इन दिनों देश में कोरोना का कहर चरम पर है, 2000 से ज्यादा केस कुछ ही दिनों में सामने आ गए. हालांकि सरकार, पुलिस प्रशासन बिल्कुल मुस्तैद है लेकिन कुछ लोग ऐसे हैं जिनकी वजह से हमें लग रहा है कि कोरोना पर नियंत्रण पाना मुश्किल हो जाएगा. राजस्थान में भी कुछ ऐसा ही देखने को मिला. लॉकडाउन का उल्लंघन करने वाले लोगों को पुलिस समझाने गई जहां उन पर हमला कर दिया गया.
दरअसल, अजमेर से कुछ दूरी पर स्थित सरवर जिले में ख्वाजा फख़रुद्दीन चिश्ती की दरगाह है, जहां हर वर्ष हजारों की संख्या में अकिदतमंद उर्स मनाने आते हैं। परंतु वुहान वायरस के कारण इस साल उर्स पर कई रोक लगाई गयी थी, और राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के कारण बाहर निकलने पर सख्त मनाही थी। इसके बावजूद कई लोग दरगाह पर उर्स के लिए जमा हुए।
जब पुलिस को पता चला, तो वे घटनास्थल पर पहुंच उन लोगों को समझने का प्रयास करने लगे। पर उल्टे उन्हीं पर अनुयाइयों ने हमला बोल दिया। पुलिस को अतिरिक्त सुरक्षाबलों की व्यवस्था करनी पड़ी और अंत में उन्होंने दरगाह के अनुयाइयों पर नियंत्रण पाकर ही दम लिया। करीब 5 लोगों को हिरासत में लिया गया है, जबकि 35 अन्य दंगाइयों को चिन्हित किया गया है।
ऐसी घटनाएं सिद्ध करती हैं कि कैसे तुष्टीकरण की राजनीति के कारण ऐसे असामाजिक तत्वों को इतना बढ़ावा मिला है, कि वे सुरक्षा व्यवस्था तक को ताक पर रखने की हिमाकत रखते हैं। अभी हाल ही में निज़ामुद्दीन क्षेत्र के मरकज़ भवन से कई लोग पकड़े गए हैं, जिन्हें वुहान वायरस से संक्रमित पाया गया है, और जिनके कारण देश में वुहान वायरस के मामलों में एक अप्रत्याशित उछाल आया है।
इतना ही नहीं, कर्नाटक में वुहान वायरस के चक्कर में जांच पड़ताल के लिए पहुंचे आशा स्वस्थ्य कर्मचारियों पर एक हिंसक भीड़ ने हमला कर दिया। जान बचाकर भागे कर्मचारियों में से एक ने बताया की ये हमला एक मस्जिद से आए निर्देश के अनुसार किया गया था।
https://twitter.com/SuchitShukla/status/1245637103796420614?s=20
इसी तरह बिहार में भी जब पुलिस तबलीगी जमात के सदस्यों को ढूंढने के लिए दौरा करने पहुंची, तो एक इलाके में उन पर गोलियां बरसाई गयी। वहीं गुजरात के अहमदाबाद शहर में जमात के सदस्यों को पकड़ने पहुंचे पुलिस कर्मचारियों पर पत्थरबाजी भी हुई, जिससे एक पुलिस कर्मचारी घायल हो गया।
इंदौर से तो इतना भयावह वीडियो सामने आया कि डॉक्टरों को शातिदूतों के मुहल्लों में जाने से भी अब डर लगेगा. दरअसल, इस्लामिक कट्टरपंथियों ने उस वक्त डॉक्टरों पर हमला बोल दिया जब डॉक्टरों की टीम उन्हें जांच के लिए पहुंची थी. खैर, डॉक्टर किसी तरह अपनी जान बचाकर भागे. इस घटना पर एक महिला डॉक्टर कहती हैं- ‘हम लोग पुलिस की टीम के साथ पहुंचे थे, तहसीलदार साहब भी साथ थे वरना हम अपनी जान नहीं बचा पाते’।
13n meanwhile in Indore, full stage 3: muslims stoned heath workers trying to protect them from Corona. https://t.co/ibYVggGUTj
— Abhijit Iyer-Mitra (@Iyervval) April 1, 2020
ऐसी स्थिति में सवाल उठना भी स्वाभाविक है, क्योंकि ये बात केवल सिर्फ राजस्थान तक ही सीमित नहीं रही। दिल्ली सरकार ने 13 मार्च को दिल्ली में खेल समारोहों पर प्रतिबंध लगा दिया था। लेकिन 13-15 मार्च के बीच 8000 लोगों के साथ निज़ामुद्दीन में जलसा कार्यक्रम आयोजित किया गया था। इसके बाद दिल्ली सरकार 16 मार्च को सभी सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक, धार्मिक और शैक्षणिक कार्यक्रमों को प्रतिबंधित करती है। लेकिन यही सरकार सीधे 29 मार्च को जागती है जब निजामुद्दीन से कोरोना के मरीज पूरे देश में फैल जाते हैं।
इस दौरान वहां जांच में सैकड़ों कोरोना संदिग्ध पाए गए. 204 लोगों को अलग-अलग अस्पतालों में भर्ती करवाया गया, जिनमें से 6 लोगों में रविवार को संक्रमण में पुष्टि हुई। इसके बाद 28 मार्च को एसीपी लाजपतनगर ने आयोजकों को फिर से नोटिस भेजा। रिपोर्ट में स्पष्ट लिखा है कि दिल्ली सरकार को भी जानकारी दी गई थी। इसके बावजूद दिल्ली सरकार ने कोई ठोस कदम नहीं उठाया। इसे घोर लापरवाही नहीं तो और क्या कहें?
एक ओर बिहार में तबलीगी जमात से संबन्धित लोगों को ढूँढने पहुंची पुलिस पर गोलियां बरसाई गई, तो वहीं दूसरी ओर गुजरात के अहमदाबाद शहर में जांच पड़ताल के लिए पहुंची पुलिस पर पत्थर बरसाए गए। इसके बाद कुछ ऐसे भी लोग हैं, जो इन दंगाइयों की भर्त्सना करने के बजाए उन्ही का समर्थन कर रहे हैं और सरकार के विरुद्ध झूठी खबरें फैला रहे हैं। मतलब प्राण जाये पर एजेंडा न जाये। सरकार को इन जिहादियों पर सख्त से सख्त कार्रवाई करनी चाहिए जिससे हमारे पुलिस व डॉक्टर सुरक्षित रहें.