देश की फेक न्यूज़ ब्रिगेड भाजपा और आरएसएस के खिलाफ शुरू से ही अपना एजेंडा चलाती आई है। हैरानी की बात तो यह है कि इस फेक न्यूज़ ब्रिगेड की पहुंच सिर्फ सोशल मीडिया तक ही सीमित नहीं रह गई है, बल्कि इस ब्रिगेड के सदस्य बड़े-बड़े अखबारों में लोगों को भ्रमित करने वाले लेख लिख रहे हैं। वर्ष 2018 में ‘वरिष्ठ पत्रकार’ करण थापर ने इंडियन एक्सप्रेस में ऐसा ही एक लिखा जिसमें उन्होंने सरसंघचालक मोहन भागवत के एक ऐसे आपात्तिजनक बयान का हवाला दिया, जो उन्होंने कभी दिया ही नहीं। करण थापर की इस फेक न्यूज़ के कारण देश में सांप्रदायिक तनाव बढ़ सकता था, लेकिन ऐसे संवेदनशील मुद्दे पर भी उन्होंने अपनी एजेंडावादी पत्रकारिता को आगे बढ़ाना उचित समझा। अब प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया ने करण थापर की इस फेक न्यूज़ को लेकर इंडियन एक्सप्रेस और इंडियन एक्सप्रेस के मराठी अखबार ‘लोकसत्ता’ पर कार्रवाई करते हुए इन्हें सेंसर कर दिया है।
दरअसल, वर्ष 2018 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने दिल्ली में ‘भविष्य का भारत’ नाम से तीन-दिवसीय लेक्चर सिरीज़ का आयोजन किया था। इस कार्यक्रम में सरसंघचालक मोहन भागवत ने भी अपने विचार प्रकट किए गए। हालांकि, इस कार्यक्रम में दिये गए उनके बयानों को करण थापर ने पूरी तरह तोड़ मरोड़ कर पेश किया। करण थापर ने 21 सितंबर 2018 को इंडियन एक्सप्रेस के लिए एक लेख लिखा जिसमें उन्होंने लिखा ‘‘भागवत खुद भी भड़काऊ भाषण देने से परहेज नहीं करते हैं। वर्ष 2015 में बीफ़ रखने के संदेह पर जब मोहम्मद अखलाक को कुछ लोगों की भीड़ ने मार डाला था, तो भागवत ने इसपर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा था ‘वेदों के अनुसार गाय को मारने वाले पापियों को मार देना चाहिए’’। इंडियन एक्सप्रेस के मराठी अखबार ‘लोकसत्ता’ में भी उसी दिन एक खबर छपी जिसमें मोहन भागवत के इस कथित बयान को प्रकाशित किया गया।
(करण थापर के लेख का अंश)
इंडियन एक्सप्रेस समूह की इस झूठी खबर के खिलाफ डोंबिवली के रहने वाले अक्षय पाठक ने प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया को एक शिकायत दर्ज़ कराई थी, जिसको लेकर इस साल 29 मार्च को सुनवाई हुई। सुनवाई के दौरान अखबार ने यह दलील दी, कि उन्होंने मोहन भागवत के इस कथित बयान को सच माना और उनसे यह गलती अनजाने में हुई। अखबार की इस दलील पर प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया ने कहा कि अखबार की यह दलील इसलिए तर्कसंगत नहीं है क्योंकि यह बड़ी गलती किसी जूनियर पत्रकार ने नहीं, बल्कि करण थापर जैसे वरिष्ठ पत्रकार ने की है जिनके पास कई सालों की पत्रकारिता का अनुभव है। प्रेस काउंसिल की इन्क्वायरी कमेटी ने कहा ‘लेखक को अपने विचार प्रकट करते वक्त ज्यादा सावधानी बरतनी चाहिए थी, और वो ऐसा करने में असफल साबित हुए’।
साफ है कि यहां करण थापर ने अपने पत्रकारिता के मूल्यों को परे रख अपनी भाजपा-आरएसएस विरोधी मानसिकता का परिचय दिया। करण थापर के इस लेख से देश में सांप्रदायिक तनाव बढ़ सकता था क्योंकि अखलाक की हत्या का मुद्दा बड़ा संवेदनशील था। प्रेस काउंसिल ने इन दो अखबारों को सेंसर कर ऐसे एजेंडावादी अखबारों और लेखकों को कड़ा संदेश दिया है। देश में पत्रकारिता के स्तर में लगातार आ रही गिरावट में ऐसे ही अखबारों और पत्रकारों का सबसे बड़ा योगदान है।