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केसीआर ने किया तेलंगाना विधानसभा भंग: ‘एक देश एक चुनाव’ के लिए इसके क्या मायने हैं

TFI Desk द्वारा TFI Desk
7 September 2018
in मत
केसीआर एकसाथ चुनाव
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तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने राज्य विधानसभा भंग करने का फैसला किया ताकि समय से पहले चुनाव हो सकें। इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक, सीएम केसीआर ने विधानसभा भंग करने के लिए राज्यपाल के समक्ष प्रस्ताव रखा था और राज्यपाल ने इसपर अपनी मुहर लगा दी। राज्यपाल ईएसएल नरसिम्हन ने चंद्रशेखर राव और उनकी मंत्रिपरिषद से कार्यवाहक सरकार के तौर पर पद पर बने रहने को कहा है।

इसका मतलब ये है कि आने वाले 6 महीनों में तेलंगाना में चुनाव होंगे। इससे पहले तेलंगाना में मई 2019 में चुनाव होने थे लेकिन अब ऐसा लगता है कि इसी साल नवंबर-दिसंबर में मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और मिजोरम राज्यों में होने वाले चुनाव के साथ ही तेलंगाना में भी चुनाव होंगे।

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इससे पहले रविवार को कैबिनेट की एक बैठक में मुख्यमंत्री ने राज्य विधानसभा को भंग कर जल्द चुनाव के प्रस्ताव को लेकर संकेत दिए थे।

इसी साल जून में पीएम मोदी से मुलाकात के बाद केसीआर ने कहा था, “हम अग्रिम चुनावों के लिए तैयार हैं। यहां तक ​​कि लोग भी अग्रिम चुनावों के लिए तैयार हैं। मैंने कांग्रेस और अन्य विपक्षी पार्टियों से पूछा कि क्या वो तैयार हैं या नहीं। यदि हम चुनाव के लिए आगे बढ़ते हैं तो इससे स्पष्ट हो जायेगा कि किस पार्टी में कितना दम है और कौनसी पार्टी कहां खड़ी है।“ उन्होंने आगे कहा, “यदि विपक्षी पार्टियां टीआरएस सरकार पर निराधार आरोप लगाना नहीं छोड़ती हैं तो हमें अपने मजबूत पक्ष को साबित करने के लिए जल्द ही चुनाव करवाने के लिए मजबूर होना होगा जिससे ये साबित हो जायेगा कि कौनसी पार्टी आगे है और कौनसी पीछे है और वो दिन बहुत दूर नहीं है।”

तेलंगाना में जल्दी चुनाव करवाने के फैसले के पीछे मुख्य वजहों में से एक है टीआरएस शासित राज्य में कांग्रेस का मुख्य विपक्षी पार्टी होना। मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मिजोरम के साथ इस राज्य में भी चुनाव करवाए जा सकते हैं ऐसे में कांग्रेस पर्याप्त मात्रा में पैसे और ताकत तेलंगाना में लगा पाने में सक्षम नहीं हो पायेगी क्योंकि उनका प्राथमिक उद्देश्य बीजेपी शासित राज्य में बीजेपी को हराना है। ऐसे में ये संभव है कि केसीआर को इससे लाभ मिले। ये फैसला पीएम मोदी के एक देश एक चुनाव या देश में एकसाथ चुनाव की प्रतिबद्धता की दिशा में एक सफल कदम है। स्पष्ट रूप से केसीआर ने पीएम मोदी के चुनावी सुधार के प्रयासों का समर्थन किया है और इसके संकेत उन्होंने पहले ही दे दिए थे। पीएम मोदी के एक देश एक चुनाव की दिशा में ये एक बड़ा कदम है जिसका समर्थन एक गैर-बीजेपी नेता कर रहे हैं और ऐसे में बीजेपी को केसीआर के इस कदम से कोई समस्या नहीं है। बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने कहा था, “केसीआर को जब भी वो चाहें विधानसभा को भंग करने का अधिकार है, तो ये उनका विशेषाधिकार है। हम क्या कर सकते है?”

सिर्फ केसीआर ही नहीं बल्कि बीजू जनता अध्यक्ष और ओडिशा के सीएम नवीन पटनायक एक देश एक चुनाव के फैसले का समर्थन कर चुके है। उन्होंने इस मामले में चुनाव आयोग से लोकसभा और ओडिशा विधानसभा के साथ-साथ चुनाव कराने का आग्रह किया था। पहले भी वो कई बार देश में एकसाथ चुनाव करने के पीएम मोदी के विचार का समर्थन कर चुके हैं। यदि केसीआर की तरह ही नवीन पटनायक ने कोई राजनीतिक स्टंट किया तो देश में एक ही समय में छह राज्यों में चुनाव होंगे। इस तथ्य को जानते हुए कि जम्मू कश्मीर राज्यपाल का शासन है ऐसे में अन्य राज्यों के साथ इस राज्य में भी चुनाव होने की संभावना को भी अनदेखा नहीं किया जा सकता है और यदि ऐसा होता है देश में एक ही समय में सात राज्यों में चुनाव होंगे। इससे पहले उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ ने भी पीएम मोदी के इस विचार का समर्थन किया। हालांकि, उत्तर प्रदेश में अगले विधानसभा चुनाव 2022 में होने हैं लेकिन सूत्रों के मुताबिक योगी भी इस वर्ष 2019 में होने वाले आम चुनाव के साथ प्रदेश में भी चुनाव कराने के लिए तैयार हो सकते हैं। मध्यप्रदेश सरकार के साथ सीएम योगी ने भी राज्य और देश में एकसाथ चुनाव करने के प्रति अपनी रूचि दिखाई है यहां तक कि उन्होंने इस मामले के लिए एक कमेटी का भी गठन किया है।

समिति की रिपोर्ट का विवरण यहां विस्तार से पढ़ें: UP Chief Minister Yogi Adityanath backs PM Modi’s one nation one election idea

यदि उत्तर प्रदेश में भी समय से पहले चुनाव होते हैं तो कुल मिलाकर देश में एकसाथ चुनाव होने वाले राज्य आठ हो जायेंगे। इस तथ्य को जानते हुए भी कि उत्तर प्रदेश चुनावी दृश्य से सबसे महत्वपूर्ण राज्यों में से एक है और मौजूदा सरकार ने अभी तक अपने कार्यकाल का तीन वर्ष भी पूरा नहीं किया है। ऐसे में एकसाथ चुनाव का समर्थन करते हुए राज्य विधानसभा को भंग करने का निर्णय अन्य राज्यों को भी इस दिशा में बढ़ने के लिए प्रेरित करेगा। शिरोमणि अकाली दल, अखिल भारतीय अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कझागम और समाजवादी पार्टी जैसे कई अन्य दलों ने भी एक देश एक चुनाव के विचार का समर्थन किया है। बिहार के मुख्यमंत्री और बीजेपी सहयोगी नितीश कुमार ने भी इस विचार का समर्थन किया है।

एकसाथ चुनाव कराने का मतलब है लोकसभा और राज्यों के विधानसभा चुनाव एक साथ कराए जायें। हर साल देश में चुनाव होते हैं कभी विधानसभा तो कभी लोकसभा चुनाव। लगातार चुनावों के चलते सरकारी योजनाएं बीच में ही लटक जाती हैं और इससे आम जनता भी प्रभावित होती है। सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज की एक रिपोर्ट के मुताबिक, “2014 के लोकसभा चुनावों में अघोषित तौर पर 30,000 करोड़ रुपये खर्च हुए थे। सभी राज्यों के विधानसभा चुनावों पर करीब 4,500 करोड़ रुपये खर्च हुए थे।“ ये आंकड़े स्पष्ट करते हैं कि लगातार चुनावों से न सिर्फ जरूरी सेवाओं पर असर पड़ता है बल्कि बार बार चुनाव होने से खर्च और समय दोनों बर्बाद होता है। इसके साथ ही विकास कार्यों पर नेता ज्यादा ध्यान नहीं दे पाते हैं क्योंकि उनका ध्यान चुनाव प्रचार पर केन्द्रित होता है। भारत में इस चुनावी चक्र को खत्म कर एकसाथ चुनाव कराने से न सिर्फ विकास के कार्यों में सत्तारूढ़ राजनीतिक पार्टियां ध्यान दे पाएंगी बल्कि चुनावी खर्च पर भी इसका प्रभाव पड़ेगा। पिछले साल पीएम नरेंद्र मोदी ने भारतीय जनता पार्टी और अपने सहयोगियों से इस बात पर विमर्श करने के लिए कहा था कि देश में एक साथ चुनाव कराए जाने चाहिए। अप्रैल में बीजेपी ने ‘एक देश एक चुनाव’ के विचार पर अध्ययन किया और अपनी रिपोर्ट पीएम मोदी को सौंपी थी। इस रिपोर्ट में मध्यावधि और उपचुनाव की प्रक्रिया के लिए भी सुझाव दिया गया था। नीति आयोग ने हर साल होने वाले चुनावों की वजह से आम जीवन पर पड़ने वाले असर की कड़े शब्दों में आलोचना की थी।

एकसाथ चुनावों का विचार कोई नया नहीं है। य नेहरू के समय में भी था. हालांकि बाद में ये प्रक्रिया बदल गयी. इसके बाद चुनाव आयोग ने 1983 में जब एकसाथ चुनाव कराने का सुझाव दिया था जस्टिस बीपी जीवन रेड्डी की अध्यक्षता वाले लॉ कमीशन ने 1999 में लोकसभा और सभी विधानसभा चुनावों को एक साथ कराने की बात कही थी। इस विचार पर अमल पीएम मोदी के सत्ता में आने के बाद ही शुरू किया गया और अब बीजेपी इस विचार को जमीनी स्तर पर लाने के लिए भरपूर प्रयास कर रही है। एक देश एक चुनाव के विचार को मिल रहे बड़े पैमाने पर समर्थन से हो सकता है कि बीजेपी भी अपने कार्यकाल के पांच साल पूरे होने से पहले ही लोकसभा भंग करने का फैसला ले और समय से पूर्व चुनाव का रास्ता साफ कर दे।

इस विचार का कई पार्टियां खुलकर समर्थन कर रही हैं लेकिन इसके बावजूद कांग्रेस इसका विरोध कर रही है शायद कांग्रेस को डर है कि समय से पूर्व चुनाव होने पर उसे हार का मुंह देखना पड़ेगा। या हो सकता है कि वो सोच रही हो कि पार्टी का प्रदर्शन राज्य स्तर पर बहुत बुरा रहा है ऐसे में एकसाथ चुनाव होने से एक बार फिर से जनादेश पीएम मोदी के समर्थन में होगा और पार्टी की स्थिति और बिगड़ जाएगी। यहां तक कि तेलंगाना कांग्रेस ने भी केसीआर के इस कदम की आलोचना की। हिंदुस्तान टाइम्स की खबर के मुताबिक, “तेलंगाना कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एम शशिधर रेड्डी ने कहा, “हम चुनाव आयोग से अनुरोध करेंगे कि दिसंबर में चार राज्यों के साथ होने वाले चुनावों के साथ तेलंगाना के चुनाव न कराए जाएं। ताकि हमें तैयारियों के लिए थोड़ा समय मिल सके।” इससे पहले अगस्त में वरिष्ठ कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने भी इस विचार का विरोध किया था और कहा था कि, “एक देश एक चुनाव’ जैसी बातों में कोई दम नहीं है। ये प्रस्ताव लोकतंत्र की बुनियाद पर कुठाराघात हैं और जनता की इच्छा के विरुद्ध भी है। ये सत्तावाद और तानाशाही का एक और उदाहरण है।” ऐसा लगता है मनु जी को इतिहास का कम ज्ञान है। भारत के इतिहास में पहले कुछ चुनाव एक साथ हुए थे। क्या अब कांग्रेस ये कहने की कोशिश कर रही है कि नेहरू का कथित ‘स्वर्ण युग’ संघवाद की मूल संरचना संविधान के खिलाफ है, और लोकतंत्र का विरोध करता है और ये एक तानाशाही है? कांग्रेस पार्टी को इस सवाल का जवाब देना चाहिए। वास्तव में देश के हित से जुड़े निर्णयों, योजनायों और नीतियों का विरोध करना कांग्रेस की आदत है। पहले राफेल डील, नोटबंदी का विरोध किया और अब एक देश एक चुनाव का विरोध कर रही है।

हालांकि, जिस तरह का परिदृश्य नजर आ रहा है वो एक देश एक चुनाव के पक्ष में नजर आ रहा है। राजनीतिक पार्टियों को भी राजनीति को परे रख देश के हित के लिए एक साथ आने की जरूरत है इससे आने वाले समय में देश को लाभ होगा।

Tags: कांग्रेसकेसीआरचुनावतेलंगानापीएम मोदी
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