स्मरण है वो टाइम, जब गुरमेहर कौर के फब्तियों को आड़े हाथ लेते हुए फोगाट बहनों ने पूरे वामपंथी ब्रिगेड की क्लास लगाईं थी? इन्हे कुछ स्वघोषित बुद्धिजीवियों ने अपमानित करने का प्रयास भी किया, परन्तु वीरेंद्र सहवाग, यहाँ तक कि रणदीप हुड्डा जैसे दमदार स्टार तक का समर्थन हमारे कर्मठ खिलाडियों को मिला.
अब लगता है अपने वेंकी अन्ना, यानी वेंकटेश प्रसाद भी उसी राह पे निकल पड़े हैं. मियां मोहम्मद ज़ुबैर के थर्ड क्लास प्रोपगैंडा को उन्हें आड़े हाथों क्या लिया, खान मार्केट मण्डली आ गई इनके द्वारे, यानी सोशल मीडिया पर इनकी क्लास लगाने। परन्तु वे भूल गए कि वे भिड़ने किससे जा रहे हैं!
हाल ही में अपने एक ट्वीट के पीछे वेंकटेश प्रसाद को मोहम्मद ज़ुबैर ने घेरने का प्रयास किया. परन्तु ज़ुबैर की नौटंकी वेंकटेश तो तनिक भी न भाई, और उसके एजेंडे की पोल खोलते हुए उसे जमकर धोया. पर वो क्या है, हमारे देश में कुछ महानुभाव ऐसे भी हैं, जिनके लिए सही को सही और गलत को गलत बोलना सबसे बड़ा पाप है, विशेषकर दिल्ली प्रेस क्लब और खान मार्किट से निकले बुद्धिजीवियों के लिए!
How our legends descend into disgrace 👇 https://t.co/K8PJuYc6m0
— Srinivas BV (@srinivasiyc) September 10, 2023
अब ऐसे में अपने फूल से भोले ज़ुबैर को कोई कुछ बोल दे, तो ये सहते क्या? टूट पड़े ये वेंकी अन्ना पे, मानो इन्होने कम्युनिस्ट मैनिफेस्टो को जलाने का दुस्साहस किया हो. प्रारम्भ में कांग्रेसियों ने अपनी औकात दिखाते हुए इनके करियर पर प्रश्न उठाया. फिर आये सतीश आचार्य जैसे छद्म कार्टूनिस्ट, जो रोने लगे, “दशकों से आपका फैन था. परन्तु इस भाषा ने मेरा दिल तोड़ दिया!” अन्ना, तनिक सम्भलके रहिएगा, इसके इरादे ठीक नहीं लगते!
I've been your fan for decades. And this language broke my heart, Venky sir. 😥 https://t.co/Q8pkuoMAsj
— Satish Acharya (@satishacharya) September 10, 2023
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परन्तु असली बवाल तब प्रारम्भ हुआ, जब दंगाई समर्थक एवं पार्ट टाइम आरजे सायमा रहमान ने वेंकटेश प्रसाद को ‘शिष्टाचार’ पढ़ाने का प्रयास किया. ट्विट्टर [अब एक्स] पर महोदया फरमाती हैं, “एक एक कर सब हीरोज़ का असली चेहरा सामने आता है. क्या विडम्बना है! जुबां तो देखें इनकी! अशिष्ट और अशोभनीय!”
परन्तु शायद ये भूल गई थी कि ये वेंकटेश प्रसाद हैं, कोई कॉलेज के सैम नहीं जो “यस मैम” बोलके दुबक लेंगे. इन्होने दर्पण दिखाते हुए ऐसा पोस्ट डाला, कि समूचे लिबरल जगत में त्राहिमाम मच गया. वेंकटेश ने बस इतना पोस्ट किया, “आप अपने आप से बात कर रही हो क्या? आपका तो उत्थान भी नहीं हुआ, कि आपके गिरने पर चर्चा हो!” बाप रे, इस ट्वीट के लिए तो बर्नोल भी पर्याप्त न होगा!
Are you talking to yoursef ?
But you haven't risen to even fall.— Venkatesh Prasad (@venkateshprasad) September 10, 2023
परन्तु सायमा रहमान को दंगा समर्थक यूं ही नहीं कहा गया है. फिर से अपनी ढिठाई अपने पोस्ट पे दिखाने लगी. “एक उत्कृष्ट क्रिकेटर से एक ट्रोल तक, क्या दुर्गति हुई है. क्षमा कीजिये, कहाँ आ गए हैं. कुछ खेलों में जिताने के लिए शुक्रिया. खुदा खैर करे!”
लेकिन वेंकटेश बाबू ने भी कच्ची गोलियां नहीं खेली थी. वे भी बोले, “जैसा करेंगे वैसा भरेंगे. आप भी, मैं भी. हो सके तो इतना पक्षपाती मत होइए. ऐसा हुआ तो मैं भी आपके बारे मैं कुछ अच्छा बोल पाऊंगा. ईश्वर भला करे!”
परन्तु कुछ लोगों को शायद इतने में भी संतोष न था. प्रोपगैंडा शिरोमणि विनोद कापड़ी ने सीधा वेंकटेश पर आरोप लगाया कि वे एक अल्पसंख्यक को आतंकी बता रहे हैं. उसपे वेंकटेश भी टूट पड़े. उन्होंने पोस्ट किया, “कापड़ी इतना स्पिन करके क्या फायदा है. एनालॉजी समझते हो, पत्रकारिता जो करते हो. कि बिलकुल ही वजूद बेच बैठे हो? मैं बड़े रनअप से ही स्पिन ही करता था, तो तुम्हारा ये स्पिन तो नहीं चलने वाला!”
फिर Facts नामक ट्विटर यूज़र ने विनोद कापड़ी की कलई खोली, तो वेंकटेश प्रसाद ने व्यंग्यबाण दागते हुए बोलै, “मुसलमान भाइयों पर ऐसे गलत आरोप लगाते हुए शर्म नहीं आती? उनके इबादत की जगह का ऐसे अपमान करोगे तुम? कितना आसान है generalize करके आरोप लगाना! जो तुम करते हो वो पत्रकारिता नहीं, प्रार्थना करता हूँ कि सुधार लाओगे अपनी सोच में!”
Muslaman bhaiyoon par Aise galat aarop lagate huye sharam nahi aati @vinodkapri .
Demeaning Muslims and their place of worship. Kitna aasan hai generalise karke aarop lagana .
What you do isn’t journalism, pray ki sudhaar laooge apni soch mein. https://t.co/hZwVxfP4sO— Venkatesh Prasad (@venkateshprasad) September 10, 2023
वेंकटेश प्रसाद ने अपने सरल शब्दों में वो करा जो करने में अच्छे राजनीतिज्ञों के भी प्राण सूख जाते हैं! दो कौड़ी के वामपंथियों को बिना उद्वेलित हुए ऐसा धोया कि वे याद रखेंगे कि किस्से पाला पड़ा था. परन्तु मंदबुद्धि वामपंथियों के दृष्टिकोण को देखते हुए इसकी आशा कम ही लगती है!
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