इस बार एशियाई खेलों में भारत ने गजब कहर ढाया है! यदि सब कुछ सही रहा तो 5 अक्टूबर तक भारत 1982 के एशियाड के बाद का सबसे उत्कृष्ट प्रदर्शन करने में सफल रहेगा। अभी तक भारत ने 13 स्वर्ण, 24 रजत एवं 25 कांस्य पदक के साथ पदक तालिका में चौथे स्थान पर अपना दावा मजबूत रखा है। परन्तु एक पदक ऐसा भी है, जिसके लिए उक्त खिलाड़ी और भारतीय प्रशासन को केवल प्रतिद्वंदी ही नहीं, अपितु पक्षपाती अफसरों एवं धांधलेबाजी का भी सामना करना पड़ा।
ये बात है ज्योति यराजी की, जो विशाखापत्तनम से एक उत्कृष्ट बाधा धाविका रही है। इन्हे 100 मीटर बाधा दौड़ में भारत के लिए एक प्रबल दावेदार माना जा रहा था, जिनका पोडियम फिनिश लगभग तय था। इन्होने वह कार्य पूर्ण भी किया, पर बिना विवाद के नहीं।
असल में समस्या प्रारम्भ हुई रेस के प्रारम्भ में, जब चीनी प्रतिद्वंदी यानी वू पर फॉल्स स्टार्ट [false start] का आरोप लगाया गया। अनेक एंगल से स्पष्ट था कि गलती पूर्णतया इस चीनी एथलीट की ही थी, परन्तु न जाने चीनियों को क्या सूझा कि उन्होंने ज्योति को भी निष्कासित करने का निर्णय लिया। परन्तु ज्योति इतनी आसानी से पराजय स्वीकारने को तैयार नहीं थी!
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अतः ज्योति के जुझारूपन के समक्ष चीनी अफसरों को झुकना ही पड़ा, और उन्होंने सभी धावकों को पुनः रेस प्रारम्भ करने को कहा! परन्तु तब भी खतरा सर पर था, यदि चीनी अपने मार्ग पर अडिग रहते, तो पदक प्राप्त करने के बाद भी ज्योति खाली हाथ ही लौटती!
परन्तु इन विपरीत परिस्थितियों में भी ज्योति ने अपना संयम कायम रखा! अपना श्रेष्ठतम प्रदर्शन करते हुए उन्होंने 12.91 सेकेण्ड में रेस पूरा करते हुए तीसरा स्थान प्राप्त किया। चीन की ली युनवई एवं यानी वू ने प्रथम और द्वितीय स्थान प्राप्त किया। परन्तु फिर ज्यूरी का अंतिम निर्णय, और इस बार ज्योति को आश्चर्यजनक सफलता प्राप्त हुई!
असल में एथलेटिक्स फेडरेशन ऑफ़ इंडिया के अफसर भी वहां उपस्थित थे, और उन्होंने अविलम्ब इस विषय पर खेल समिति के उच्चाधिकारियों करते हुए अपना विरोध सार्वजानिक किया! ऐसी स्थिति में अंतत: चीनी अफसरों को झुकना पड़ा, और यानी वू को रेस से निष्कासित यानी डिस्क्वालिफाई कर दिया, जिसके कारण ज्योति का कांस्य रजत में परिवर्तित हुआ, और जापान की यूमी टनाका को कांस्य पदक प्राप्त हुआ।
इस घटना पर अपने विचार व्यक्त करते हुए, पूर्व चैंपियन और वर्तमान एएफआई उपाध्यक्ष अंजू बॉबी जॉर्ज ने मीडिया के साथ अपने वार्तालाप में कहा, “वे यह सुनिश्चित करना चाहते थे कि चीनी धावक को कोई समस्या न हो। ज्योति बहुत बेहतर दौड़ सकती थी, लेकिन इन चीजों ने उसके दिमाग को भटका दिया। जब रेस पुनः प्रारम्भ हुई, तो वह स्थिर नहीं थी, जिसके कारण उसके परफॉर्मेंस पर भी असर पड़ा।”
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यानी वू के फॉल्स स्टार्ट के तुरंत बाद एएफआई ने विरोध दर्ज कराकर त्वरित कार्रवाई की थी। अंजू बॉबी जॉर्ज ने नियमों की व्याख्या करते हुए कहा, “नियम कहते हैं कि जो भी पहले मैदान छोड़ रहा है उसे अयोग्य घोषित कर दिया जाएगा। ज्योति का हाथ तब भी जमीन पर था, इसलिए वे उसे अयोग्य घोषित नहीं कर सकते। यह चीनी एथलीट थी जो बाहर हुई थी। हर कोई जानता था कि यह [ज्योति को हटाने का प्रयास] गलत निर्णय था।”
इससे पूर्व भी भारत को पक्षपाती निर्णयों का दुष्परिणाम भुगतना पड़ा है, विशेषकर लंदन ओलम्पिक में, जहाँ तो ये सुनिश्चित करने का प्रयास हो रहा था कि भारतीय मुक्केबाज़ विजयी ही न हो। सुमित सांगवान और विकास कृष्ण यादव तो जीते जीते मुकाबले पक्षपाती जजों के कारण हार गए! परन्तु ज्योति यराजी वाले मामले में भारत ने सिद्ध किया कि अब खेल जगत में भी वह किसी की गुंडई स्वीकार नहीं करेगा!
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