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नक्सलवाद पार्ट-2: नक्सलबाड़ी से रेड कॉरिडोर तक; कैसे बढ़े नक्सली?

नक्सलवाद का जिक्र होता है तो नक्सबाड़ी का नाम जरूर आता है। आइये जानें आखिर कम्यूनिज्म ने यहां से किसानों के आंदोलन को क्रूर बनाकर रेड कॉरिडोर के मुहाने तक पहुंचा दिया।

Shyamdatt Chaturvedi द्वारा Shyamdatt Chaturvedi
28 May 2025
in भारत
Naxalism Part 2 From Naxalbari to Red Corridor

Naxalism Part 2 From Naxalbari to Red Corridor

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नक्सलवाद पार्ट-2: आज से करीब 180 साल पहले जर्मन विचारक कार्ल मार्क्स ने कम्यूनिज्म को जन्म दिया। ये उस दौर में गरीब, किसानों के लिए उठाई गई पहली आवाज थी। उसने अधिकारों की लड़ाई को बल दिया। दूसरे विश्व युद्ध से पहले कॉल मार्क्स के विचार ने विस्तार पकड़ा और जर्मनी के रास्ते रूस, चीन और फिर भारत में पनाह कर गया। साल 1920 में पहली बार भारत में कम्युनिस्ट पार्टी बनाने की बात हुई और 1925 में कानपुर में स्थापना हो गई। हिंदुस्तान में प्रवेश के साथ ही कम्यूनिज्म और अधिक क्रूर और कुटिल हो गया। पहले तो ये अंग्रजों से किसान, गरीब और मजदूरों के अधिकारों के लिए लड़ते रहे। कुछ समय बाद दूसरे विश्व युद्ध में जब अंग्रेजों ने सोवियत का साथ दिया तो कम्युनिस्ट महात्मा गांधी के आंदोलनों के भी खिलाफ हो गए। खैर 1947 में देश आजाद हो गया। चुनावी दौर आया तो केंद्र के साथ ज्यादातर राज्यों में कांग्रेस की सरकार बनी। उसके बाद से उनकी नीतियों का परिणाम ये हुआ कि 1967 में नक्सलबाड़ी से कम्यूनिज्म का नक्सलवादी रूप सामने आया।

नक्सलवाद के पार्ट-1 में हमने आपको बताया था कि कैसे जर्मनी से कम्यूनिज्म का भारत में आकर नक्सलवाद बन गया। अब हम आपको बताएंगे कि आखिर नक्सलबाड़ी से चला ये आंदोलन रेड कॉरिडोर के मुहाने तक कैसे पहुंचा?

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यहां से शुरू होती है कहानी

कहानी 1967 के दौर से शुरू होती है। केंद्र में कांग्रेस के नेतृत्व वाली इंदिरा गांधी की सरकार थी। वहीं पश्चिम बंगाल में कांग्रेस के प्रफुल्ल चंद्र सेन की सरकार जाने के बाद बंग्ला कांग्रेस के अजय मुखर्जी ने अपनी सरकार बनाई थी। इसे कम्युनिस्ट समर्थन दे रहे थे। भारत की धरती पर बसन्त की गड़गड़ाहट थी। इस बीच कम्युनिस्ट नेताओं की सह में पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग किसानों का विद्रोह फूट पड़ा।

पश्चिम बंगाल के तराई क्षेत्र दार्जिलिंग से करीब 60 किलोमीटर दक्षिण में नक्सलबाड़ी नाम की जगह है। जहां 1939 में आज के बांग्लादेश से आकर बसे कॉमरेड मुजीबुर रहमान नक्सलबाड़ी की धुरी तैयार कर दी थी। इन्होंने तराई क्षेत्र में 1955 से शुरू हुए भूमि सुधार आंदोलन के जरिए मजदूरों को संगठित कर लिया था। हालांकि, इलाके में आदिवासी किसान दशकों से जमींदारों की जमीन पर खेती कर रहे थे।

कम्युनिस्टों ने डाला आग में घी

इलाके में कुख्यात जोतदार बुद्धिमन तिर्की हुआ करते थे। इनके बड़े भाई ईश्वर तिर्की कांग्रेस के जाने माने नेता था। इन भाइयों ने जमीन के बड़े हिस्से पर कब्जा कर रखा था जहां बटाईदार बिगुल किशन खेती करता था। किसान पूरी मेहनत और लगन से खेती करता था लेकिन उपज का ज्यादा हिस्सा जमीदार के पास चला जाता था। ऐसा इलाके के सभी किसानों के साथ था। इसी समय आग में घी डालने का काम कम्युनिस्टों ने कर दिया।

नक्सलबाड़ी से शुरू हुआ नक्सलवाद

कम्युनिस्ट पार्टी ने 1967 के मार्च महीने कृषक सभा की एक बैठक की। इसमें संकल्प लिया गया कि अब बटाईदार पूरी फसल पर कब्जा कर लेंगे। मार्च में हुआ ये फैसला अब लागू होना था। 21 मई 1967 दिन रविवार को बटाईदार बिगुल किशन ने बुद्धिमन तिर्की के खिलाफ विद्रोह कर दिया। परिणाम ये हुआ कि कांग्रेस नेता के गुंडों ने उसकी जमकर पिटाई कर दी। जब किसान थाने में शिकायत दर्ज कराने पहुंचा तो कांग्रेस नेता ईश्वर तिर्की की धौंस के कारण शिकायत तक दर्ज नहीं की गई।

कॉमरेड मुजीबर इसी मौके की तलाश में था। वो माओ के विचार से किसानों को बहलाया और हथियारों के साथ तिर्की के घर का घेराव करने पहुंच गया। 3 दिन बाद 24 मई को भारी भारी संख्या में पुलिस वाले किसानों को धमकाने के लिए पहुंच गए। यहां सब-इंस्पेक्टर सोनम वांगडी को किसानों के गुस्से का शिकार होना पड़ा। उस दौरान तिर्की पास के शहर सिलीगुड़ी भाग गया था।

ये भी पढ़ें: नक्सलवाद के समर्थन में खुलकर सामने आईं भारत की कम्युनिस्ट पार्टियां

अगले दिन यानी 25 मई को पुलिस बदले की भावना से पूरी ताकत के साथ आई। नक्सलबाड़ी के बाहर महिलाओं ने पुलिस को रोकने की कोशिश की लेकिन वो कहां रुकने वाले थे। किसी तरह पुलिस फोर्स नक्सलबाड़ी में घुस आई। यहां उसने ताबड़तोड़ गोलियां चलाईं। गोलीबारी में 11 लोगों की मौत हो गई। मरने वालों में 9 महिलाएं और 2 बच्चे शामिल थे। इसी घटना के बाद आंदोलन भड़क गया।

मार्क्सवादी नेताओं ने बनाया हिंसक

प्रदेश में नक्सलवादी संघर्ष का नेतृत्व कम्युनिस्ट पार्टी मार्क्सवादी के नेता कानू सान्याल और चारू मजूमदार ने संभाल लिया। पश्चिम बंगाल में जगह-जगह हिंसक विरोध होने लगा। उस दौर में कई किसानों की मौत हुई। माओ के विचार के साथ शुरू हुआ। इस कारण आंदोलन माओवादी आंदोलन कहलाया। नक्सलबाड़ी केंद्र होने के कारण इसे नक्सलवाद नाम दिया गया। धीरे-धीरे इनका उद्देश्य बदल गया। किसानों के अधिकार की लड़ाई सत्ता का विरोध बन गई। इसका मकसद सत्ता को कब्जे में लेना रह गया।

कम्युनिस्टों का सत्ता को कब्जाने का प्लान

किसान और आदिवासी आंदोलनकारी नक्सलबाड़ी के आंदोलन में मारे जा रहे थे। दूसरी तरफ कम्युनिस्ट सत्ता को कब्जाने के अपने रास्ते खोज रहे थे। काफी हद तक वो इसमें कामयाब भी हुए। आंदोलन से जुड़े पंचानन सरकार ने इस बात का ज़िक्र किया था। उन्होंने बताया था कि ‘1987 में मैं बंगाली दैनिक आजकल के लिए नक्सलबाड़ी गया था। अभी भी वहां अलग-अलग नक्सल आंदोलन चल रहे थे। हालांकि, आंदोलन राज्य की सत्ता पर कब्जा करने और सामाजिक और आर्थिक संबंधों को पूरी तरह से बदलने में आज तक कामयाब नहीं हो पाया।’

भारत के विशाल विस्तार को सुलगाना चाहते थे

आंदोलन भड़काने वाले कम्युनिस्टों का इरादा पीपुल्स डेली के एक लेख से और साफ हो जाता है। रनबीर समद्दार ने 5 जुलाई 1967 को पीपुल्स डेली में संपादकीय में लिखा था कि भारतीय सर्वहारा धरती हिला देने वाला परिवर्तन लाने में सक्षम बनेगा। सशस्त्र संघर्ष ही भारतीय क्रांति का एकमात्र सही रास्ता है। यहां कोई दूसरा रास्ता नहीं है। रनबीर ने अपने लेख में गांधीवाद, संसदीय मार्ग को लोगों को पंगु बनाने वाली अफीम बताया था। उन्होंने लिखा था कि दार्जिलिंग में उठी चिंगारी मैदान में आग लगा देगी और निश्चित रूप से भारत के विशाल विस्तार को सुलगा देगी।

यहां से शुरू होता है विस्तार

नक्सलबाड़ी आंदोलन को दबाने के लिए पश्चिम बंगाल में बनी संयुक्त मोर्चा की सरकार ने थोड़ी सख्ती बरती। सरकार में सीपीआई (एम) भी शामिल थी। इसी कारण वो अपने लेफ्ट के साथियों को नाराज नहीं करना चाहती थी। इस कारण आंदोलन में शामिल असामाजिक तत्वों को पूरी तरह नहीं दबाया गया। इसके बाद आंदोलनकारियों का भ्रम टूट गया। कुछ नेता पार्टी के खिलाफ जाने लगे। इसी बीच रेडियो पेकिंग और पार्टी के मुखपत्र पीपुल्स डेली में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी से मिले समर्थन ने इनके हौसलों को बढ़ा दिया। नक्सली आंदोलन बढ़ता गया और इसी के साथ असंतोष भी बढ़ता गया।

साल 1969 में मार्क्सवादी पार्टी से अलग होकर कट्टरपंथी नेता चारू मजूमदार ने अलग पार्टी बनाने का फैसला लिया। उन्होंने आंदोलन को हिंसक रुख देने वाले सुनील घोष, रनबीर समद्दार और अशीम चट्टोपाध्याय जैसे लोगों के साथ भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) यानी CPI(ML) बनाई। इसकी एक विंग का मकसद हिंसात्मक विरोध था। यहीं से नक्सलबाड़ी आंदोलन का क्रूर चेहरा और अधिक वीभत्स हो गया।

समय के साथ नक्सलवाद की विचारधारा बदल गई है। वास्तव में जिस वजह से इस आंदोलन की नींव पड़ी थी उससे यह अब भटक चुका है। CPI(ML) का सैनिक संगठन पीपुल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी काफी मजबूत बन गयी। इस नेटवर्क ने भारतीय लोकतंत्र पर अविश्वास फैलाना और चुनावों का बहिष्कार करना शुरू कर दिया। पश्चिम बंगाल से निकलकर नक्सलवाद तत्कालीन बिहार, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, उड़ीसा, आंध्र प्रदेश में फैल गया। आखिरकार कुछ साल में इसने रेड कॉरिडोर का निर्माण कर लिया जो आजतक आदिवासी विकास की राह में रोड़ा बना हुआ है।

Tags: communistLal AatankNaxalbariNaxalismRed Corridorकम्युनिस्टनक्सलबाड़ीनक्सलवादरेड कॉरिडोरलाल आतंक
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