वीर दामोदर सावरकर! एक ऐसा नाम, जिससे विरोधियों में एक अजीब सी खलबली मच जाती है खासकर कांग्रेस में। कांग्रेस को शुरू से ही सावरकर से एक अलग प्रकार की चिड़ रहती है। जब तक कांग्रेस सत्ता में थी, सावरकर का नाम सिर्फ भाजपा और कुछ ऑर्गेनाइजेशन के द्वारा ही लिया जाता था। कांग्रेस ने भरपूर कोशिश की कि सावरकर का नाम इतिहास से मिटा दिया जाए ताकि आम जनता को उनसे दूर रखा जाये, और अगर वह लोगों के बीच जाए भी तो लोग उनसे घृणा करे। वीर सावरकर के बारे में झूठे प्रोपोगेंडा फैलाकर लोगों को कांग्रेस शुरू से ही गुमराह करती आई है। पर ऐसा लगता है कि जब से केंद्र में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार बनी है तब से कांग्रेस के इस झूठे प्रोपोगेंडा से पर्दा उठता जा रहा है। सावरकर को न सिर्फ इतिहास में जगह और सम्मान मिल रहा है, बल्कि उनकी खोई हुई विरासत को भी एक बौद्धिक आधार मिल रहा है।
कांग्रेस पार्टी को यह पसंद ही नहीं आ रहा है कि देश का बौद्धिक वर्ग- मीडियाकर्मी, लेखक, शिक्षक, प्रोफेसर सभी अब सावरकर जैसे हिंदुत्व आइकन का समर्थन कर रहे हैं। इसलिए, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में कांग्रेस की सरकारें सावरकर को मानने वालों को सजा देने में कोई कसर नहीं छोड़ रही हैं।
सावरकर को लेकर भारत में दो तरह के मत हैं। एक मत के मुताबिक सावरकर देश के महान क्रांतिकारी और स्वतंत्रता सेनानी हैं। बुनियादी अंतर के बवाजूद उनके समर्थक उन्हें महात्मा गांधी के समानांतर का स्वतंत्रता सेनानी मानते हैं। और कांग्रेस यही नहीं चाहती है। इसी वजह से उन्हें भारत के इतिहास से मिटाने की भरपूर कोशिश की गयी। कांग्रेस ने हमेशा से ही सावरकर को एक विलन के रूप में पेश करती रही है।
वीर सावरकर ने भारत की आजादी के लिए आपार कुर्बानियों दी। लेकिन इसके बावजूद उन्हें आजाद भारत में वो स्वीकार्यता नहीं मिल पाई जिसके वो हकदार थे। उनकी तमाम कुर्बानियां कथित विचारधाराओं की भेंट चढ़ गईं।
स्वतन्त्रता के बाद से ही सावरकर पर कई आरोप लगा कर कांग्रेस उन्हें जनता के बीच विलेन साबित करना चाहती थी। पहले तो उन्हें महात्मा गांधी की हत्या की साजिश में फंसाने की कोशिश की गयी, उसके बाद उनकी मृत्यु के बाद उन्हें इतिहास से ही मिटा देने की कोशिश की गयी। कांग्रेस से जब यह संभव नहीं हुआ तो उन्हें और उनकी हिन्दुत्व की विचारधारा को नीचा दिखाने के लिए नए-नए प्रपंच गढ़ती आई है और आज भी वही कर रही है। परंतु सत्य तो सत्य रहता है और वह तमाम परेशानियों के बावजूद ऊपर आता है।
अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में उनके हक का सम्मान उन्हें देने की कवायद शुरू हुई। इसी के मद्देनजर कांग्रेस और लेफ्ट पार्टियों के तमाम विरोध के बावजूद संसद में उनकी तस्वीर लगाई गई। इसके बाद फिर कांग्रेस के शासन में उन्हें अंधकार में डालने की भरपूर कोशिश की गयी। अब जब फिर से केंद्र में भाजपा की सरकार है तो वापस वीर सावरकर को इतिहास में उनके अतुल्य योगदान को जगह देने की कोशिश की जा रही है। कांग्रेस खासकर गांधी परिवार सावरकर को गाली देने से भी पीछे नहीं हटी। सीएए पर विरोध के दौरान एक रैली में कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा था, “मेरा नाम राहुल गांधी है, राहुल सावरकर नहीं जो माफी मांगता रहूंगा”।
कांग्रेस के इसी रवैये के कारण अब वीर सावरकर की स्वीकार्यता सिर्फ जमीनी स्तर पर ही नहीं, बल्कि बौद्धिक स्तर पर भी बढ़ने लगी है। जैसे-जैसे कांग्रेस के नेताओं और उनके चाटुकार इतिहासकारों की पोल खुलती जा रही है वैसे-वैसे उनके द्वारा गर्त में धकेले गए स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में लोगों को पता चलता जा रहा है। महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश के लोगों के लिए सावरकर एक हीरो हैं और किसी को इसमें कोई शक नहीं है। सावरकर की अधिकतर रचनाएँ भी मराठी में ही हैं। पर बौद्धिक स्तर पर कांग्रेस के चाटुकारों ने उन्हें कभी सत्यापित नहीं होने दिया। परंतु पीएम मोदी की सरकार के कारण अब कई नए इतिहासकारों ने सावरकर पर शोध करना प्रारम्भ किया है और उन्हें इतिहास के पन्नों पर दोबारा अंकित करना शुरू किया है। इसी क्रम में वीर सावरकर पर दो किताबें भी आई जिसका मकसद सावरकर के बारे में कांग्रेस और उसके चाटुकारों द्वारा फैलाये गए झूठ से पर्दा उठाना था। पहली पुस्तक थी, Vaibhav Purandare द्वारा लिखी गयी Savarkar : The True Story of the Father of Hindutva और दूसरी Vikram Sampath द्वारा लिखी गयी Savarkar: Echoes from a Forgotten Past, 1883–1924.
यही नहीं जब 26 मई, 2014 को नरेंद्र मोदी ने शपथ ली थी तब, उसके दो दिन बाद ही वीर सावरकर की 131वीं जन्म तिथि पड़ती है। उस दौरान संसद भवन जाकर सावरकर के चित्र के सामने सिर झुका कर उन्हें श्रद्धांजलि देते हैं। इसी से स्पष्ट हो गया था कि अब सावरकर, सरदार पटेल और नेताजी जैसे स्वतन्त्रता सेनानी को उनकी खोई हुई विरासत वापस मिलेगी। कांग्रेस ने सावरकर जैसी मजबूत और देश भक्त शख्सियत पर लगातार हमले कर अपने ही पाँव पर कुल्हाड़ी मारने का काम किया है। जिस बात से कांग्रेस डरती आई है कि कोई गांधी और नेहरू के बराबर न खड़ा हो पाये, अब ठीक उसके विपरीत हो रहा है और सावरकर समानान्तर में खड़े दिखाई दे रहे हैं। वीर सावरकर को स्वतन्त्र भारत में वो स्वीकार्यता मिलनी शुरू हो गयी है जिसके वो हकदार थे, कांग्रेस इसी से डरी हुई है।