम हुई हैं तो ये खुश हो रहे हैं। उन्हें इस बात का भी एहसास नहीं है कि ओवरऑल घाटा देश को ही हो रहा है।
दरअसल, अडानी की कंपनियों के शेयर्स गिरे तो एक खुलासा हुआ कि अडानी ने SBI यानी स्टेट बैंक ऑफ इंडिया से 3000 करोड़ का लोन ले रखा है तो अब जब अडानी के शेयर्स डूब रहे हैं तो इससे स्टेट बैंक का पैसा भी डूब जाएगा। इसी तरह यह भी कहा जा रहा है कि LIC ने भी अडानी की कंपनियों के शेयर्स खरीदे थे तो LIC भी अडानी के बर्बाद होने पर बर्बाद हो जाएगा। ऐसे में विपक्ष से लेकर वामपंथियों तक ने इस मुद्दे पर मोदी सरकार को कोसना शुरू कर दिया है कि सरकार ने अपने करीबी को लाभ पहुंचाने के चक्कर में सरकारी कंपनी को डुबा दिया लेकिन इन फर्जी दावों में कहीं से कोई सच्चाई नहीं है। हम ऐसा क्यों कह रहे हैं आपको इस लेख में विस्तार से बताएंगे।
अभी भी नुकसान में नहीं है LIC
मीडिया से लेकर सोशल मीडिया तक हर जगह अडानी ग्रुप की कंपनियों के शेयर में आई भारी गिरावट के कारण LIC पर आने वाले खतरे को लेकर बात कही जा रहा है और तमाम दावे किए जा रहे हैं। इसी बीच इस मामले को लेकर एलआईसी ने अपना आधिकारिक बयान जारी किया है और विपक्ष के एजेंडे का गुब्बारा फोड़ दिया है। भारतीय जीवन बीमा निगम (LIC) ने अडानी ग्रुप में अपने निवेश को लेकर सफाई दी है और साफ किया है कि यह इन्वेस्टमेंट संस्था के लिए बनाये गए निर्धारित रिस्क मैनेजमेंट फ्रेमवर्क के अंतर्गत ही किया गया है। कंपनी के डिपार्टमेंट ऑफ इनवेस्टमेंट एंड पब्लिक एसेट मैनेजमेंट (DIPAM) के सचिव तुहिन कांत पांडे ने बताया है कि LIC को नुकसान की संभावनाएं न के बराबर है।
एलआईसी के सचिव ने कहा है कि LIC ने पहले ही एक पब्लिक नोट जारी कर साफ कर दिया है कि अडानी ग्रुप में उनके निवेश का स्तर क्या है और उस निश्चित तारीख तक उसकी वैल्यू क्या है। LIC शेयर बाजार में रिस्क के साथ निवेश कर सकता है बशर्ते वो रिस्क मैनेजमेंट फ्रेमवर्क के अंदर हो, जिसे कि IIDAI रेगुलेट कर रहा है। LIC ने बताया है कि उसने अडानी ग्रुप के शेयर में कई वर्षों के अंतर में ₹30,127 करोड़ रुपये का निवेश किया, जिसकी वैल्यू 27 जनवरी 2023 तक ₹56,142 करोड़ थी। यानी LIC अगर अभी अडानी ग्रुप में किए अपने सभी निवेश को आज बेच दे तो उसे कुल 56,142 करोड़ रुपये मिलेंगे, जो उसके मूल निवेश से करीब 26,016 करोड़ रुपये अधिक है।
एलआईसी के कुल निवेश के तहत अडानी ग्रुप में किया उसका निवेश बुक वैल्यू के अनुसार, 0.975 प्रतिशत ही है यानी 1 प्रतिशत भी नहीं है। लाभांश (डिविडेंड्स) और विनिवेश (डिसइन्वेस्टमेंटस) पर एक प्रश्न का उत्तर देते हुए, DIPAM सचिव ने कहा कि अगले वर्ष का लक्ष्य ₹94,000 करोड़ है, जिसमें से ₹51,000 करोड़ विनिवेश के लिए है और ₹43,000 करोड़ लाभांश प्राप्तियों के लिए है।
LIC ने अपने बयान में स्पष्ट कर दिया कि अडानी के शेयर्स के गिरने के बावजूद उन शेयरों से ही LIC को फायदा हुआ है। अब यदि आज भी LIC अडानी ग्रुप की कंपनियों के अपने शेयर्स बेच दे तो भी उसे मोटा मुनाफा हासिल होगा। ऐसे में LIC के भविष्य को केवल अडानी के शेयरों के भविष्य के साथ जोड़कर देखना नए नए राजनेताओं की कुंदबुद्धि का प्रमाण है क्योंकि विपक्षी दलों और मोदी विरोधियों को लगता है कि अडानी के आर्थिक नुकसान से मोदी सरकार को नुकसान होगा और जब आर्थिक स्थिति खराब होगी तो राजनीतिक स्तर पर बीजेपी के लिए चुनौतियां बढ़ेंगी। मतलब कुछ भी!
विपक्षियों को लग रहे हैं झटके पर झटके
हम पहले ही बता चुके हैं कि अडानी ग्रुप के खिलाफ आई हिंडनबर्ग रिसर्च रिपोर्ट एक छलावा है, जो कि केवल बाजार को अस्थिर करने का प्रयास था। लेकिन भारत में इसने विपक्षियों का काम आसान बना दिया। ध्यान देने योग्य है कि सरकार में रहते हुए जिन कांग्रेसियों को बिजनेसमैन अच्छे लगते हैं, सरकार से निकलते ही वे कांग्रेसियों को चुभने लगते हैं और कांग्रेस अभी ज्यादा उत्साहित है। हालांकि, यह रिपोर्ट 27 जनवरी की है, उसके बाद की तमाम चीजें सामने आनी बाकी है।
वहीं, हिडनबर्ग की रिपोर्ट ने कहीं न कहीं गर्त में ले जाने वाली विपक्षी दलों की मानसिकता भी जाहिर कर दी है कि विपक्षी दलों को देश को आर्थिक विकास में तेजी से योगदान देने वाला कतई पसंद नहीं हैं क्योंकि उससे वर्तमान सरकार को फायदा होता है और राजनीतिक तौर पर यह सत्ताधारी दल के लिए अच्छा माना जाता है। यही कारण है कि अडानी के नुकसान को पहले मोदी सरकार की लापरवाही से जोड़ा गया। उसके बाद यह आरोप लगाया गया कि SBI और LIC जैसी कंपनियों का अडानी ग्रुप में निवेश उन्हें बर्बाद कर देगा। उसके बाद यह दावा किया गया कि उन सरकारी कंपनियो ने मोदी सरकार की शह पर अडानी की कंपनियों नें निवेश किया, जबकि अब जब सभी की सफाई आई तो विपक्षी दलों को झटके पर झटके लग रहे हैं।
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