कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी अपनी न्याय योजना की घोषणा कर पहले ही वाहावाही बटोरने की कोशिश कर चुके हैं, हालांकि कांग्रेस की इस घोषणा के बाद यह तो साफ हो चुका है कि कांग्रेस देश की अर्थव्यवस्था को एक पूंजीवादी अर्थव्यवस्था से समाजवादी अर्थव्यवस्था की ओर ले जाना चाहती है। आज हमें इतिहास पर नज़र डालकर इस बात पर गौर करने की जरूरत है कि ऐसी समाजवादी नीति अपनाने वाले देशों की अर्थव्यवस्था पर इसका क्या असर पड़ा? और अगर भारत में आज न्याय जैसी योजना को लागू कर भी दिया जाए, तो इसका भविष्य में भारत के आर्थिक ढांचे पर क्या असर पड़ सकता है? इस संबंध में हम वेनेजुएला की आर्थिक नीतियों की कांग्रेस की संभावित ‘न्याय’ नीति से तुलना कर सकते हैं, क्योंकि ऐसी ही नीति अपनाकर कभी सम्पन्न रह चुके वेनेजुएला में लोग आज दो वक्त की रोटी को तरस रहे हैं।
वर्ष 1999 में वेनेजुएला के राष्ट्रपति बने ह्यूगो चावेज़ भी कांग्रेस की ‘न्याय’ योजना की तरह ही देश में समाजवादी नीतियां लेकर सत्ता में आए थे। उनका सपना था कि वे देश से गरीबी दूर करें और सबको सस्ते दरों पर भोजन उपलब्ध हो सके। इसके लिए उन्होंने बड़ी मात्रा में खाने-पीने की चीज़ों को बाज़ार में बेहद कम दामों पर उपलब्ध कराया। हालांकि यह सुनने में जितना अच्छा लगता है, उतना वाकई में था नहीं। दरअसल, जब सभी खाने-पीने की चीज़ें और कृषि उत्पाद बेहद कम दामों पर मिलने शुरू हुए तो वेनेजुएला के किसानों को इसकी कड़ी मार झेलनी पड़ी। उनको उनके कृषि उत्पादों के लिए बाज़ार में लागत मूल्य से बेहद कम दाम मिलने लगा जिसके कारण किसानों को भारी घाटा होने लगा और उन्होंने उन फसलों को उगाना धीरे धीरे बंद कर दिया, जिससे वेनेजुएला के लिए एक नयी मुसीबत खड़ी हो गई।
दरअसल, किसानों द्वारा दिनचर्या की खाने-पीने की चीज़ें और फसलों को ना उगाये जाने की वजह से बाज़ार में इनकी भारी कमी होना शुरू हो गया और वेनेजुएला को इन वस्तुओं को आयात करना पड़ा। देश में कृषि क्षेत्र के बर्बाद होने से वेनेजुएला की अर्थव्यवस्था शत प्रतिशत तेल पर निर्भर हो गई। आपको बता दें कि किसी एक क्षेत्र पर जरूरत से ज़्यादा निर्भरता किसी भी अर्थव्यवस्था के लिए घातक होती है। ऐसा ही वेनेजुएला की अर्थव्यवस्था के साथ तब हुआ जब वर्ष 2014 के बाद से अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल की कीमतों में तीव्र गिरावट देखने को मिली। तेल निर्यात पर आश्रित रहने वाले वेनेजुएला के लिए ये किसी बुरे सपने से कम नहीं था। तेल कीमतों में गिरावट आने से वेनेजुएला की अर्थव्यवस्था बुरी तरह लड़खड़ा गई जिसके कारण देश में आयात की जाने वाली वस्तुओं के दाम सांतवे आसमान पर पहुंच गए, और आज आलम ये है कि वहां लोग अपना पेट भरने के लिए सड़ा मांस तक खाने को मजबूर हैं।
अब अगर कांग्रेस की समाजवादी नीति की तुलना वेनेजुएला की तबाह हुई अर्थव्यवस्था के साथ करें, तो इस मामले की गंभीरता समझ में आती है। तमाम आर्थिक बाधाओं के बावजूद अगर देश में न्याय स्कीम को लागू कर दिया जाए तो इसका देश के आर्थिक ढांचे पर बुरा असर पड़ना तय है। अगर न्याय जैसी योजना भारत में लागू हो जाती है और लोगों को 72 हज़ार रुपये मिलने शुरू हो जायें तो जाहिर है कि कोई 10-15 हजार या 30-40 हज़ार कमाने वाला व्यक्ति काम करना ही नहीं चाहेगा। यहां तक कि गरीब किसान भी खेती करने से थोड़ा मुकरने लगेंगे। ऐसे में अगर यूबीआई योजना के झांसे में आकर देश के किसान कृषि उत्पादन कम कर देंगे, तो देश के कृषि क्षेत्र को नुकसान पहुंचना जाहिर है। आपको बता दें कि भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि का एक अहम योगदान है। कृषि क्षेत्र में जहां भारत की लगभग 50 फीसदी वर्क फोर्स काम करती है, तो वहीं देश की जीडीपी में इसका 17-18 फीसदी योगदान रहता है। ऐसे में भारत जैसी उभरती अर्थव्यवस्था किसी भी सूरत में कृषि जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्र का बर्बाद होने का बोझ नहीं झेल सकती।
वहीं, कांग्रेस और बुद्धिजीवी गैंग न्याय स्कीम की तारीफ करने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे। कांग्रेस की समाजवादी नीतियों को वामपंथी गैंग का पूरा समर्थन हासिल है। वर्ष 2013 में ‘द हिन्दू’ के एडिटर रह चुके सिद्धार्थ वर्दराजन ने भारत सरकार को वेनेजुएला के नक्शेकदम पर चलने की बात कही थी। हालांकि आज वेनेजुएला की बदहाल आर्थिक हालत देखकर उनके मुंह से कोई शब्द देखने को नहीं मिलता। कांग्रेस की न्याय स्कीम से देश में महंगाई के साथ साथ बेरोजगारी बढ़ने के भी पूरे आसार हैं। ऐसे में देश की सबसे पुरानी पार्टी को अपने ज्ञान का परिचय देते हुए लोकलुभावन वादे करने से बचकर कांग्रेस को जमीन से जुड़े मुद्दे को तवज्जो देनी चाहिए।