महाभारत की रचना किसने की?
महाभारत की रचना किसने की? : परमर्षि श्रीकृष्ण-द्वैपायनने जिस प्राचीन इतिहास रूप पुराण का वर्णन किया है और देवताओं तथा ऋषियोंने अपने-अपने लोकमें श्रवण करके जिसकी भूरि-भूरि प्रशंसा की है, जो आख्यानोंमें सर्वश्रेष्ठ है, जिसका एक-एक पद, वाक्य एवं पर्व विचित्र शब्दविन्यास और रमणीय अर्थसे परिपूर्ण है, जिसमें आत्मा-परमात्माके सूक्ष्म स्वरूपका निर्णय एवं उनके अनुभवके लिये अनुकूल युक्तियाँ भरी हुई हैं और जो सम्पूर्ण वेदों के तात्पर्यानुकूल अर्थसे अलंकृत है, उस भारत-इतिहासकी परम पुण्यमयी, ग्रन्थके गुप्त भावोंको स्पष्ट करनेवाली, पदों-वाक्योंकी व्युत्पत्तिसे युक्त, सब शास्त्रोंके अभिप्रायके अनुकूल और उनसे समर्थित जो अद्भुतकर्मा व्यासकी संहिता है, उसे ही महाभारत कहते हैं। वह चारों वेदोंके अर्थोंसे भरी हुई तथा पुण्यस्वरूपा है। पाप और भयका नाश करनेवाली है। भगवान् वेदव्यासकी आज्ञासे राजा जनमेजय के यज्ञमें प्रसिद्ध ऋषि वैशम्पायनने आनन्दमें भरकर भलीभाँति इसका निरूपण किया है।
महाभारत की रचना किसने की – वेदव्यास का ध्यान
हिमालयकी पवित्र तलहटी में पर्वतीय गुफाके भीतर धर्मात्मा व्यासजी स्नानादि से शरीर-शुद्धि करके पवित्र हो कुश का आसन बिछाकर बैठे थे। उस समय नियमपालन पूर्वक शान्तचित्त हो वे तपस्यामें संलग्न थे। ध्यानयोग में स्थित हो उन्होंने धर्मपूर्वक महाभारत-इतिहासके स्वरूप का विचार करके ज्ञान दृष्टि द्वारा आदि से अन्त तक सब कुछ प्रत्यक्षकी भाँति देखा (और इस ग्रन्थ का निर्माण किया)।
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भगवान् वेदव्यास ने, अपनी ज्ञानदृष्टिसे सम्पूर्ण प्राणियोंके निवासस्थान, धर्म, अर्थ और कामके भेदसे त्रिविध रहस्य, कर्मोपासनाज्ञानरूप वेद, विज्ञानसहित योग, धर्म, अर्थ एवं काम, इन धर्म, काम और अर्थरूप तीन पुरुषार्थोंके प्रतिपादन करनेवाले विविध शास्त्र, लोकव्यवहारकी सिद्धिके लिये आयुर्वेद, धनुर्वेद, स्थापत्यवेद, गान्धर्ववेद आदि लौकिक शास्त्र सब उन्हीं दशज्योति आदि से हुए हैं—इस तत्त्व को और उनके स्वरूप को भलीभाँति अनुभव किया।
महाभारत की रचना – महाभारत के रूप और रहस्य
महर्षिने इस महान् ज्ञान का संक्षेप और विस्तार दोनों ही प्रकारसे वर्णन किया है; क्योंकि संसारमें विद्वान् पुरुष संक्षेप और विस्तार दोनों ही रीतियों को पसंद करते हैं।
महर्षि वेदव्यास ने इस महाकाव्यमें सम्पूर्ण वेदोंका गुप्ततम रहस्य तथा अन्य सब शास्त्रोंका सार-सार संकलित करके स्थापित कर दिया है। केवल वेदों का ही नहीं, उनके अंग एवं उपनिषदों का भी इसमें विस्तार से निरूपण किया है
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