भगवा वस्त्र, सिर पर टोपी और हिंदी के संस्कृतनिष्ठ शब्दों का प्रयोग….. अगर कोई भी इस शख्स को देखे तो उसे एक धार्मिक हिंदू समझेगा। हालाँकि, इनका नाम मोहम्मद फैज खान है। फैज अपने आपको भारतीय संस्कृति से जुड़ा हुआ मुसलमान मानते हैं। उन्हें ‘वंदे मातरम’, ‘भारत की माता की जय’ और ‘जय श्रीराम’ कहने में भी कोई आपत्ति नहीं है। वे अपने सार्वजनिक संबोधन की शुरुआत इस्लामी सलाम के साथ-साथ इन सब जयकारों से भी करते हैं। इस कारण उन्हें दोनों समाजों के अधिकांश लोगों में लोकप्रियता हासिल है।
मोहम्मद फैज खान हिंदुओं की धार्मिक यात्रा करते हैं। कथा का वाचन करते हैं और गोपालन करके गोसेवा भी करते हैं। वे कहते हैं, “भले ही हमारा (हिंदू और मुस्लिम का) धर्म अलग-अलग है, लेकिन पूर्वजों से हम सब एक हैं।” उनके लिए मंगोल, तुर्क, अफगान, मुगल आदि सब बाहरी और आक्रमणकारी थे। फैज के वीर अब्दुल हमीद, अशफाउल्लाह खान, डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम प्रेरणा के स्रोत हैं, औरंगजेब और अकबर जैसे मुगल आक्रांता नहीं।
छत्रपति शिवाजी महाराज के पुत्र संभाजी महाराज और मुगल आक्रांता औरंगजेब के बीच हुई लड़ाई पर आधारित हालिया रिलीज फिल्म छावा को लेकर राजनीतिक बहसबाजी का दौर है। समाजवादी पार्टी के विधायक अबू आजमी, कॉन्ग्रेस के इमरान मसूद और AIMIM के कई नेताओं ने औरंगजेब का गुणगान किया है और उसे एक महान शासक बताया था।
उन्होंने तर्क दिया था कि औरंगजेब के शासन काल में भारत की सीमा तिब्बत और अफगानिस्तान तक फैली थी। उस समय भारत की जीडीपी दुनिया में सबसे अधिक थी। उनका दावा है कि उस समय भारत की जीडीपी विश्व की जीडीपी का 24 प्रतिशत था। मुगल परस्त इन नेताओं का तर्क है कि औरंगजेब के शासनकाल में भारत ‘सोने की चिड़िया’ था। इसको लेकर जबरदस्त विवाद भी हुआ और आखिरकार अबू आजमी ने माफी भी माँगी।
औरंगजेब जैसे मुगलों को महिमामंडित करने वाले मुस्लिमों को मोहम्मद फैज खान ने नसीहत दी है। इंडिया टुडे के एक कार्यक्रम में शामिल होते हुए इस विषय पर मोहम्मद फैज खान ने कहा, ये मुगल आए कहाँ से? ये मंगोल से आए। मध्यकालीन भारत के ऑथेंटिक इतिहासकार इरफान हबीब ने अमीर खुसरो के हवाले से लिखा है कि मंगोल पूरी जिंदगी में कभी नहीं नहाते थे।
अमीर खुसरो को जब उन्होंने अरेस्ट किया तो इसको लेकर खुसरो लिखते हैं कि मुझे उल्टी आ रही थी मंगोलों के सामने खड़े होने पर।” इतिहास का हवाला देते हुए मोहम्मद फैज आगे कहते हैं, “उनकी क्रूरता का आलम ये था कि जब वे किसी जानवर या इंसान को मारते थे तो पहले इनका खून पीते थे वो लोग। मंगोलों के वंशज बाद में मुगल कहलाए और ये क्रूरता बाद में भी जारी रही। ”
औरंगजेब की क्रूरता को बोलते हुए मोहम्मद फैज खान कहते हैं, औरंगजेब ने अपने भाई को पकड़ कर, नग्न करके, नग्न हाथी की पीठ रख करके पूरी दिल्ली के बाजार में घुमाया और फिर कत्ल किया। हिंदू धर्मग्रंथ उपनिषद को मानने वाले सूफी सरमद, जो दिगंबर रहते थे। उनका कत्ल किया दिल्ली की जामा मस्जिद की सीढ़ियों पर। आज भी जामा मस्जिद की पूर्वी द्वार पर उनकी मजार है।
औरंगजेब ने मथुरा के केशवदेव मंदिर को तोड़ा, जहाँ आज श्रीकृष्ण जन्मभूमि का विवाद है। शीशगंज गुरुद्वारे का मतलब क्या है? गुरु तेगबहादुर का शीश वहाँ काटा गया था। इसलिए वह शीशगंज गुरुद्वारा है। यहाँ पर दो-दो बच्चों को, जिन्हें चार साहबजादे जिन्हें हम कहते हैं, दो का कत्ल किया तलवारों से और दो को दिवारों में चिनवाया। ऐसा औरंगजेब या ऐसा बाबर भारत के मुसलमानों का कभी आदर्श नहीं हो सकता। हमारे आदर्श हैं आशफाक उल्लाह खान, हवलदार अब्दुल हमीद, डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम।”
मोहम्मद फैज खान की कथनी और करनी में कोई फर्क नहीं है। वे कथावाचक हैं। वे अपनी कथाओं में गाय की महिमा बताते हैं और लोगों को समझाते हैं कि गाय क्यों पूजनीय है। क्यों उसकी सेवा करनी चाहिए। वे गौरक्षा के लिए देश में घुम-घुमकर अभियान चलाते हैं। वे मध्य प्रदेश और केंद्र सरकार से गाय का गोबर और गोमूत्र खरीदने की माँग कर चुके हैं, ताकि गोरक्षा को लेकर मजबूती मिल सके।
वे गौवंश की रक्षा के लिए लगातार जागरूकता अभियान चलाते रहते हैं। वे गौ रक्षा और गौ जागरूकता अभियान के तहत अब तक लगभग 15,000 किलोमीटर की यात्रा कर चुके हैं। उन्होंने 2017 में लेह लद्दाख से गाय बचाने के लिए यात्रा शुरू की थी। यह यात्रा 14,000 किलोमीटर की पूरे देश में थी, जो अगले तीन सालों तक चली। वे मुस्लिम इलाकों में गोकथा कहते और गो संरक्षण के लिए लोगों से शपथ दिलवाते।
वे अपनी कथाओं में इस्लाम के पैगंबर मोहम्मद साहब का जिक्र करते हैं। वे कहते हैं कि पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब ने कहा है कि गाय का दूध अमृत, मक्खन दवा और गोश्त बीमारी का घर है। वे कहते हैं, “गाय ही स्वर्ग की सीढ़ी है। इस लोक या परलोक में स्वर्ग चाहिए तो गाय की पूँछ पकडनी ही होगी। इस बात का उल्लेख वेदों में भी है।” उन्होंने ‘गाय और इस्लाम’ नाम से एक पुस्तक भी लिखी है।
इसमें गाय का संरक्षण क्यों जरूरी है और इस्लाम में गाय को लेकर क्या मान्यता है, इसकी विस्तार से चर्चा की है। वे पूरे देश में गोहत्या पर पूर्ण पाबंदी की माँग करते है। इस माँग को लेकर वे देश की राजधानी में अनशन भी कर चुके हैं। उनका मानना है कि गाय बचेगी तभी इंसानियत और संस्कृति भी बचेगी। वे मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के गोसेवा प्रकोष्ठ के राष्ट्रीय संयोजक भी हैं। मुस्लिम राष्ट्रीय मंच राष्ट्रवादी संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की एक ईकाई है।
गोसेवा के जज्बा उन्हें अपने माता-पिता से मिला। उन्होंने साल 2012 में गिरीश पंकज का लिखा उपन्यास ‘एक गाय की आत्मा’ पढ़ा था। इस उपन्यास ने उन्हें बहुत प्रेरित किया। इस कहानी का नायक एक मुस्लिम है, जो गोसेवा करता है। फैज ने कहा था कि इस उपन्यास ने उन्हें इतना प्रेरित किया कि वे गोसेवा को ही अपना मकसद बना बैठे। इस काम में उनके माता-पिता और साधु-संतों ने भी प्रेरित किया।
फैज खान के माता-पिता शिक्षक रहे हैं। ये दो भाई हैं। हालाँकि, गोसेवा को अपना धर्म बनाने वाले मोहम्मद फैज ने निकाह नहीं किया किया है। राजनीतिक और हिन्दी में डबल एमए और फिर एमफिल करने वाले फैज खान दो साल तक छत्तीसगढ़ की राजधानी सूरजपुर स्थित एक डिग्री कॉलेज में दो साल तक राजनीति शास्त्र के लेक्चरर भी रहे। हालाँकि, उनका मन तो कहीं और रमा था। इस उपन्या को पढ़ने के बाद उन्होंने नौकरी छोड़ दी।
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर रहने वाले 45 वर्षीय मोहम्मद फैज खान रामभक्त भी हैं। वे पाँचों समय नमाज पढ़ते हैं, लेकिन भगवान राम और भारतीय संस्कृति को भी जानते हैं। वे मंदिर भी जाते हैं और पूजा भी करते हैं। वे कहते हैं, “भले ही हमारा (हिंदू और मुस्लिम का) धर्म अलग-अलग है, लेकिन पूर्वजों से हम सब एक हैं।” वे भगवान राम को ही अपना पूर्वज मानते हैं। उन्होंने साल 2024 में अयोध्या के लिए पैदल यात्रा शुरू की थी। खुद को रामभक्त बताने वाले फैज खान ने सबसे पहले चित्रकूट में भगवान श्री कामदगिरि का दर्शन पूजन और परिक्रमा किया। इसके बाद चित्रकूट से अयोध्या के लिए पदयात्रा शुरु की। इस दौरान उन्होंने साधु-संतों से आशीर्वाद भी लिया।
मोहम्मद फैज खान से करोड़ों मुसलमान हैं, जो भारत की संस्कृति में रचे-बसे हैं। अब तो पाकिस्तान के मुस्लिम भी भारत की संस्कृति से जुड़े अपने पूर्वजों की जड़ खोज रहे हैं और बहुत अभिमान के साथ उन्हें स्वीकार भी कर रहे हैं। ये लोग एक-दो नहीं, लाखों में हैं। पाकिस्तान के ऐसे लोगों के हजारों वीडियो सोशल मीडिया पर भरे पड़े हैं। हालाँकि, वहाँ मुल्ले-मौलाना अपनी राजनीति को चमकाने के लिए मुसलामों को अरब और तुर्क से जोड़ते हैं और भारत एवं संस्कृति से नफरत करना सीखाते हैं।
यही हालत भारत के कट्टरपंथी मौलानाओं का है। चूँकि मीडिया इन्हीं मौलानाओं को मुस्लिमों की आवाज मानकर उनकी बातें छापता है तो ऐसा लगता है कि आम मुसलमान भी ऐसा ही सोचता है। हालाँकि, आज भी गाँवों एवं दूर-दराज के इलाकों में जाएँ तो मोहम्मद फैज खान जैसे मुस्लिमों की कमी नहीं है।
इसका उदाहरण भारतीय क्रिकेटर मोहम्मद शमी को लेकर दिया गया हालिया बयान है। दुबई में मैच के दौरान मोहम्मद शमी ने मैदान में पानी पी लिया तो बरेलवी मौलाना शहाबुद्दीन रिजवी नाराज हो गए और उन पर लानत भेजते हुए कहा कि रमजान के पाक महीने में रोजा रखने के बजाय शमी पानी पी रहे हैं। रिजवी यहीं नहीं रूके। उन्होंने यहाँ तक कह दिया कि भारतीय टीम के इस तेज गेंदबाज ने शरिया कानून की बेइज्जती की है।
रिजवी का ऐसा बयान देने का इरादा क्या था, ये वही जानें लेकिन उनके बयान को लेकर उनकी जमकर लानत-मलामत हुई। मोहम्मद शमी ने कह दिया कि वे ऐसे लोगों की बातों पर ध्यान नहीं देते। शमी के चचेरे भाई मोहम्मद जैद ने यहाँ तक कह दिया कि शहाबुद्दीन रिजवी को कुरान-हदीस की जानकारी नहीं है। उन्होंने कहा कि रिजवी जैसे लोगों तो कोई जानता भी नहीं। वे कठमुल्ला हैं। यही नहीं, शमी के गाँव अलीगढ़ के सहसपुर में मौलाना के बयान को लेकर भारी नाराजगी है। तो ऐसा है अपना भारत। यही है यहाँ की संस्कृति। मोहम्मद शमी, मोहम्मद जैद और मोहम्मद फैज खान जैसे लोग इसके वाहक हैं।