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पटरियों के किनारे लगेंगे नीले-सफेद ब्लेड, रेलवे को आखिर क्यों लेना पड़ा फैसला?

जहां एक और प्रोजेक्ट को लेकर बहुत सारी उम्मीदें हैं तो दूसरी और इसकी व्यावहारिकता को लेकर कुछ सवाल भी हैं

Shiv Chaudhary द्वारा Shiv Chaudhary
16 January 2025
in चर्चित, पर्यावरण
पटरियों के किनारे लगेंगे नीले-सफेद ब्लेड, रेलवे को आखिर क्यों लेना पड़ा फैसला?
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आने वाले समय में हो सकता है कि जब आप ट्रेन से कोई यात्रा करें और बाहर के नज़ारे देखने चाहें तो आपको खूबसूरत नज़ारों की जगह पटरियों के किनारे लगीं पवन चक्कियां नज़र आएं। दरअसल, रेल मंत्रालय अब पटरियों के किनारे पवन चक्कियां लगाकर पवन ऊर्जा का लाभ उठाना चाहता है और इसके पीछे उसका लक्ष्य 2030 तक कार्बन उत्सर्जन का नेट-जीरो लक्ष्य हासिल करना है। रेलवे ने इसके लिए पिछले साल एक एक्सपेरिमेंट भी किया था। जहां एक और प्रोजेक्ट को लेकर बहुत सारी उम्मीदें हैं तो दूसरी और इसकी व्यावहारिकता को लेकर कुछ सवाल भी हैं।

एक अधिकारी के हवाले से बिज़नेस स्टैंडर्ड ने बताया है कि रेलवे फिलहाल ज़ोनल और अन्य सरकारी विभागों के साथ इसे लेकर बातचीत कर रहा है। उन्होंने कहा, “दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेसवे पर विंड टर्बाइन लगाकर इसकी व्यवहार्यता जांच की गई थी और बीते समय में प्रधानमंत्री कार्यालय के साथ भी चर्चा की गई थी। आगे इस दिशा में और गंभीरता से विचार किया जाएगा।” गौरतलब है कि 2023 में प​श्चिमी रेलवे ने प्रायोगिक परियोजना के तौर पर रेल की पटरियों के किनारे नीले और सफेद रंग की ब्लेड वाली 5 छोटी पवन चक्कियां लगाई थीं।

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इन पवन चक्कियों से कैसे बनेगी बिजली?

इन छोटी पवन चक्कियों को रेल की पटरी के ठीक बगल में लगाया जाता है जिससे तीव्र गति से ट्रेन के गुज़रने पर इनके टर्बाइन ब्लेड हवा की गति के कारण घूमने लगते हैं। इन टरबाइन ब्लेड को घुमाने में रोटर शाफ्ट की भूमिका सबसे अहम होती है। ये रोटर शाफ्ट पवन ऊर्जा पैदा करने के लिए तांबे की प्लेटों और अन्य धातुओं के साथ जोड़े जाते हैं। ये छोटी पवन चक्कियां 1 किलोवाट से 10 किलोवाट के बीच ऊर्जा पैदा कर सकती हैं।

क्या हो सकती हैं दिक्कतें?

इस मामले में विशेषज्ञों का मानना है कि इससे कई तरह की समस्याएं भी हो सकती हैं। पूर्व मध्य रेलवे के पूर्व महाप्रबंधक ललित चंद्र त्रिवेदी का कहना है कि इन टर्बाइन के खराब होने पर इसका हिस्सा या ब्लेड गिरने से ट्रेन और यात्रियों के लिए खतरा हो सकता है। उनका कहना है कि इन टर्बाइन को लगाकर उनकी देखरेख करना महंगा सौदा है। इससे सीमित बिजली ही पैदा होगी और निवेश पर उतना रिटर्न नहीं मिलेगा जिसकी उम्मीद है। वहीं, कुछ अन्य विशेषज्ञों के अनुसार, रेल की पटरियों के कई बार घनी आबादी वाले या शहरी क्षेत्रों में पटरियों के पास ऐसे उपकरण लगाने के लिए पर्याप्त जगह नहीं होती है।

2030 तक ‘नेट ज़ीरो’ हासिल करेगा रेलवे!

दुनिया के चौथे सबसे बड़े रेल नेटवर्क भारतीय रेलवे ने 2030 तक नेट ज़ीरो कार्बन उत्सर्जक बनने का लक्ष्य रखा था। इसके लिए रेलवे बहु-आयामी दृष्टिकोण पर काम कर रहा है और ये छोटी पवन चक्कियां भी इसी कड़ी में शामिल हैं। रेलवे ने इस कड़ी में सौर ऊर्जा के उपयोग, पूर्ण विद्युतीकरण और माल ढुलाई में वृद्धि करने जैसे कई काम किए हैं। इसके लिए करीब 1,000 सोल पैनल लगाए गए हैं और रेलवे इस कड़ी में गंभीरता से काम कर रहा है। रेलवे को इसके लिए भारी निवेश की ज़रूरत भी है। पश्चिम रेलवे ने 2021-22 में सौर ऊर्जा के ज़रिए बिजली की खपत में ₹1.5 करोड़ की बचत की थी और पश्चिम रेलवे प्रति वर्ष 2711 मीट्रिक टन कार्बन उत्सर्जन को कम करने में कामयाब रहा है।

स्रोत: भारतीय रेलवे, नेट जीरो, कार्बन उत्सर्जन, सौर ऊर्जा, Indian Railways, Net Zero, Carbon Emission, Solar Energy,
Tags: Carbon EmissionIndian RailwaysNet ZeroSolar Energyकार्बन उत्सर्जननेट जीरोभारतीय रेलवेसौर ऊर्जा
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