कहते है दिल्ली की सत्ता का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर जाता है इसीलिए उत्तर प्रदेश का हर एक चुनाव ख़ासा महत्त्वपूर्ण हो जाता है। लेकिन उत्तर प्रदेश के निकाय चुनाव इस बार इतने ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाएंगे यह शायद ही पहले कभी हुआ हो। क्योंकि इन चुनावों में कई बड़े चेहरों की साख दांव पर लगी थी। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में ऐतिहासिक जीत दर्ज करने के बाद सत्ता में आए योगी आदित्यनाथ की आज पहली अग्निपरीक्षा मानी जा रही थी। उत्तर प्रदेश नगर निकाय चुनाव के नतीजे थे और इस नतीजे में एक बार फिर योगी आदित्यनाथ भाजपा के लिए सफल साबित हुए। योगी के नेतृत्व में भाजपा ने निकाय चुनाव में बम्पर जीत दर्ज की है। कुल 16 नगर निगम में भाजपा के खाते में 14 मेयर आये है। इसका श्रेय योगी आदित्यनाथ सरकार को इसीलिए भी जाता है क्योंकि मीडिया ने इसे योगी के साख का चुनाव बना दिया था तो श्रेय भी उन्हें जाना चाहिए।
उत्तर प्रदेश में 22, 26 और 29 नवंबर को वोटिंग हुई थी। इस चुनाव में राज्य के 16 नगर निगम, 198 नगर पालिका परिषद और 439 नगर पंचायतों में चुनाव तीन चरणों में कराया गया था। कुल मिलाकर तीन चरणों के मतदान का प्रतिशत औसतन 52.5 प्रतिशत रहा।
योगी ने उत्तर प्रदेश निकाय चुनाव को गंभीरता से लिया और दर्ज की प्रचंड जीत
भले ही मीडिया इसे योगी की अग्निपरीक्षा मान ले लेकिन योगी आदित्यनाथ ने भी इस चुनौती को भलीभांति समझा है और राज्य के निकाय चुनाव में धुआंधार चुनाव प्रचार भी किया था वही कांग्रेस और बाकी दल मानो पहले ही हार मन के बैठ गए थे जैसे उन्हें नतीजों का अंदाजा हो। जाहिर सी बात है योगी आदित्यनाथ को जिस तरह प्रचंड बहुमत देकर उत्तर प्रदेश की जनता ने मुख्यमंत्री का ताज पहनाया था उतनी तेजी से फैसले करने के लिए योगी जाने जाते रहे है ऐसे में भाजपा को इसी नतीजों की उम्मीद भी थी लेकिन विपक्ष एक बार फिर ईवीएम में गड़बड़ी का राग अलापने को मजबूर है।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इन चुनावों में प्रचार की शुरुआत 14 नवंबर को अयोध्या से की थी, एक महीने में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 26 रैलियां कीं, इस दौरान वो सभी 16 ज़िलों में जनता रूबरू हुए। 2012 में मेयर इलेक्शन में भाजपा ने 12 में से 10 सीटें जीती थीं। जिसे बरकरार रखते हुए इस बार कुल 16 में से 14 सीट झोली में डाल प्रचंड जीत दर्ज करायी है वही नगर पालिका में भी रहा भाजपा का वर्चस्व।
नगरपालिका में 198 अध्यक्ष पद में से 95 नगर अध्यक्ष पद पर भाजपा ने अपना परचम लहराया है। जबकि एसपी को 36, बीएसपी को 35 और कांग्रेस 3 सीट पर समाधान करना पड़ा। 2012 में कुल 194 अध्यक्ष पदों में से 42 पर भाजपा ने जीत दर्ज की थी।
कांग्रेस के ‘हाथ’ से फिसला अमेठी-रायबरेली, भाजपा का लहरा परचम
कांग्रेस का गढ़ कहे जाने वाले दोनों शहरों में कांग्रेस की हालत पतली नजर आ रही है क्योंकि ये दोनों सीटें भाजपा के खाते में चली गयी। कुछ ऐसा ही हाल मार्च में संपन्न हुए विधानसभा चुनावों में भी था। यहां हैरान करने वाली बात ये है कि विधानसभा चुनाव कांग्रेस और सपा ने गठबंधन के तहत लड़ा था, फिर भी 5 में से 4 सीटें भाजपा जीती और कांग्रेस का खाता भी नहीं खुला था। कांग्रेस ने अपने ही गढ़ को हमेशा उपेक्षित रखा जबकि भाजपा की स्मृति ईरानी लगातार वहां संपर्क बनाए हुए हैं। राज्य और केन्द्र में भाजपा की सरकार होने के चलते इसका लाभ भी वो लोगों को दिला रही हैं जिसके चलते भाजपा राहुल-सोनिया के गढ़ में सेंध लगाने में कामयाब हुई है।
फिर एकबार उत्तर प्रदेश ने नकारा कांग्रेस-सपा को, खाता भी नहीं खोल पाए
उत्तर प्रदेश के ‘मिनी विधानसभा’ यानी नगर निकाय चुनाव की मतगणना आज सुबह शुरू होनी थी। मेयर पद के शुरुआती रुझानों में भारतीय जनता पार्टी ने 11 सीट पर बढ़त बना रखी थी। वहीं बसपा के उम्मीदवार 5 सीट पर आगे चल रहे थे । लेकिन रुझान नतीजों में बदलते बदलते भाजपा के झोली में कुल 14 नगर निगम चले गए वही समाजवादी पार्टी और कांग्रेस पार्टी अपना खाता तक नहीं खोल पायी। बीएसपी खाते में आई दो सीट। राहुल गाँधी की कांग्रेस ने उम्मीद के हिसाब से ही प्रदर्शन किया है। सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी ने जहां विधानसभा चुनाव वाला प्रदर्शन दोहराया वही विपक्षी दलों ने भी अपना प्रदर्शन दोहराने में कोई कमी नहीं छोड़ी।
भाजपा ने दिया लखनऊ को पहली महिला मेयर, रचा इतिहास
आज शहर को पहली महिला महा पौर मिलेगी । लखनऊ के इतिहास में आज तक कोई भी महिला महा पौर की कुर्सी पर नहीं बैठी। आजादी के बाद पहली बार लखनऊ की सीट महिलाओं के लिए आरक्षित की गई है। लखनऊ में भाजपा की तरफ से संयुक्ता भाटिया ने इलेक्शन में जित दर्ज कर लखनऊ की पहली महिला मेयर बनने का गौरव प्राप्त किया है।
पार्टी अध्यक्ष बनने के बाद अखिलेश यादव की लगातार दूसरी हार
समाजवादी पार्टी का अध्यक्ष बनने के बाद अखिलेश यादव के सामने भी बड़ी चुनौती थी कि क्या वह विधानसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद पार्टी में फिर से जोश भरने का माद्दा रखते है या नहीं। लेकिन तमाम मुद्दों पर अखिलेश यादव कुछ ख़ासा कर नहीं पाएं और फिर एकबार चुनाव में नाकाम साबित हुए तो आने वाले भविष्य में अखिलेश के पार्टी अध्यक्ष बनने पर और पार्टी के अस्तित्व पर सवाल खड़े हो सकते है।
मीडिया अनुसार योगी के साख का चुनाव है लेकिन राहुल-अखिलेश के लिए नहीं?
उत्तर प्रदेश में हुए निकाय चुनाव योगी सरकार बनने के बाद पहला चुनाव है और मीडिया की बात माने तो यह योगी सरकार और मोदी सरकार की साख का मुद्दा है जैसे की मीडिया हर छोटे-बड़े इलेक्शन को अब तक मोदी सरकार के साख का मुद्दा बना देती रही है, अब उसमें योगी आदित्यनाथ भी शामिल हो गये है क्योंकि मोदी के बाद अगर कोई मीडिया का टारगेट है तो वो है उत्तर प्रदेश में प्रचंड बहुमत पाकर मुख्यमंत्री बने भाजपा के फायर ब्रांड नेता योगी आदित्य नाथ। इसीलिए अब जब-जब उत्तर प्रदेश में चुनाव आएंगे चाहे वो विधानसभा हो, विधान परिषद, नगर निगम, नगर पालिका या पंचायत चुनाव इसे मीडिया योगी सरकार और खासकर योगी आदित्यनाथ की साख से सीधा जोड़ देगी भले ही योगी ने अब तक अपने राजनैतिक जीवन में कइयों चुनाव जीते हो लेकिन हर चुनाव अब साख का चुनाव माना जायेगा।
एक बात जो गौर करने वाली है वो यह की 2014 के बाद से हर इलेक्शन में मीडिया द्वारा नरेन्द्र मोदी की ही साख दांव पर क्यों लगायी जाती है ? लेकिन दो दर्जन बड़े छोटे चुनाव में कांग्रेस की लुटिया डुबोने वाले, कांग्रेस को हर चुनाव में तीसरे चौथे पायदान पर लाकर खड़ा करने वाले, चुनाव दर चुनाव हार और सिर्फ हार का मुंह देखने वाले कांग्रेस उपाध्यक्ष (होनेवाले अध्यक्ष) राहुल गाँधी के लिए कोई भी चुनाव साख का क्यों नहीं है? राहुल सिर्फ चुनाव नहीं हार रहे है राहुल वोट शेयर भी कम करवा रहे है। इसके बावजूद हर चुनाव में मोदी और अब योगी की साख दांव पर लग रही है लेकिन इसमे अच्छी बात यह है की मोदी और योगी मीडिया के बनाये इस प्रोपगंडा में न केवल जीत रहे है बल्कि प्रचंड बहुमत से सरकारें भी बना रहे है। उत्तर प्रदेश में तो आज के नतीजों के बाद योगी ने अपनी पहली अग्निपरीक्षा अव्वल नंबरों से पास भी कर ली और सर्वे की माने तो गुजरात में भी भाजपा प्रचंड जीत दर्ज कराने जा रही है।