कहते हैं जो दूसरों के लिए गड्ढा खोदते हैं, वो खुद ही कभी-कभी उसमें गिर जाते हैं। यही बात अब चीन पर भी लागू होती है। वुहान वायरस दुनिया भर में फैलाकर अब चीन बहुत जल्द ही अपने है लोगों को बेरोजगार करने जा रहा है। चीन में कार्यरत एप्पल के उत्पादन का एक बड़ा धड़ा अब भारत शिफ्ट होने जा रहा है, जिससे ना सिर्फ चीन को अरबों डॉलर का नुकसान होगा, अपितु 4.4 मिलियन चीनी बेरोजगार हो सकते हैं।
इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार एप्पल के उच्च अफसरों और भारत के सरकारी उच्चाधिकारियों के बीच हुई वार्तालाप के बाद ये सुनिश्चित हो चुका है कि एप्पल अपने उत्पादन का लगभग 20 प्रतिशत भाग भारत में शिफ्ट करेगा। इससे ना सिर्फ भारत में रोज़गार के अवसर बढ़ेंगे, बल्कि एप्पल का अनुमान है कि वो इस डील से पांच वर्ष में 40 अरब डॉलर का कारोबार करेगा, जिसका अधिकांश फायदा भारत को भी मिलेगा।
बता दें कि एप्पल के आई फोन का अधिकतर उत्पादन चीन में होता है। परन्तु वुहान वायरस के बाद बाकी बड़ी-बड़ी कम्पनियों के तहत एप्पल ने भी चीन से नाता तोड़ने का निर्णय लिया है, और वे भारत की ओर रुख कर रहे हैं। भारत सरकार के अफसरों के अनुसार यदि सब कुछ सही रहा, तो 2025 से पहले मोबाइल फोन एक्सपोर्ट से कुल 100 अरब डॉलर का लाभ मिलेगा। वहीं इसी निर्णय के कारण अब चीन में करीब 4.4 मिलियन कामगार बेरोजगार हो सकते हैं, क्योंकि इसी रिपोर्ट के अनुसार आई फोन इसे एक अस्थाई निर्णय के तौर पर नहीं ले रहा है।
एप्पल ने यह निर्णय भी बड़े सही समय पर लिया है। हाल ही में एक विशेष अध्यादेश पारित कराकर उत्तर प्रदेश सरकार ने कुछ अहम अधिनियम छोड़कर बाकी सारे श्रम कानूनों को 3 साल तक निष्क्रिय करने का निर्णय लिया है। इससे ना सिर्फ ज़्यादा से ज़्यादा निवेश संभव होगा, बल्कि किसी उद्योग को स्थापित होने वाले में लगाई जाने वाली अड़चनों का भी सफाया होगा।
यूपी के मुख्य सचिव आरके तिवारी के अनुसार, “यहां पर उद्देश्य ये है कि हमें उन कामगारों को काम दिलाना है, जो सबकुछ छोड़ छाड़कर यूपी वापस आए है, और ऐसे में उद्योग को थोड़ी फ्लेक्सिबिलिटी देनी ही पड़ेगी।”
बता दें कि कुल 38 श्रम कानूनों को निलंबित कर दिया गया है और केवल 4 कानून लागू होंगे जोकि भुगतान अधिनियम, 1936 के भुगतान की धारा 5, वर्कमैन मुआवजा अधिनियम, 1932, बंधुआ श्रम प्रणाली (उन्मूलन) अधिनियम, 1976 और भवन और अन्य निर्माण श्रमिक अधिनियम, 1996 हैं।
परन्तु बात यहीं पर नहीं रुकती। उत्तर प्रदेश सरकार ने जिस तरह से विदेशी कम्पनियों के निवेश के लिए संस्थागत सुधारों की झड़ी लगाई है, उससे पता चलता है कि एप्पल जैसी विदेशी कम्पनियों के लिए भारत कैसे एक जीता जागता स्वर्ग बन सकता है।
वौसे भी भारत को इसमें सबसे बड़ा फायदा हो सकता है, क्योंकि ये कंपनियां चीन के मुक़ाबले भारत को ही सबसे बढ़िया इनवेस्टमेंट डेस्टिनेशन मानती हैं। भारत के साथ-साथ वियतनाम और मेक्सिको जैसे देशों को भी बड़ा फायदा होने का अनुमान है।
Business Standard की एक रिपोर्ट के मुताबिक लगभग 1 हज़ार कंपनियां लगातार भारत सरकार के संपर्क में है और वो अपना व्यापार चीन से हटाकर भारत में स्थापित करना चाहती हैं। सरकारी सूत्रों के मुताबिक इन एक हज़ार कंपनियों में से लगभग 300 कंपनियां मोबाइल, मेडिकल और टेक्सटाइल जैसे क्षेत्रों से जुड़ी हैं।
सरकार ने पिछले साल आर्थिक मंदी से निपटने के लिए कई आर्थिक सुधारों को अंजाम दिया था, जिनमें सबसे बड़ा बदलाव corporate tax को कम करना था। सरकार ने इसे घटाकर 25.17 प्रतिशत कर दिया था, इसके साथ ही नए उत्पादकों के लिए यह corporate tax सिर्फ 17 प्रतिशत कर दिया गया था, जो कि दक्षिण पूर्व एशिया के देशों के मुक़ाबले सबसे कम है।
सरकार के इन आर्थिक सुधारों का ही परिणाम है कि अब बड़े पैमाने पर दक्षिण कोरियन, अमेरिकी और जापानी कंपनियां चीन को छोड़कर भारत आने को लेकर उत्साहित हैं। इकोनॉमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट की माने तो लगभग 200 अमेरिकी कंपनियां अपनी मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स को भारत शिफ्ट कर सकती हैं।
ऐसे में यह कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि कोरोना काल के बाद चीन को सभी देश बड़ा झटका देने की तैयारी में है और इसमें सबसे बड़ा फायदा भारत को होने की उम्मीद है। कुछ हफ्तों पहले जापान ने चीन से बाहर किसी अन्य देश में जाकर उत्पादन करने पर उन जापानी कंपनियों को 21.5 करोड़ डॉलर की सहायता का प्रस्ताव रखा था। भारत सरकार अब एप्पल जैसी बड़ी कंपनियों को भारत लाना चाहती है और अगर वह अपनी कोशिशों में सफल रहती है तो जल्द ही चीन की जगह भारत दुनिया का मैन्युफैक्चरिंग हब बन सकता है।