पीएम मोदी बेशक दुनिया के सबसे करिश्माई नेताओं में से एक हैं। अपने शानदार भाषणों के माध्यम से वे सुनने वालों में गजब ऊर्जा भर देते हैं। पीएम मोदी अपने से कोसों दूर बैठे दर्शकों से भी बेहतर संवाद स्थापित कर पाते हैं जिसके कारण उनका नाम देश के सबसे उत्तम वक्ताओं में भी शुमार होता है। अपने इस संवाद को बेहतर बनाने के लिए उनके द्वारा कई कदम उठाए गए, जैसे रेडियो पर ‘मन की बात’ कार्यक्रम को शुरू करना और लगातार लोगों के बीच जाकर रैलियाँ और रोडशो का आयोजन करना! इसके अलावा वे समय-समय पर अलग-अलग मीडिया समूहों को भी अपना इंटरव्यू देते रहे हैं। हालांकि, पिछले 5 सालों से पीएम मोदी एक मीडिया संगठन से लगातार दूरी बनाए हुए हैं, और वो है एनडीटीवी! वहीं एनडीटीवी जो बेहद पक्षपात रिपोर्टिंग के लिए पूरे देश में बदनाम है।
और यही कारण है कि कांग्रेस और अन्य विरोधी दल पीएम मोदी पर मीडिया से डरने का आरोप लगाते रहते हैं। उनका अक्सर यही आरोप रहता है कि पीएम मोदी कभी मीडिया से संवाद नहीं करते। हालांकि, सच्चाई यह है कि पीएम मोदी पिछले पाँच सालों में द ट्रिब्यून, पीटीआई, नेटवर्क 18, इंडियन एक्सप्रेस, न्यूज़ नेशन, इंडिया टूड़े, ज़ी न्यूज़, टाइम्स नाऊ, सीएनएन, इंडिया टीवी, राजस्थान पत्रिका, हिंदुस्तान टाइम्स, दैनिक जागरण, नई दुनिया, हिंदुस्तान समाचार, नवभारत टाइम्स, टाइम्स ऑफ इंडिया, अमर उजाला, द न्यू इंडियन एक्सप्रेस, डीडी न्यूज़, यूएनआई, एएनआई, एबीपी, रिपब्लिक, योर स्टोरी, टाइम्स मैगजीन जैसे मीडिया संगठनों को इंटरव्यू दे चुके हैं। इसके अलावा उन्होंने कुछ दिनों पहले बॉलीवुड सुपर स्टार अक्षय कुमार को भी एक गैर-राजनीतिक इंटरव्यू दिया था, जिसमें उन्होंने देश के नागरिकों को अपने निजी जीवन के बारे में बताया था।
लेकिन सिर्फ एनडीटीवी को इंटरव्यू ना देने की वजह से कांग्रेस द्वारा उनपर मीडिया से दूर भागने का आरोप लगाना पूरी तरह आधारहीन है। अन्य मीडिया समूहों को दिये गए इंटरव्यू में वे लगभग हर सवाल का सामना कर चुके हैं, जिसमें बेशक कई सवाल तो उनको परेशान करने वाले भी थे। लेकिन कुछ अच्छे कारणों की वजह से एनडीटीवी का तो उन्होंने बहिष्कार ही किया है। वो इसलिए क्योंकि एनडीटीवी सिर्फ अपना एजेंडा आगे बढ़ाने में विश्वास रखता है। उदाहरण के तौर पर, वर्ष 2002 में गुजरात दंगों की कवरेज को लेकर एनडीटीवी को लोगों के गुस्से का सामना करना पड़ा था। एनडीटीवी की पत्रकार बरखा दत्त ने तो पत्रकारिता के सारे सिद्धांतों की धज्जियां उड़ाकर अपनी गैर-जिम्मेदाराना रिपोर्टिंग से दंगो को और ज़्यादा बढ़काने की पूरी कोशिश की थी। एक तरफ जहां उन्होंने दंगों में एक हनुमान मंदिर के तोड़े जाने की झूठी खबर फैलाई थी, तो वहीं अपनी रिपोर्ट्स के माध्यम से उन्होंने पुलिस-रहित इलाकों का भी जमकर प्रचार किया था ताकि दंगाइयों को वहां पहुंचने में सहूलियत हो सके। बाद में गुजरात सरकार को एनडीटीवी का ब्रॉडकास्ट अस्थायी तौर पर बंद करना पड़ा था।
हालांकि एनडीटीवी ने अपने इतिहास से कोई सबक नहीं लिया और वर्ष 2016 में फिर उसने अपनी घटिया मानसिकता का उदाहरण पेश किया। साल 2016 में पठानकोट एयरबेस हमले की कवरेज के दौरान एनडीटीवी ने हमला करने वाले आतंकियों की सटीक लोकेशन को लाइव ब्रोडकास्ट किया था। इस कवरेज को दौरान एनडीटीवी ने सेना की सुरक्षा को ताक पर रखा जिसके बाद भारत सरकार ने इस चैनल पर 1 दिन का प्रतिबंध भी लगाया था, हालांकि बाद में इस बैन के आदेश को वापस ले लिया गया था।
देश की सुरक्षा से खिलवाड़ करने के साथ-साथ यह चैनल पीएम मोदी और भाजपा के खिलाफ बेहद पक्षपातपूर्ण रिपोर्टिंग करता आया है। यही कारण है कि पीएम मोदी इस एजेंडावादी चैनल का बहिष्कार करते आए हैं। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनावों के लिए जब पीएम मोदी को नामांकित किया गया था, तब भी भाजपा के विकासवादी मॉडल से ज़्यादा इस चैनल का ध्यान वर्ष 2002 के दंगो में पीएम मोदी की कथित भूमिका को साबित करने पर था। हद तो तब हो गयी जब इस चैनल ने अपने आधिकारिक ट्विटर अकाउंट से सुषमा स्वराज का हवाला देते हुए यह झूठा दावा कर डाला कि उन्हें पीएम मोदी के वाराणसी सीट से चुनाव लड़ने पर सख्त आपत्ति है। इसके बाद चैनल के साथ-साथ पत्रकार बरखा दत्त को भी इसके लिए माफी मांगनी पड़ी थी। लेकिन भाजपा ने इसके बाद एनडीटीवी का बहिष्कार करने का ही फैसला लिया था।
एनडीटीवी की फाउंडर राधिका रॉय और उनके पति के पास चैनल के 29.18% शेयर्स हैं। वे सीपीआई नेता वृन्दा करात की बहन है। इसके अलावा चैनल के 14% शेयर अभय ओसवाल के पास हैं जो कि कांग्रेस सांसद नवीन जिंदल के ससुर हैं। भाजपा विरोधियों के साथ इतने करीबी संबंध होने के बाद उनसे कोई निष्पक्ष रिपोर्टिंग की आशा भी कैसे रख सकता है। भाजपा ऐसे पक्षपातपूर्ण चैनल को इंटरव्यू देकर अपना समय बर्बाद नहीं करना चाहती। निष्पक्ष चैनल को इंटरव्यू देकर भाजपा सरकार पहले ही अपनी पारदर्शिता साबित कर चुकी है।