आमतौर पर किसी भी देश में बहुसंख्यक समुदाय को अल्पसंख्यकों पर अत्याचार का दोषी पाया जाता है। भारत संभवतः एकमात्र उदाहरण होगा जहाँ देश की कथित बहुसंख्यक आबादी पर देश की दूसरी सबसे बड़ी आबादी वाले समुदाय के अत्याचारों की कहानियाँ लम्बे समय से सुनाई देती रही हैं। इस मामले में सबसे ताजा उदाहरण संभल है जो एएसआई (भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण) द्वारा सर्वे किये जाने के आदेश के समय से ही तनावग्रस्त हो गया था। न्यायालय के आदेश पर शाही जामा मस्जिद का 19 नवंबर 2024 को सर्वे होना था। दूसरे दौर के सर्वे में 24 नवंबर 2024 को सर्वेक्षण का विरोध कर रहे सांप्रदायिक लोगों की सुरक्षा कर्मियों से झड़प हो गयी। इसके कारण चार लोगों की मौत हुई और कई लोग घायल हो गए। इस हिंसा की जांच करने के लिए समिति बनी जिसमें उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश देवेंद्र अरोड़ा, पूर्व पुलिस प्रमुख अरविंद कुमार जैन और उत्तर प्रदेश के पूर्व अतिरिक्त मुख्य सचिव अमित मोहन प्रसाद शामिल हैं।
जो एएसआई का सर्वेक्षण होना था, उसकी रिपोर्ट में कई बड़े दावे किये गए हैं जिनके आधार पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने व्यापक सर्वे के आदेश दे दिए हैं। रिपोर्ट में बताया गया था कि मस्जिद के टाइल्स और पत्थरों को बदला गया है। इसके अलावा कई हिस्सों में सुनहरे, लाल, हरे और पीले रंग से मोटी तामचीनी पेंट की पर्तें भी लगाईं गयी हैं जिससे मूल सतह को ढका जा सके। सबूत मिटाने की पूरी कोशिश करते हुए मुस्लिम पक्ष ने रमजान से पहले मस्जिद की रंगाई पुताई करवाने की मांग भी की लेकिन एएसआई ने बताया कि अभी इसकी कोई जरूरत नहीं है।
एएसआई की रिपोर्ट के आधार पर कोर्ट ने रंगाई-पुताई करके सबूतों को ढकने-मिटाने की कोशिशों पर रोक लगा दी। इलाहाबाद हाईकोर्ट के फासले के बाद अब मस्जिद की रंगाई-पुताई तीन सदस्यीय विशेषज्ञ समिति की निगरानी में होती। इस समिति का एक सदस्य एएसआई का विशेषज्ञ होगा जो देखेगा कि ऐतिहासिक संरचना को कोई क्षति न हो। रंगाई-पुताई में प्रयोग होने वाली सामग्री का विश्लेषण करने के लिए एक वैज्ञानिक होगा और एक प्रशासनिक अधिकारी होगा जो पूरे कार्य की निगरानी करेगा।
न्यायिक आयोग की जांच
संभल में जो सर्वे के क्रम में हिंसा हुई उसकी जांच एक न्यायिक समिति कर रही है। कुछ दिन पहले हिन्दू पक्ष के वकील गोपाल शर्मा न्यायिक आयोग के सामने संभल के पीडब्ल्यूडी गेस्ट हाउस में पेश हुए और प्रत्यक्षदर्शी के रूप में अपना लिखित बयान पेश किया। न्यायिक आयोग ने गोपाल शर्मा से कई प्रश्न भी पूछे जैसे कि कौन-कौन मौजूद थे, दंगा सुनियोजित था या नहीं, क्या कोई पूर्व योजना थी, लोग जबरन क्यों घुसे, फोटोग्राफी कैसे की गई, और गोपाल शर्मा को इन सभी का उत्तर भी देना पड़ा। आयोग के सदस्यों ने 01 दिसंबर 2024 के अलावा 21 और 30 जनवरी, 2025 को संभल का दौरा किया था। उन्होंने अपनी पिछली यात्रा के दौरान भी अधिकारियों के बयान दर्ज किए थे। संभल की शाही जामा मस्जिद के एक हिंदू मंदिर होने का दावा करने वाले अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने शुक्रवार को अपने चौथे दौरे के दौरान बयान दर्ज कराया था।
संभल हिंसा में प्रशासनिक अफसर और 29 पुलिसकर्मी भी घायल हुए थे। इस मामले में इलाके के नखसा और सदर कोतवाली में रिपोर्ट दर्ज हुई थी। दोनों थानों की पुलिस और अन्य पुलिसकर्मी मिलकर भी अभी तक केवल अस्सी आरोपियों को गिरफ्तार कर पाई है। पुलिस रिपोर्ट ढाई हजार से अधिक लोगों के खिलाफ है। छह मामलों में अभी तक चार्जशीट दाखिल हुई है। हिंसा में पुलिस ने कुल 11 मुकदमे दर्ज किये थे जिसमें से छह मामलों में कुल 215 लोगों के खिलाफ पुलिस चार्जशीट दाखिल कर चुकी है।
हिंसा के दौरान जो लोग सीसीटीवी और वीडियो में पथराव-हिंसा फैलाते दिखे हैं, ऐसे आरोपियों के पोस्टर पुलिस 14 फरवरी से लगवाना शुरू कर चुकी है। नए बने एकता थाने की दीवारों पर ऐसे 74 लोगों की तस्वीरें 15 फरवरी से मौजूद हैं लेकिन ये लोग कौन थे, कहाँ से आये थे, इसकी अभी तक शिनाख्त नहीं हो पायी है। संभल में अभी भी कई मकानों पर ताले लगे हैं, उनके लोग कहाँ गायब हुए हैं, इसकी खोज भी की जा रही है। प्रशासनिक कार्रवाई के धीमे होने के पीछे एक वजह ये भी मानी जा रही है कि 2011 में ही जिला बन जाने के बाद भी अब तक जिला मुख्यालय संभल में नहीं है। जिला मुख्यालय बहजोई से संचालित होता है।
सीएम योगी ने संभल पर क्या कहा?
24 नवंबर की हिंसा के बाद से शहर में नयी पुलिस चौकियां बनाई जा रही हैं। जामा मस्जिद के सामने स्थायी पुलिस चौकी बनी है। खग्गु सराय और मियाँ सराय में नयी चौकियां बन रही हैं। रायसती में थाना स्थापित करने की योजना है और सांसद जियाउर्रहमान बर्क के घर के पास दीपा सराय में भी पुलिस चौकी की नींव रखी गयी है। सांसद बर्क पर हिंसा भड़काने का ही आरोप नहीं रहा, जब जांच हुई तो वो बिजली चोरी तक में लिप्त पाया गया। इलाके में जितने अवैध निर्माण और अतिक्रमण के मामले दिखाई देते हैं, उनसे ये तो माना ही जा सकता है कि सत्ता द्वारा इसे पोषित किया जाता रहा है। बीते मंगलवार को मुख्यमंत्री योगी ने विधानसभा में ही कहा कि संभल में 68 तीर्थ और 19 कूप थे जिनकी निशानी मिटाने की कोशिशें की गयीं। इनमें से कई कूप और तीर्थ जरा सी खोजबीन में ही मिलने लगे। कई-कई मंजिल वाली बावड़ी जो लुप्त हो चुकी थी, वो भी खुदाई में निकल आई।
गाँव अल्लीपुर खुर्द में अमरपति खेड़ा हुआ करता था। सम्राट पृथ्वीराज चौहान के काल के गुरु अमरपति की समाधी इसी जगह थी। यहाँ पर कभी 21 समाधियाँ हुआ करती थीं, इसलिए 1920 से ही ये इलाका एएसआई के संरक्षण में था। पिछली सरकारों के दौरान हिन्दू स्मारकों की लूट की जो आदत सत्ता पक्ष के लोगों में थी, उसके कारण यहाँ खनन माफिया ने काफी लूट मचाई। यहाँ से पुराने समय के सिक्के, मिट्टी के बर्तन (मृदभांड) इत्यादि मिले थे। मिट्टी के दिए (विरागी) भी इससे मिले थे और जो सिक्के मिले उनपर भगवान राम-सीता और लक्ष्मण अंकित थे। कुल मिलाकर केवल एक संभल ही भारत के तथाकथित बहुसंख्यकों पर देश की दूसरी बड़ी बहुसंख्यक आबादी द्वारा हुए अत्याचारों की एक लम्बी कहानी सुनाता है।
दूसरे देशों में जहाँ होलोकॉस्ट के, होलोडोमोर के, नरसंहारों के स्मारक हैं, वहाँ भारत में हिन्दुओं पर हुए अमानवीय अत्याचारों को दर्शाने वाले म्यूजियम भी नहीं हैं। संभल में हिंसा के बाद से जो सच बाहर आ रहा है, या अयोध्या जी में अदालत के फैसले से जो जन्मभूमि मंदिर वापस लिया गया, उसके बाद अब भारत में हिन्दुओं पर हुए अत्याचारों का भी म्यूजियम बनाए जाने पर विचार होना चाहिए।