सोमवार को भारत के इतिहास में एक नया अध्याय लिखा गया। वर्तमान गृह मंत्री अमित शाह ने राज्य सभा में घोषणा करते हुए कहा कि राष्ट्रपति की सहमति से अनुच्छेद 370 के अंतर्गत आने वाले खंड 1 को छोड़ कर सभी प्रावधान अब पूरी तरह निष्क्रिय हो जाएंगे। इसका अर्थ साफ है – वर्षों तक जम्मू-कश्मीर को विशेषाधिकार देने वाला अनुच्छेद 370, जिसके कारण देश की राजनीतिक स्थिति में काफी उठापटक होती थी, अब निष्क्रिय हो गया है।
इस निर्णय के साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार ने उन सभी गलतियों में सुधार किया है, जो जवाहर लाल नेहरू द्वारा ज़बरदस्ती भारत पर थोपी गयी थीं। जिन गलतियों के कारण भारत को वर्षों तक विश्व मंच पर लज्जित होना पड़ा था, उन सभी गलतियों को सुधारने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आगे बढ़कर निर्णय लिए हैं।
परंतु यह अनुच्छेद 370 है क्या, और इसके क्रियान्वयन के लिए प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू वर्षों तक आलोचना के शिकार क्यों बने? इसके लिए हमें जाना होगा वर्ष 1947 में, जब पाक सेना, कबीलों और अफरीदी पठानों ने कश्मीर पर धावा बोला था। ऐसे में जब महाराजा हरी सिंह ने भारत के साथ विलय के लिए दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर किये थे तब उनसे शेख अब्दुल्ला और जवाहरलाल नेहरू ने कश्मीर को भारत से विशेष दर्जे के लिए भी लिए बाध्य किया था, और यही आगे चलकर अनुच्छेद 370 का आधार बना।
यूं तो वो लॉर्ड माउंटबेटन थे जिन्होंने नेहरू को कश्मीर का मामला यूएन ले जाने के लिए बाध्य किया, पर शेख अब्दुल्ला के कारण अनुच्छेद 370 के अंतर्गत जम्मू-कश्मीर को विशेषाधिकार दिये गए। इस अनुच्छेद के जरिये महाराजा हरी सिंह के प्रभाव को कम किया गया, क्योंकि वे शेख अब्दुल्ला की कट्टरपंथी सोच एवं पक्षपाती नीतियों के धुर विरोधी थे।
जवाहर लाल नेहरू भले ही भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में एक अहम कड़ी के तौर पर उभर कर सामने आए थे, परंतु सामरिक नीतियों के मामले में उनकी सोच बेहद अपरिपक्व थी। भारत की दो प्रमुख नीतियां पहली कश्मीर नीति और दूसरी चीन की नीति को जवाहरलाल नेहरू ने अपने हाथो में लिया था और इन दोनों ही मामलों में उनकी अपरिपक्व मानसिकता के कारण भारत को काफी समस्याओं का सामना करना पड़ा।
कश्मीर के संबंध में जवाहर लाल नेहरू की पहली गलती थी वर्ष 1947 में अगस्त-दिसंबर के बीच भारतीय सेना को उचित संख्या में कश्मीर घाटी न भेजना। नेहरू सरदार पटेल की तरह दूरदर्शी एवं व्यावहारिक नहीं थे, तथा वे सदैव आदर्शवाद व्यावहारिकता को प्राथमिकता देते थे। यही कारण था कि सरदार पटेल की तुलना में नेहरू ने कश्मीर की समस्या का समाधान निकालने की बजाए उसे और उलझा दिया। जब जवाहर लाल नेहरू ने यह मामला यूएन में रखा, तो यूएन ने निर्देश दिया कि राज्य में लोकतान्त्रिक तरह से जनमत संग्रह कराया जाये। पर इसके लिए जो यूएन ने शर्तें रखी, उसे जवाहर लाल नेहरू ने कभी लागू ही होने नहीं दिया। इन्हीं में से एक शर्त थी पाकिस्तान की सेनाओं के हटाये जाने की स्थिति में ही जम्मू-कश्मीर में जनमत संग्रह कराया जाए, परंतु जवाहर लाल नेहरू ने इस दिशा में कोई कदम ही नहीं उठाया।
कई लोगों का मानना है कि जवाहर लाल नेहरू यह भली भांति जानते थे कि यदि कश्मीर का मुद्दा सरदार पटेल के जिम्मे सौंपा जाता, तो वे किसी भी स्थिति में हैदराबाद की भांति कश्मीर राज्य का भारत में विलय करवाने में सफल हो जाते। ऐसी स्थिति में सरदार पटेल का महिमामंडन तय था, जो जवाहर लाल नेहरू बिलकुल नहीं चाहते थे। शायद यही कारण था कि नेहरू ने जानबूझकर कश्मीर मंत्रालय अपने पास रखा।
इसके अलावा नेहरू की गलतियों में भारतीय सेना को मुजफ्फराबाद में प्रवेश कर पाकिस्तान पर त्वरित कार्रवाई करने से रोकना भी शामिल है। भारतीय सेना उस समय पाकिस्तान पर भारी पड़ती दिखाई दे रही थी और यही कारण था कि यदि भारतीय सेना को खुली छूट दी गयी होती, तो न केवल पाक अधिकृत कश्मीर हमारे देश का हिस्सा होता, अपितु अप्रत्यक्ष रूप से राज्य में शेख अब्दुल्ला का वर्चस्व भी खत्म हो जाता। परंतु भारत के सैन्य अध्यक्षों की जवाहरलाल नेहरू ने एक न सुनी, और इसी कारण कई वर्षों तक भारत को कश्मीर समस्या से जूझना पड़ा है।
रोचक बात तो यह है कि अनुच्छेद 370 अस्थायी प्रावधान था। इसके बावजूद समूचे देश और को अंधेरे में रखते हुए जवाहरलाल नेहरू ने अनुच्छेद 370 और 35 ए को मनमाने ढंग से लागू कराया। इसी परिपाटी पर चलते हुए जवाहरलाल नेहरू के बाद आई अधिकतर सरकारों ने अनुच्छेद 370 को खत्म करने की दिशा में कोई सार्थक कदम नहीं उठाया। परंतु प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछली सरकारों के विपरीत इस मुद्दे को सुलझाने पर जोर दिया।
जब राज्य में उग्रवाद चरम पर था, तब 1992 में भाजपा कार्यकर्ता के तौर पर नरेंद्र मोदी ने वरिष्ठ नेता मुरली मनोहर जोशी के साथ मिलकर न केवल श्रीनगर के लाल चौक पर 26 जनवरी को तिरंगा फहराया, अपितु राष्ट्रगान भी गाया। इसी निडरता के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने पहले कार्यकाल में कश्मीर के पुनरुत्थान के लिए देश की व्यवस्था में कई अहम बदलाव किए। ऐसा करके जवाहरलाल नेहरू द्वारा की गयी गलतियों में सुधार करने का कम शरू किया।
इसके बाद जब वो देश के प्रधानमंत्री बने तब सर्वप्रथम उन्होंने राज्य में वर्ष 2016 से भारतीय सेना को आतंकियों से निपटने की खुली छूट दी। ये पीएम नरेंद्र मोदी द्वारा देश की सुरक्षा के मामले में दी गयी खुली छूट का ही परिणाम था कि भारतीय सेना ने 2016 में सर्जिकल स्ट्राइक की थी। इस स्ट्राइक के जरिये भारत ने पाक को कड़े शब्दों में बता दिया था कि अब भारत बचाव नीति के साथ-साथ जवाबी कार्रवाई करने में भी पीछे नहीं रहेगा। इसके बाद भारतीय वायुसेना ने पुलवामा हमले के खिलाफ इसी वर्ष फरवरी महीने में एयर स्ट्राइक कर सीमापार से आतंकवादी भेजने वाले पाक को फिर से उसी की भाषा में जवाब दिया था।
अब धारा 370 के हटाये जाने के प्रस्ताव से प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने देश की अखंडता को बनाए रखने की दिशा में एक सार्थक प्रयास किया है। जवाहर लाल नेहरू की जिन लचर नीतियों के कारण भारत को आये दिन वैश्विक मंच पर शर्मनाक स्थिति का सामना करना पड़ता था, उन नीतियों को सुधार कर पीएम मोदी ने भारत को एक नई दिशा दी है, और इसके लिए उनकी जितनी प्रशंसा की जाये, कम है।