देश में अलग समय काल में अलग-अलग वीरों ने हिंदू धर्म की ध्वजा फहरती रही, इसलिए अपने प्राणों की आहुति दी है। छत्रपति शिवाजी महाराज के पुत्र संभाजी महाराज भी ऐसे ही वीर थे जिन्होंने मृत्यु के भय से इस्लाम स्वीकार करने से इनकार कर दिया था। 1689 में संभाजी महाराज मराठा नेताओं के साथ बैठक करने के लिए संगमेश्वर पहुंचे थे और इसी दौरान मुगलों की सेना ने उन पर घात लगाकर हमला कर दिया। संभाजी को बंदी बना लिया गया और इसके बाद आज ही के दिन यानी 11 मार्च को 1689 में संभाजी महाराज की हत्या कर दी गई। शिवाजी ने अपने जीवन में हिंदुत्व की जिस लौ को जलाया था संभाजी ने अपने बलिदान से उसकी चमक को बरकरार रखा।
संभाजी महाराज का जन्म 14 मई 1657 को पुणे के नज़दीक पुरंदर के किले में हुआ था। संभाजी महाराज छत्रपति शिवाजी महाराज और उनकी पहली पत्नी साईबाई के पुत्र थे। जब वह दो वर्ष के थे तो 1659 में उनका मां का निधन हो गया था और उनके पिता व उनकी दादी जीजाबाई ने उनका पालन पोषण किया था। उन्हें संस्कृत, मराठी और हिंदी सहित कई भाषाएं सिखाई गई थीं। एक बहादुर योद्धा संभाजी का शासनकाल चुनौतियों भरा था और उन्हें मुगलों, पुर्तगालियों और अन्य राज्यों के साथ संघर्ष करना पड़ा था। करीब 9 वर्ष की आयु में संभाजी को मराठों और मुगलों के बीच पुरंदर की संधि (1665) के तहत राजनीतिक बंधक के तौर पर आमेर के राजा जय सिंह प्रथम के पास भेजा गया था। कुछ ही समय बाद 1666 में संभाजी और उनके पिता मुगलों की कैद से भाग निकले थे।
मराठों के शासन के विस्तार के लिए छत्रपति शिवाजी ने वैवाहिक संबंधों को एक महत्वपूर्ण साधन बनाया था। शिवाजी महाराज ने खुद 8 शादियां की थीं और इनमें से ज़्यादातर राजनीतिक उद्देश्यों के लिए की गई थीं। शिवाजी ने 1664 के अंत में महाराष्ट्र के ताल-कोंकणी क्षेत्र में शक्तिशाली देशमुख परिवार में पिलाजी राव शिर्के की बेटी जीवूबाई उर्फ येसुबाई से संभाजी की शादी की थी। इस शादी के बाद शिवाजी को कोंकण क्षेत्र में मराठा साम्राज्य का विस्तार करने में बहुत मदद मिली थी। संभाजी ने मराठा साम्राज्य का विस्तार करने के लिए अपने पिता के साथ मिलकर लड़ाइयों में हिस्सा लिया था। अप्रैल 1680 में छत्रपति शिवाजी महाराज का निधन हुआ तो कुछ मंत्रियों ने उनके संभाजी के सौतेले भाई राजाराम को नया राजा बनाने की कोशिशें कीं लेकिन वे सफल नहीं हुए।
संभाजी ने रायगढ़ और पन्हाला जैसे महत्वपूर्ण किलों पर कब्जा कर लिया और 20 जुलाई 1680 को उनकी मराठा साम्राज्य के नए छत्रपति के रूप में ताजपोशी की गई। मराठा साम्राज्य के विस्तार और उसकी रक्षा के लिए संभाजी महाराज ने कई लड़ाइयां लड़ीं। जब संभाजी महाराज ने गद्दी संभाली तो औरंगज़ेब के नेतृत्व में मुगल दक्कन पर कब्जा करने की कोशिश कर रहे थे। मराठा साम्राज्य को चारों तरफ से घेरने की कोशिशें शुरू हुईं तो संभाजी ने जबरदस्त तैयारी की और गुरिल्ला युद्ध तकनीक के जरिए मुगल सेना को कई युद्धों में हराया था। मराठा सेनाओं ने आगे बढ़कर बुरहानपुर पर हमला किया जहां मुगल सेना तैनात थी और इस युद्ध में मुगलों को भारी नुकसान उठाना पड़ा। संभाजी के जंजीरा के सिद्दियों और गोवा में पुर्तगालियों के साथ भी युद्ध हुए थे। 1684 में बंबई में संभाजी ने हथियार और बारूद प्राप्त करने के लिए अंग्रेजों के साथ एक संधि पर हस्ताक्षर भी किए थे।
1687 में संभाजी की सेना का महाबलेश्वर के वाई में मुगल सेना के साथ युद्ध हुआ, इस युद्ध में मराठा सेना की जीत हुई लेकिन इसमें मराठा सेना के प्रमुख हंबीरॉव मोहिते की मौत हो गई थी। मोहिते की मृत्यु मराठा सेना के लिए एक बड़ा झटका थी। बताया जाता है कि इस युद्ध के बाद संभाजी कि स्थिति कमज़ोर हो गई थी, उनके कई दरबारी उनका साथ छोड़ गए थे। संभाजी महाराज 1689 में मराठा नेताओं के साथ बैठक करने के लिए संगमेश्वर पहुंचे थे और इसी दौरान मुगलों की सेना ने उन पर घात लगाकर हमला कर दिया।
विश्वास पाटिल ने संभाजी की जीवनी में लिखा है कि संभाजी को बहादुरगढ़ के मुगल शिविर में ले जाया गया और औरंगज़ेब के आदेश पर पूरे शहर में उनकी परेड कराई गई। इस दौरान संभाजी को विदूषक के कपड़े पहनाए गए थे। उन्होंने लिखा, “सोने के सिंहासन पर बैठने वाले संभाजी को मामूली अपराधी की तरह एक दुबले पतले ऊंट पर बैठाया गया। उनके सिर पर कैदियों के लिए इस्तेमाल में लाई जाने वाली लकड़ी की टोपी पहनाई गई। उनके हाथ को ऊपर उठा कर लकड़ी के तख्ते से बांध दिया गया और उनकी गर्दन को भी लकड़ी के तख्ते से जकड़ दिया गया ताकि वो इधर-उधर न देख सकें।” इतिहासकार डेनिस किनकेड इसे लेकर लिखते हैं कि संभाजी महाराज को औरंगज़ेब ने इस्लाम धर्म अपनाने का आदेश दिया था लेकिन जब संभाजी ने ऐसा करने से इनकार कर दिया तो औरंगज़ेब के आदेश पर उनकी ज़ुबान खींच ली गई।
अंधा किए जाने के 15 दिनों बाद तक औरंगज़ेब के आदेश पर संभाजी महाराज को यातनाएं दी जाती रहीं और एक बार फिर उनके सामने इस्लाम अपनाने का प्रस्ताव दिया गया। संभाजी ने एक कागज़ पर अपना जवाब लिखा कि ‘वह मुस्लिम नहीं बनेंगे, अगर बादशाह अपनी बेटी भी मुझे दे दें तब भी नहीं’। डेनिस किनकेड लिखते हैं कि 11 मार्च के दिन 1689 को एक-एक कर संभाजी के सारे अंग काट दिए गए और अंत में उनका सिर धड़ से अलग कर दिया गया। इसके बाद भी मुगल आक्रांता का मन नहीं भरा तो उनके कटे हुए सिर को दक्षिण के प्रमुख नगरों में घुमाया गया। औरंगज़ेब ने बेशक संभाजी की अंत कर दिया था लेकिन वह कभी उनके हौसले को नहीं तोड़ सका था। ‘धर्मवीर’ संभाजी ने सारे अत्याचार सहे लेकिन कभी धर्म से विमुख नहीं हुए।