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कर्णम मल्लेश्वरी: भारत की ऐसी नायिका जिसे अब भी उनका उचित सम्मान नहीं मिला

ये भेदभाव क्यों?

Animesh Pandey द्वारा Animesh Pandey
29 September 2023
in खेल
कर्णम मल्लेश्वरी: भारत की ऐसी नायिका जिसे अब भी उनका उचित सम्मान नहीं मिला
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हमारे देशों में कथाओं और प्रेरणाओं की शायद ही कोई कमी रही होगी। एक ढूंढें, हज़ार मिलेंगे, और खेल जगत भी इसका अपवाद नहीं है। विगत एक दशक में कई खिलाडियों के उपलब्धियों को सिल्वर स्क्रीन से लेकर पुस्तकों में जीवंत किया गया है, चाहे महेंद्र सिंह धौनी हो, मिल्खा सिंह , या फिर फोगाट परिवार ही क्यों न हो।

परन्तु फिर भी कई लोग हैं, जिनको लगता है कि ये सब पर्याप्त नहीं है, क्योंकि हमारे बायोपिक्स में महिलाओं का प्रतिनिधित्व नगण्य है। अब ये एक ऐसा विषय है जिसपे बोलो तो समस्या, न बोलो तो भी समस्या। ऐसा भी नहीं है कि महिला खिलाडियों का चित्रण हुआ ही नहीं है। एम सी मेरी कॉम हो, मिताली राज हो, कई महिला खिलाडियों को सिल्वर स्क्रीन पर प्रतिनिधित्व मिला है। यहाँ तक कि जो खिलाडी बायोपिक के योग्य भी नहीं है, उन्हें भी अपनी फिल्में मिल चुकी है।

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परन्तु एक महिला चैम्पियन ऐसी भी है, जिसकी आज भी कम ही लोग चर्चा करते हैं। इन्होने एक नहीं, लगातार दो बार विश्व चैम्पियनशिप में स्वर्ण पदक, जो कोई क्रिकेटर तो छोड़िये, कोई भी भारतीय एथलीट आज तक नहीं दोहरा पाया। आज हम बात करेंगे उन कर्णम मल्लेश्वरी की, जो आज भी उस सम्मान से वंचित है, जो उन्हें मिलना चाहिए था।

 झोपड़ी में ट्रेनिंग से विश्व चैम्पियन बनने तक

इस अद्भुत चैम्पियन की कथा प्रारम्भ होती है आंध्र प्रदेश के मध्य में स्थित वूसावानीपेटा नामक एक छोटे से गांव से। कर्णम पांच बहनों वाले परिवार में मझली तान थी, परन्तु अन्य परिवारों की तुलना में यहाँ बेटियों के साथ किसी प्रकार का भेदभाव नहीं होता था। कर्णम के माता-पिता ने यह सुनिश्चित किया कि उनकी सभी बेटियों को अपने सपनों को आगे बढ़ाने का समान मौका मिले। उनके पालन पोषण का ही परिणाम था कि कर्णम को आगे चल भारोत्तोलन में प्रवेश करने की प्रेरणा मिली।

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12 साल की छोटी सी उम्र में, कर्णम ने अपने कोच नीलमशेट्टी अपन्ना के मार्गदर्शन में, एक साधारण फूस की झोपड़ी में अपनी भारोत्तोलन यात्रा शुरू की। पहली नज़र में, वह सामान्य भारोत्तोलक नहीं लगती थी, जिसके कारण कोच अपन्ना इन्हे भर्ती करने को इच्छुक नहीं थे। लेकिन कर्णम के दृढ़ संकल्प और समर्पण ने जल्द ही सभी पूर्वाग्रहों को धता बताते हुए अपनी एक विशिष्ट पहचान बनाई। जैसे-जैसे उनकी प्रतिभा निखरती गई, कर्णम ने दिल्ली का रुख किया, जहां भारतीय खेल प्राधिकरण ने उनकी क्षमता को पहचाना और उन्हें एक उभरते चैंपियन के रूप में स्वीकार किया। वहां से उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा।

1993 में कर्णम मल्लेश्वरी ने सभी को आश्चर्यचकित करते हुए प्रतिष्ठित विश्व भारोत्तोलन चैंपियनशिप में पोडियम फिनिश हासिल किया । परन्तु ये तो केवल प्रारम्भ था, क्योंकि 1994 में इस्तांबुल में विश्व चैंपियनशिप में रजत पदक के साथ उनकी जीत की यात्रा जारी रही। जिस देश में क्वार्टरफाइनल तक पहुंचना या ओलम्पिक के फाइनल स्पर्धा में पहुंचना भी उपलब्धि होती थी, वहां कर्णम मल्लेश्वरी ने सिद्ध किया कि विजय का स्वाद क्यों सदैव अनोखा रहता है।

वर्ष 1995 कर्णम के करियर का पीक था। उन्होंने न केवल 54 किलोग्राम वर्ग में कोरिया में एशियाई भारोत्तोलन चैंपियनशिप जीती, बल्कि विश्व चैंपियनशिप में 113 किलोग्राम का रिकॉर्ड तोड़ वजन उठाकर लगातार दूसरी बार विश्व चैम्पियन होने का गौरव प्राप्त किया। कर्णम ने 29 अंतर्राष्ट्रीय पदकों का एक प्रभावशाली संग्रह एकत्र किया था, जिसमें 11 स्वर्ण पदक शामिल थे, जो उनके अटूट समर्पण, अथक भावना और निर्विवाद प्रतिभा का प्रमाण था।

 सिडनी से पूर्व की असफलता

परन्तु सफलता कभी भी निरंतर नहीं रहती। ऐसे ही कर्णम मल्लेश्वरी की यात्रा चुनौतियों से रहित नहीं थी। 1997 में, जब वह मात्र 22 वर्ष की थीं, तब उन्होंने अपने साथी भारोत्तोलक राजेश त्यागी से विवाह करने का निर्णय लिया। परन्तु उनके फॉर्म पे मानो ग्रहण सा लग गया। इसके अतिरिक्त अपने वेट कैटेगरी को बढ़ाना भी प्रारम्भ में उनके लिए सकारात्मक परिणाम नहीं लाया।

इस अवधि के दौरान, भारत में भारोत्तोलन डोपिंग घोटालों के कारण अपनी धूमिल प्रतिष्ठा को हटाने के लिए संघर्ष कर रहा था। हालाँकि कर्णम का खुद ऐसे लोगों से कोई संबंध नहीं था, लेकिन इन नकारात्मक घटनाओं की छाया पूरे खेल पर पड़ी।

प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद, कर्णम मल्लेश्वरी ने उत्कृष्टता के लिए प्रयास करना जारी रखा। 1998 में, वह अपने उन्नत भार वर्ग में प्रतिस्पर्धा करते हुए एशियाई खेलों में रजत पदक हासिल करने में सफल रहीं। हालाँकि, इस उपलब्धि ने उसके उत्साह को बढ़ाने में कोई मदद नहीं की। परिस्थितियों का बोझ और डोपिंग विवादों का असर उनके करियर पर पड़ता रहा।

सिडनी में रचा इतिहास

जब सिडनी ओलंपिक शुरू हुआ, तब तक कर्णम मल्लेश्वरी ने पोडियम पर अपनी छाप छोड़ने का संकल्प ले लिया था, चाहे कुछ भी हो जाए। महिलाओं के 69 किलोग्राम वर्ग में प्रतिस्पर्धा करते हुए, उन्हें दुर्जेय विरोधियों का सामना करना पड़ा: बुल्गारिया की मिलिना ट्रेंडाफिलोवा, 1999 विश्व चैंपियनशिप की रजत पदक विजेता, चीन की जूनियर विश्व चैंपियन लिन वेनिंग, और हंगरी से 1999 विश्व चैंपियनशिप की कांस्य पदक विजेता एर्ज़सेबेट मार्कस।

स्नैच श्रेणी में, कर्णम ने अपना कौशल प्रदर्शित करते हुए अपने सभी वेट आसानी से उठाये और 110 किलोग्राम का सर्वश्रेष्ठ स्कोर हासिल किया। इस प्रदर्शन ने उन्हें कुल मिलाकर दूसरा स्थान दिलाया। जैसे-जैसे प्रतियोगिता क्लीन एवं जर्क श्रेणी में पहुंची, कर्णम का प्रदर्शन और भी उत्कृष्ट होता गया। उन्होंने 130 किलोग्राम वजन उठाया, जिससे उनका पोडियम स्थान सुनिश्चित हो गया। उनका संकल्प अटल था, क्योंकि उन्होंने चुनौतीपूर्ण 137.5 किलोग्राम वजन उठाने का प्रयास किया। हालाँकि, उसके साहसिक प्रयासों के बावजूद, वह इस प्रयास में निष्फल रही।

और पढ़े: वीरेंद्र सहवाग – क्रिकेट के सभी प्रारूपों में अब तक के सबसे महानतम और सबसे विस्फोटक सलामी बल्लेबाज

अगर कर्णम मल्लेश्वरी उस अतिरिक्त वजन को उठाने में सफल हो जातीं, तो उन्होंने कुल 247.5 किलोग्राम वजन उठाकर चीन की तत्कालीन स्वर्ण पदक विजेता लिन वेनिंग को 5 किलोग्राम से पीछे छोड़ दिया होता। इससे इतिहास बन जाता, क्योंकि वह किसी भी वर्ग में व्यक्तिगत ओलंपिक स्वर्ण हासिल करने वाली पहली भारतीय महिला बन जातीं।

फिर भी, उनका कांस्य पदक ऐतिहासिक से कम नहीं था। किसी भी भारतीय महिला को इस उपलब्धि के बराबर पहुंचने में 12 साल लग गए, और किसी भी श्रेणी में इसे पार करने में किसी भारतीय महिला को अतिरिक्त 4 वर्ष लग गए। कर्णम की उल्लेखनीय उपलब्धियों को पीछे छोड़ने में सैखोम मीराबाई चानू को भी लगभग दो दशक लग गए।

महिलाओं के 48 किलोग्राम वर्ग में मीराबाई चानू ने भारोत्तोलन में भारतीय महिलाओं की विरासत को जारी रखते हुए टोक्यो ओलंपिक में रजत पदक जीता। अपने अविश्वसनीय कारनामों के बावजूद, यह अफसोस की बात है कि दो बार की विश्व चैंपियन कर्णम मल्लेश्वरी को अभी तक वह मान्यता और स्वीकार्यता नहीं मिली है जिसकी वह वास्तव में हकदार हैं। अब समय आ गया है कि हम उनकी उल्लेखनीय उपलब्धियों को उनका उचित सम्मान दे, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि उनकी विरासत पूरे देश में महत्वाकांक्षी एथलीटों के लिए प्रेरणा के रूप में बनी रहे।

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