वैसे तो मनमोहन काल रोज ही चौंका देने वाली ख़बरों का काल था क्योंकि घोटालों की खबरें जब आती थीं तो लोग ये नहीं जोड़ते थे कि घोटाला कितने करोड़ का हुआ। रकम अक्सर इतनी बड़ी होती थी कि लोग बात करते थे कि आज तो इतने शून्यों वाला घोटाला हो गया है! ऐसी ही चौंकाने वाली खबरों के बीच एक दिन नवंबर 2010 का ‘ओपन मैगज़ीन’ का अंक जब आया तो लोग एक नयी ही खबर पर चौंके। इस खबर को आज ‘राडिया टेप कांड’ के नाम से जाना जाता है। ये सीधे-सीधे घोटाले की खबर नहीं बल्कि पत्रकारिता की साख पर हमेशा के लिए बट्टा लगा देने वाली खबर थी। ‘ओपन मैगज़ीन’ ने नीरा राडिया के साथ कई वरिष्ठ पत्रकारों, संपादकों, राजनीतिज्ञों और कॉर्पोरेट घरानों के बीच हुई टेलीफोन वार्ता को छाप दिया था। इसके साथ ही सीबीआई ने घोषित किया था कि उनके पास 5800 से अधिक टेप हैं, जिनमें ऐसी ही बातचीत दर्ज है। इनमें से कुछ में नीरा राडिया 2जी स्पेक्ट्रम सौदे में दलाली की कोशिश करती भी सुनाई देती हैं।
‘राडिया टेप कांड’ में कई बड़े पत्रकारों का नाम आया। उनमें प्रमुख थी बरखा दत्त जो उस समय एनडीटीवी के अंग्रेजी वाले हिस्से में ग्रुप एडिटर थी। बरखा दत्त के अलावा इंडिया टुडे के संपादक प्रभु चावला थे, इंडिया टुडे के ही शंकर अय्यर थे, हिंदुस्तान टाइम्स से जुड़े वीर सांघवी का नाम था, रोहिणी सिंह जो उस वक्त इकोनॉमिक टाइम्स में थीं और बाद में द वायर में चली गयीं, उनका भी नाम राडिया टेप कांड में आया था। इसके अलावा द टाइम्स ऑफ इंडिया, द इकोनॉमिक टाइम्स और द हिन्दू के बिज़नेस लाइन के संपादकों से बातचीत भी थी जैसा कि उस दौर में आउटलुक पत्रिका में छपा था। इतने पत्रकारों-संपादकों का नाम आने पर जाहिर ही था कि मीडिया ने इस मामले पर ही चुप्पी साध ली थी। ट्विटर उस समय प्रसिद्ध होना शुरू हो चुका था और आम लोगों ने ट्विटर (बाद में एक्स बना) पर ‘राडिया टेप कांड’ मुद्दे की चर्चा शुरू कर दी थी, इसलिए यह मुद्दा मीडिया के दबाए नहीं दब रहा था। मनमोहन सिंह सरकार ने इसी दौर में सोशल मीडिया पर बोलने वालों को चुप करवाना शुरू किया था।
सरकार को अपने प्रश्नों से असहज कर रहे करीब 10000 अकाउंट मनमोहन सिंह सरकार ने ट्विटर से हटवा दिए थे। बहुत बाद में जब नरेंद्र मोदी की भाजपा सरकार आई तो इनमें से कई को वापस शुरू किया गया। डीएनए की एक रिपोर्ट के मुताबिक, मनमोहन सिंह सरकार के दौर में प्रतिबंधित हुए हैंडल्स में से करीब 8-10 हजार अकाउंट को मोदी सरकार आने के तुरंत बाद 2014 में अनब्लाक करवाया गया था। फेसबुक की 2013 की ट्रांसपेरेंसी रिपोर्ट के मुताबिक, मनमोहन सिंह के दौर में भारत में सर्वाधिक (4765) सेंसरशिप अनुरोध किए थे। कई लोग मनमोहन सिंह का यह कहकर बचाव करते हैं कि वे प्रेस कॉन्फ्रेंस करते थे लेकिन सच्चाई यही है कि उस दौर में बोलने की इतनी भी आज़ादी नही होती थी। हाँ, यह अवश्य है कि 2014 से पहले NCRB राजद्रोह के मामलों (आईपीसी 124 ए) के आँकड़े नहीं रखता था इसलिए आँकड़ों में यह कभी दिखाई नहीं दिया।
राडिया टेप की बातचीत में बरखा दत्त कहती सुनाई देती है कि वो गुलाम नबी आज़ाद (कांग्रेस नेता) से बात करेगी। राडिया से बातचीत में यह ज़िक्र भी आता है कि सुनील भारती मित्तल (एयरटेल प्रमुख) लॉबीइंग कर रहे हैं। यह सारी कवायद दयानिधि मारन को फिर से केंद्रीय आईटी एवं संचार का मंत्री न बनने देने के लिए की जा रही थी। इन ख़बरों को भारतीय मीडिया से लापता किये जाने पर तब वाशिंगटन पोस्ट ने भी लिखा था कि ट्विटर ने इस मामले को अंतर्राष्ट्रीय चर्चा का विषय बना देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। शुरू में केवल डेक्कन हेराल्ड और इंडियन एक्सप्रेस जैसे अख़बारों ने ही इस बारे में लिखा था। एचटी मीडिया, मिंट (हिंदुस्तान का ही एक भाग) और एनडीटीवी ने स्पष्ट कह दिया कि इन टेपों की विश्वसनीयता संदिग्ध है इसलिए वो इस खबर को नहीं चलाएंगे। सागरिका घोष (तब सीएनएन-आईबीएन के कार्यक्रम ‘फेस द नेशन’ में) इस बात पर चर्चा करती दिखाई दी कि क्या लॉबीइंग से देश के लोकतंत्र को खतरा है या नहीं। तब तक भारत, पत्रकारों के फोन कॉल से मंत्री बनाया जाना देख रहा था।
टाइम्स ऑफ इंडिया ने 25 नवम्बर 2010 को आखिर इस मुद्दे पर लिखा कि पत्रकारों द्वारा सत्ता की दलाली किए जाने के विरुद्ध आम आदमी ने लड़ाई का बिगुल इंटरनेट के ज़रिए फूंक दिया है। मामले के शांत ना होने पर कई पत्रकारों ने भी राडिया टेप कांड पर चर्चा की। राजदीप सरदेसाई से लेकर तवलीन सिंह तक ने घटना को खेदजनक बताया था। बाद में ईडी ने 24 नवम्बर 2010 को नीरा राडिया से पूछताछ की थी और सीबीआई ने अपने एफिडेविट में सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि वो उचित समय पर नीरा राडिया से पूछताछ करेंगे। सिर्फ प्रेस कॉन्फ्रेंस करते थे, इसलिए मनमोहन सिंह को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का पैरोकार घोषित करने की जल्दबाज़ी से पहले उनके दौर के नीरा राडिया टेप कांड और फिर हज़ारों ट्विटर हैंडल्स को सस्पेंड करवाया जाना भी याद किया जाना चाहिए। कुछ चुप्पियाँ खौफनाक भी होती हैं।