हाल ही में हिमाचल प्रदेश की कॉन्ग्रेस सरकार ने ये फैसला लिया कि सभी दुकानों और ठेले वालों को अपना असली नाम अपने प्रतिष्ठान के बोर्ड पर लिखना पड़ेगा। राज्य के पब्लिक वर्क्स एवं शहरी विकास मंत्री विक्रमादित्य सिंह ने इसका ऐलान किया था। हिमाचल प्रदेश में कई हफ़्तों तक हिन्दुओं का आंदोलन चला, वहाँ बदलती डेमोग्राफी से लेकर बाहर से आए मुस्लिमों के कारण स्थानीय लोग परेशान हैं। साथ ही मस्जिदों/मजारों द्वारा अतिक्रमण भी बहस का मुद्दा बना। शिमला से लेकर मंडी तक विरोध प्रदर्शन हुए, पुलिस ने बल-प्रयोग किया। अपने अधिकार के लिए लड़ रहे हिन्दुओं को ये सब बर्दाश्त करना पड़ा।
जब खाद्य सुरक्षा के नाम पर ही सही हिमाचल प्रदेश सरकार ने ये फैसला लिया तो हिन्दुओं को ये आंशिक जीत के रूप में प्रतीत हुआ। बता दें कि काँवड़ यात्रा के दौरान श्रद्धालुओं को अक्सर अपवित्र भोजन के कारण धर्म भ्रष्ट होने का खतरा बना रहता है। खाने में थूक कर खिलाए जाने के वीडियो कई ढाबों से सामने आए। अब विक्रमादित्य सिंह को कॉन्ग्रेस आलाकमान ने दिल्ली समन कर दिया है। साथ ही उन्हें फटकार भी लगाई गई है। मीडिया लगातार इस खबर को ‘हिमाचल प्रदेश में योगी मॉडल’ कह कर चला रहा था, क्योंकि उत्तर प्रदेश में ऐसी ही व्यवस्था लागू है।
चूँकि कॉन्ग्रेस पार्टी की राजनीति ही मुस्लिम तुष्टिकरण पर आधारित है, ऐसे में गाँधी परिवार और उसके करीबी लोगों को नाराज़ होना ही था। हिमाचल प्रदेश में भले ही ढाई प्रतिशत से भी कम मुस्लिम हों, यूपी-बिहार से लेकर केरल और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में कॉन्ग्रेस का आधार वोट मुस्लिम ही हैं। हिमाचल प्रदेश में भी पार्टी दो फाड़ हो गई है। कुछ दिनों पहले मंत्री अनिरुद्ध सिंह ने विधानसभा में कहा था कि मुस्लिमों की घुसपैठ के कारण अपराध बढ़ रहा है, बाजार पर उनका ही कब्ज़ा है और अवैध अतिक्रमण भी हो रहे हैं।
भाजपा इन चीजों को लेकर पहले से ही केवल हिमाचल प्रदेश ही नहीं बल्कि अन्य राज्यों में भी मुखर रही है। एक तरफ विक्रमादित्य सिंह इसे आंतरिक सुरक्षा से जुड़ा मुद्दा बता रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ राज्य सरकार के प्रवक्ता ने कहा है कि दुकानों/ठेलों को नेम प्लेट लगाने जैसा कोई आदेश दिया ही नहीं गया है। मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू इस पर चुप्पी साधे हुए हैं। कॉन्ग्रेस पार्टी जिस तरह की विचारधारा पर चलती है, उसके आकाओं के लिए तो विक्रमादित्य सिंह और अनिरुद्ध सिंह सिरदर्द ही बने हुए हैं, क्योंकि वो वही मुद्दों पर आगे बढ़ रहे हैं जो भाजपा उठाती हैं।
विक्रमादित्य को “CM”
बना देना चाहिये,सरकार तो राजा वीरभद्र सिंह को “श्रद्धॉंजलि” के नाम पर ही बनी, लेकिन @VikramadityaINC को धोखा मिला. https://t.co/yqE45Q88PM— Acharya Pramod (@AcharyaPramodk) September 26, 2024
हालाँकि, विक्रमादित्य सिंह को साइडलाइन करना कॉन्ग्रेस के लिए आसान भी नहीं होगा। उनके पिता वीरभद्र सिंह 6 बार मुख्यमंत्री रह चुके हैं, या यूँ कहें कि कॉन्ग्रेस राज्य में उनके नाम पर ही जीतती आई है तो ये अतिशयोक्ति नहीं होगी। विक्रमादित्य सिंह की माँ प्रतिभा सिंह कॉन्ग्रेस की प्रदेश अध्यक्ष हैं और 3 बार मंडी से सांसद रही हैं। ऐसे में विक्रमादित्य सिंह को किनारे करने का अर्थ होगा राज्य के सबसे शक्तिशाली राजनीतिक परिवार को साइड करना। ये जनता और खासकर क्षत्रियों के बीच भी अच्छा सन्देश लेकर नहीं जाएगा। हालाँकि, मुस्लिम तुष्टिकरण के कारण कॉन्ग्रेस कोई भी निर्णय ले सकती है, देखते हैं विक्रमादित्य सिंह का आगे क्या रुख रहता है।