दुनिया तेजी से चीन का बहिष्कार करती जा रही है और यह कम्युनिस्ट देश लगातार लोकतान्त्रिक देशों के गुस्से का शिकार बनता जा रहा है। कोई ऐसा सेक्टर नहीं बचा है जिसे इन देशों द्वारा निशाना ना बनाया जा रहा हो। इसी कड़ी में अब चीन का स्पेस सेक्टर भी निशाने पर आ गया है। दुनियाभर में जारी चीन विरोधी संघर्ष के कारण अब चीन का महत्वाकांक्षी Global Navigation Satellite System यानि GNSS भी खतरे में पड़ गया है।
Reuters की रिपोर्ट के मुताबिक, स्वीडिश सरकार की एक कंपनी Swedish Space Corporation ने यह ऐलान किया है कि वह पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया में मौजूद अपने रणनीतिक तौर पर अहम स्पेस ट्रैकिंग स्टेशन को लेकर अब किसी चीनी कंपनी के साथ कोई करार नहीं करेगी। ऐसे में चीनी सरकार इस स्पेस ट्रैकिंग स्टेशन तक अपनी पहुंच खो देगी, जिससे उसके Navigational और Space exploration संबन्धित कार्यक्रमों पर नकारात्मक असर पड़ेगा।
बता दें कि वर्ष 2011 के बाद से ही Swedish Space Corporation ने बीजिंग के साथ एक करार किया था जिसके माध्यम से चीन को इस अहम space station का access मिला हुआ है। हालांकि, अब इस कंपनी के नए ऐलान के बाद मौजूदा करार खत्म होते ही चीन को भविष्य में होने वाले अनुबंधों से बाहर कर दिया जाएगा। Swedish Space Corporation ने यह नहीं बताया है कि कंपनी का चीन के साथ मौजूदा करार कब खत्म हो रहा है। Swedish Space Corporation ने एक बयान जारी कर कहा है कि “चीनी बाज़ार में बढ़ती असमंजसता की स्थिति में हमने अभी दुनिया के अन्य बाज़ारों पर ध्यान केन्द्रित करने का फैसला लिया है”।
भू-राजनीतिक विवाद और चीन की आक्रामक और विस्तारवादी नीतियों के कारण चीन के साथ सहयोग करना वैश्विक स्तर पर देशों और कंपनियों के लिए बड़ा मुश्किल काम होता जा रहा है। ऐसे में इन हालातों में चीन को इस महात्वूर्ण स्पेस centre का access देना किसी खतरे से खाली नहीं है। उदाहरण के लिए चीन पर Argentina में मौजूद अपने Space station का सैन्य इस्तेमाल करने, इसके जरिये जासूसी और डेटा चोरी करने के आरोप लगते रहे हैं।
स्वीडिश सरकार की कंपनी ने चीन को बाहर करने का फैसला लेकर दुनिया के सामने एक उदाहरण पेश किया है। स्पेस जैसे बेहद संवेदनशील क्षेत्र में चीन जैसे देश को बड़ी भूमिका नहीं दी जा सकती। अगर दुनियाभर की स्पेस कंपनियां चीन का बहिष्कार करना शुरू कर दें, तो इसके कारण चीनी स्पेस सेक्टर को बहुत बड़ा झटका लग सकता है, जो असल में विश्व के हित में है।
दुनियाभर में अलग-अलग इलाकों में मौजूद Space Tracking Stations स्पेस में ना सिर्फ स्पेसक्राफ्ट्स के साथ Communication स्थापित करने में सहायक होते हैं बल्कि वे चीन के Global Navigation Satellite System के तहत धरती की कक्षा में स्थापित किए जा रहे उपग्रहों की positioning के लिए भी बेहद महत्वपूर्ण है। इससे स्पष्ट है कि Swedish Space Corporation के इस कदम से चीन के स्पेस सेक्टर को बड़ा झटका लगना तय है।
चीन अपने नागरिकों और सैन्य इस्तेमाल के लिए अमेरिका के GPS की तर्ज पर अपना खुद का GNSS स्थापित करना चाहता है। अगर चीन ऐसे ही दुनियाभर के space stations का access खोता गया, तो चीन का यह प्रोजेक्ट कभी पूरा ही नहीं हो पाएगा और अमेरिका पर उसकी निर्भरता बढ़ जाएगी।
Swedish Space Corporation द्वारा उठाए गए इस बड़े कदम से चीन बेहद लाचार हो गया है। अमेरिका-चीन के बीच जारी विवाद के समय चीनी GNSS को झटका लगना चीन की सुरक्षा व्यवस्था पर गहरा प्रभाव डाल सकता है। अगर अमेरिका चीनी सेना के लिए GPS की सुविधा को प्रभावित करता है तो इसका चीनी सेना पर कितना नकारात्मक असर पड़ेगा, उसकी आप कल्पना ही कर सकते हैं। लोकतान्त्रिक देशों को ऐसे ही CCP के खिलाफ सख्त से सख्त कदम उठाने की आवश्यकता है। चीन को free world से पंगा लेने की कीमत चुकानी ही होगी।