श्रीलंका के प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षा इन दिनों भारत के दौरे पर हैं। कल राजापक्षा और पीएम मोदी ने संयुक्त प्रेस वार्ता के दौरान दोनों देशों के मजबूत होते रिश्तों पर प्रकाश डाला। इसी के साथ पीएम मोदी ने यह भी उम्मीद जताई कि श्रीलंका अपने यहाँ के तमिल समुदाय की उम्मीदों को वादे अनुसार पूरा करेगा।
बता दें कि राजापक्षा बंधुओं के सत्ता में आने के बाद से श्रीलंका के तमिल समुदाय के लोगों के अधिकारों की रक्षा को लेकर भारत सरकार इस दक्षिण एशियाई देश पर लगातार दबाव बना रहा है। भारत सरकार और पीएम मोदी ने श्रीलंका को यह साफ संदेश भेज दिया है कि तमिल समुदाय के साथ राजपक्षा बंधुओं का उचित व्यवहार ही भारत-श्रीलंका रिश्तों को नया आयाम देने का रास्ता साफ करेगा।
वर्ष 2009 में यह महिंदा राजपक्षा के राज में ही हुआ था, जब श्रीलंकाई सेना ने अलगाववादी तमिल टाइगर्स को कुचल कर रख दिया था। तब गोटाबाया राजापक्षा श्रीलंका के रक्षा मंत्री थे, जो आज देश के राष्ट्रपति हैं। तब श्रीलंकाई सरकार पर तमिल लोगों के मानवाधिकारों के हनन के आरोप लगाए गए थे। तभी से ही श्रीलंकाई सरकार अपने आप को इस समुदाय के लोगों के अधिकारों की रक्षा के प्रति प्रतिबद्ध दिखती आयी है और भारत सरकार भी इसको लेकर श्रीलंका पर दबाव बनाती आई है। कल भी हमें यही देखने को मिला।
राजापक्षा बंधुओं और श्रीलंका के तमिल समुदाय के बीच कभी सब कुछ सही नहीं रहा है। वर्ष 2005 से वर्ष 2015 तक श्रीलंका में रही राजापक्षा सरकार पर तमिलों पर ज़ुल्म ढाने के आरोप लगे। इसी सरकार के राज में देश में 25 साल से जारी गृह युद्ध पर लगाम लगी, जिसके बाद से ही भारत सरकार वर्ष 1987 के इंडो-श्रीलंकन एकोर्ड के तहत तमिलों को उनके अधिकार देने का पक्ष करता आया है।
अभी हाल ही में श्रीलंका के नेशनल डे पर श्रीलंकाई सरकार के समारोह में तमिल भाषा में राष्ट्रगान नहीं गाया गया, जो कि हर साल गाया जाता रहा है। इसको भारतीय मीडिया में काफी जगह दी गयी और गोटाबाया राजापक्षा की आलोचना की गयी। इसको लेकर जब द हिन्दू की सुहाषिनी हैदर ने महिंदा राजापक्षा से सवाल पूछा तो जवाब आया “दुनियाभर में राष्ट्रगान एक ही भाषा में गाया जाता है। भारत को ही देख लीजिये, इतनी सारी भाषाएँ होने के बावजूद आप भी अपने राष्ट्रगान को एक ही भाषा में गाते हैं। हमें किसी के तमिल में राष्ट्रगान गाने से कोई समस्या नहीं है”।
भारत के लगभग 8 करोड़ तमिल लोग श्रीलंका के तमिल लोगों के साथ करीबी संबंध रखते हैं। यहां तक कि भारत में DMK जैसी पार्टियों के लिए तो श्रीलंका में तमिलों का मानवाधिकार चुनावी मुद्दा भी रहता है, जो बाद में केंद्र सरकार के माध्यम से श्रीलंका पर अपने तमिल लोगों के अधिकारों की रक्षा करने का दबाव बनाते हैं।
वर्ष 2013 में जब केंद्र की मनमोहन सिंह की सरकार कमजोर स्थिति में आ गई थी, तो UPA के दक्षिण में साथी DMK ने एक ही शर्त पर सरकार को समर्थन देने की बात कही थी, और वो शर्त थी 2009 में तमिलों के मानवाधिकारों के उल्लंघन को लेकर UN में श्रीलंका की भर्त्सना करना। इससे आप भारतीय राजनीति में श्रीलंका के तमिल मुद्दे की महत्वकांक्षा को समझ सकते हैं। मोदी सरकार ने भी श्रीलंकाई समकक्षों के साथ समय-समय पर तमिल लोगों का मुद्दा उठाकर भारत सरकार की इसी प्रथा को आगे बढ़ाया है।