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हिंद की ‘आजाद’ सरकार का गठन और नेताजी के वो आंसू… कालापानी वाले द्वीप पर लहराया तिरंगा, बनाई महिलाओं की रेजिमेंट

21 अक्टूबर को 1943 में सिंगापुर में हुआ था आजाद हिंद सरकार का गठन

Shiv Chaudhary द्वारा Shiv Chaudhary
21 October 2024
in इतिहास
हिंद की 'आजाद' सरकार का गठन और नेताजी के वो आंसू... कालापानी वाले द्वीप पर लहराया तिरंगा, बनाई महिलाओं की रेजिमेंट

Photo Credit - Netaji Research Bureau

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“मेरे वीरो! तुम्हारा युद्ध घोष होना चाहिए- ‘दिल्ली चलो! दिल्ली चलो!’ आजादी की इस लड़ाई में हममें से कितने बचेंगे, मैं नहीं जानता, पर मैं यह जानता हूं कि अंत में हम जीतेंगे और जब तक हमारे बचे हुए योद्धा लाल किले पर फतह का परचम लहरा नहीं लेते, हमारा मकसद पूरा नहीं होगा।” 5 जुलाई 1943 को आजाद हिंद फौज के सर्वोच्च कमांडर सुभाष चंद्र बोस के ये शब्द भारत की क्रांति गाथा और उनकी नई सरकार की गठन की पटकथा लिख रहे थे। इससे एक दिन पहले ही सिंगापुर के कैथे भवन में रासबिहारी बोस ने आजाद हिंद फौज (आईएनए) की कमान सुभाष चंद्र बोस के हाथों में सौंपी थी।

इस सरकार को 9 देशों से मिली थी मान्यता

इसके बाद अगले कुछ महीनों तक नेताजी स्वाधीनता आंदोलन की कमान संभालने वाला एक संगठन खड़ा करने के लिए लगातार मेहनत और यात्राएं करते रहे और अंतत: आज ही के दिन (21 अक्टूबर) को 1943 में सिंगापुर में एक ऐतिहासिक जनसभा के दौरान अंतरिम आजाद हिंद सरकार के गठन का एलान किया। इसे अरजी हुकुमत-ए-आजाद हिंद नाम से भी जाना जाता था और इस सरकार को जर्मनी, जापान, इटली, फिलिपींस, कोरिया, चीन और आयरलैंड समेत नौ देशों ने मान्यता दी थी।

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नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने सिविल सेवा से इस्तीफा देते हुए क्या कहा था?

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दुनिया के उस समय के शक्तिशाली साम्राज्‍य के खिलाफ बनी यह सरकार सिर्फ कागजों पर ही नहीं थी बल्कि इस सरकार की अपनी सेना, बैंक, अखबार, मुद्रा, झंडा, राष्ट्रगान, डाक टिकट और गुप्‍तचर तंत्र भी मौजूद था। साथ ही, सरकार गठन के अगले दिन नेताजी ने आजाद हिंद फौज में महिला रेजिमेंट का गठन किया था और इसकी कमान कैप्टन लक्ष्मी स्वामीनाथन के हाथों में थी। इस रेजिमेंट को रानी झांसी रेजिमेंट भी कहा जाता था।

शिशिर कुमार बोस ने अपनी किताब ‘नेताजी सुभाष चंद्र बोस’ में लिखा है, “स्वाधीन सरकार की स्थापना की घोषणा के बाद नेताजी ने राष्ट्राध्यक्ष और प्रधानमंत्री के रूप में पद की शपथ भी ली। वह अनमोल घड़ी भावनाओं से इतनी ओतप्रोत थी कि नेताजी सुबक उठे और उनके गालों पर आंसू बहने लगे थे। 200 वर्षों में पहली बार भारत के स्वाधीनता सेनानियों को अपने स्वाधीन राष्ट्रत्व की अनुभूति हुई थी।”

‘भारत का मुखिया नहीं बल्कि प्रतिनिधि हूं’

इस सरकार के गठन के बाद नवंबर 1943 में नेताजी ने टोकियो में असेंबली ऑफ ग्रेटर ईस्ट एशियाटिक नेशन्स में हिस्सा लिया और इस सम्मलेन में ‘भारत के स्वाधीनता संग्राम के प्रति पूर्ण हमदर्दी और समर्थन’ का एक प्रस्ताव पारित किया गया। इतिहासकार प्रोफेसर कपिल कुमार बताते हैं कि इस सम्मेलन के दौरान नेताजी को भारत का मुखिया कहकर संबोधित किया गया था तो उन्होंने कहा था कि मैं तो भारत का प्रतिनिध हूं। बकौल प्रोफेसर कुमार, “नेताजी ने कहा था कि मुखिया तो भारत के लोग अंग्रेजों के जाने के बाद बनने वाली स्वतंत्र भारत की सरकार में चुनेंगे।” इसी सम्मेलन में जापान के तत्कालीन प्रधानमंत्री तोजो ने जापानी सेना के कब्जे वाले अंडमान व निकोबार द्वीपसमूह के प्रशासनिक क्षेत्राधिकार आजाद हिंद सरकार को देने का एलान किया था।

आजाद हिंद सरकार का अंडमान-निकोबार पर कब्जा

आजाद हिंद सरकार ने अपने पहले प्रदेश के तौर पर अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह का क्षेत्राधिकार अधिग्रहण किया था। इसी द्वीप के पोर्ट ब्लेयर पर अंग्रेजों ने सेल्युलर जेल बनाई हुई थी जिसमें स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को कालापानी की सजा दी जाती थी। इसके लिए नेताजी बोस 29 दिसंबर 1943 को अंडमान पहुंचे थे। शिशिर बोस ने ‘नेताजी सुभाष चंद्र बोस’ किताब में लिखा है, “नेताजी ने राष्ट्राध्यक्ष की हैसियत से जिमखाना मैदान में एक विशाल जनसमुदाय के सामने उन्होंने राष्ट्रीय तिरंगा फहराया।” शिशिर बोस लिखते हैं, “प्रवास के दौरान नेताजी और उनके दल ने रॉस द्वीप स्थित ब्रिटिश मुख्य आयुक्त के निवास स्थान में बसेरा किया और उस पर गर्वपूर्वक राष्ट्रीय तिरंगा लहरा उठा। नेताजी ने अंडमान को ‘शहीद द्वीपसमूह’ तथा निकोबार को ‘स्वराज द्वीपसमूह’ नया नाम दिया।”

सिंगापुर से रंगून शिफ्ट हुआ सरकार का मुख्यालय

जब यह तय किया गया था कि आजाद हिंद फौज बर्मा के रास्ते भारत में प्रवेश करेगी तो नेताजी ने 7 जनवरी 1944 को आजाद हिंद सरकार का मुख्यालय सिंगापुर की जगह भारत के और नजदीक रंगून में शिफ्ट कर दिया। साथ ही, शाहनवाज खान की कमान वाली नंबर 1 गुरिल्ला रेजिमेंट ‘सुभाष ब्रिगेड’ 400 मील पैदल चलकर रंगून पहुंची। फरवरी 1944 में अराकान के मोर्चे पर, चटगांव जानेवली सड़क पर आजाद हिंद फौज की लड़ाई हुई और यहां फौज दुश्मन की सेना से बेहतर साबित हुई। इस लड़ाई के बाद जापान की सेना ने भी आजाद हिंद फौज का लोहा मान लिया था।

इम्फाल की लड़ाई और आजाद हिंद सरकार के गवर्नर की नियुक्ति

नेताजी के नेतृत्व में लड़ाई लड़ रही आजाद हिंद फौज ने मार्च 1944 के मध्य में इम्फाल पर आक्रमण किया और इसमें आईएनए के साथ में अड्डा जमाए तीन जापानी डिवीजनों ने भाग लिया था। शिशिर बोस ने ‘नेताजी सुभाष चंद्र बोस’ में लिखा है, “नेताजी और आजाद हिंद फौज के लिए इसका मतलब था भावी स्वाधीनता संग्राम के लिए एक सैन्य शिविर बनाने और ब्रह्मपुत्र घाटी का रास्ता खोलने के लिए सशस्त्र क्रांतिकारियों का बलात भारत में प्रवेश।”

21 मार्च 1944 को नेताजी ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में एलान किया कि जापानी सेना के साथ लड़ रही आजाद हिंद फौज 18 मार्च को भारत में प्रवेश कर चुकी है। शिशिर बोस लिखते हैं, “अप्रैल के पहले हफ्ते में नेताजी ने अपने मंत्रिमंडल के सदस्य ए.सी. चटर्जी को मुक्त क्षेत्रों का नामजद गवर्नर नियुक्त किया। अंतरिम सरकार का प्रशासकीय खंड ‘आजाद हिंद दल’ फौज के साथ-साथ आगे बढ़ता मुक्त क्षेत्रों का शासन संभालने को तैयार था।”

‘आजाद हिंद बैंक’ की कहानी

नेताजी की इस सरकार ने एक बैंक का भी निर्माण किया था यह बैंक रंगून में था और इसे ‘आजाद हिंद बैंक’ कहा जाता है। इतिहासकार प्रोफेसर कपिल कुमार बताते हैं कि जापानी नहीं चाहते थे कि नेताजी अपना बैंक बनाएं और इसके लिए 3 दिनों तक बातचीत चलती रही थी। प्रोफेसर कपिल कुमार ने बताया हैं कि जापानियों ने नेताजी से कहा था कि बैंक के लिए पैसा कहां से आएगा इस पर नेताजी ने कहा था कि मेरे पास पैसा है जो मेरे भारतीयों ने दिया है। अगस्त 1945 के बाद भी यह बैंक काम करता रहा था।

रानी झांसी रेजिमेंट को लेकर भ्रांतियां

नेताजी अपने युग के बहुत आगे की सोच रखते थे और उस समय में उन्होंने महिला रेजिमेंट की स्थापना की थी। नेताजी ने कहा था कि मुझे ऐसी युवतियां चाहिए जो झांसी की रानी की तरह तलवार उठाकर लड़ सकें। हालांकि, कई वामपंथी इतिहासकारों और उनसे जुड़े लोगों ने भ्रांतियां फैला दी हैं कि इस रेजिमेंट ने कभी युद्ध में भाग नहीं लिया था। प्रोफेसर कपिल कुमार बताते हैं, “मुझे अपनी रिसर्च के दौरान तीन ऐसे वृतांत मिले जिससे स्पष्ट होता है कि रानी झांसी रेजिमेंट ने अंग्रेजी पैराट्रूपर्स का सामना किया। रंगून से लौटते समय अंग्रेजों के छापामारों से सामना किया और एक जगह पर 6 घंटों तक अंग्रेजी सेना को आगे बढ़ने से रोका रखा।”

आजाद हिंद सरकार का राष्ट्रगान

गुरुदेव रविंद्र नाथ टैगोर के बंगाली में लिखे गए ‘भारतो भाग्यो बिधाता’ का नेताजी ने आसान हिन्दुस्तानी भाषा में अनुवाद करवाया था। इसके अनुवाद की जिम्मेदारी आजाद हिंद रेडियो के मुमताज हुसैन और आजाद हिंद फौज के कर्नल आबिद हसन सफरानी को दी गई थी और अनुवाद के बाद यह सरकार का राष्ट्रगान बन गया था।

शुभ सुख चैन की बरखा बरसे, भारत भाग है जागा
पंजाब, सिन्ध, गुजरात, मराठा, द्राविड़ उत्कल बंगा
चंचल सागर, विन्ध्य, हिमालय, नीला यमुना गंगा
तेरे नित गुण गाएँ, तुझसे जीवन पाएँ
सब तन पाए आशा।
सूरज बन कर जग पर चमके, भारत नाम सुभागा,
जय हो! जय हो! जय हो! जय जय जय जय हो!

सब के दिल में प्रीत बसाए तेरी मीठी वाणी,
हर सूबे के रहनेवाले, हर मज़हब के प्राणी,
सब भेद और फरक मिटा के,
सब गोद में तेरी आके,
गूँथे प्रेम की माला।
सूरज बनकर जग पर चमके, भारत नाम सुभागा,
जय हो! जय हो! जय हो! जय जय जय जय हो!

शुभ सवेरे पंख पखेरे, तेरे ही गुण गाएं
बास भरी भरपूर हवाएँ, जीवन में रुत लाएं
सब मिल कर हिन्द पुकारे, जय आज़ाद हिन्द के नारे।
प्यारा देश हमारा।
सूरज बन कर जग पर चमके, भारत नाम सुभागा,
जय हो! जय हो! जय हो! जय जय जय जय हो!

स्रोत: Subhas Chandra Bose, Netaji, INA, Azad Hind Fauj, Azad Hind Sarkar, War of Independence, सुभाष चंद्र बोस, नेताजी, आजाद हिंद सरकार, आजाद हिंद फौज, स्वतंत्रता की लड़ाई
Tags: Azad Hind FaujAzad Hind SarkarINANetajiSubhas Chandra BoseWar of Independenceआजाद हिंद फौजआजाद हिंद सरकारनेताजीनेताजी सुभाष चंद्र बोससुभाष चंद्र बोसस्वतंत्रता आंदोलन
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