हाल ही में दोहा में चल रहे अफगानी राजनीतिज्ञ और तालिबानी नेताओं के बीच शांति समझौते में भारत के विदेश मंत्री सुब्रह्मण्यम जयशंकर ने भी बतौर विशिष्ट अतिथि हिस्सा लिया। उन्हें यह निमंत्रण स्वयं कतर के उप प्रधानमंत्री और विदेश मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार संभालने वाले मोहम्मद बिन अब्दुलरहमान बिन कासिम अल थानी ने दिया था। इस शांति वार्ता में डॉ जयशंकर ने न केवल अफ़गानिस्तान को हरसंभव सहायता का विश्वास दिया, अपितु इस वार्ता में हिस्सा ले रहे उग्रवादी गुट तालिबान को भी कड़ा संदेश दिया।
वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिये इस बैठक में हिस्सा ले रहे डॉ एस जयशंकर ने सर्वप्रथम सभी का अभिवादन करते हुए भारत और अफ़गानिस्तान के बीच की सदियों पुरानी मित्रता और सांस्कृतिक संबंध की अहमियत के बारे में बताया। उनके व्याख्यान के अनुसार, “भारत की नीति अफ़गानिस्तान के लिए हमेशा से एक समान रही है। भारत चाहता है कि किसी भी शांति वार्ता का नेतृत्व अफ़गानिस्तान द्वारा हो, इसकी ज़िम्मेदारी अफ़गानिस्तान की हो, और इस शांति वार्ता की बागडोर अफ़गानिस्तान के हाथ में ही हो। इस शांति वार्ता में हिस्सा लेने वाले भागीदारों को अफ़गानिस्तान की अखंडता और संप्रभुता का सम्मान करना चाहिए और उन्हें अफ़गानिस्तान के लोकतान्त्रिक एवं इस्लाम बहुल गणराज्य के विकास की रक्षा की ज़िम्मेदारी भी लेनी होगी”।
Addressed the conference on Afghan peace negotiations at Doha today. Conveyed that the peace process must:
• Be Afghan-led, Afghan-owned and Afghan-controlled
• Respect national sovereignty and territorial integrity of Afghanistan
• Promote human rights and democracy pic.twitter.com/wFG3E2OVlJ
— Dr. S. Jaishankar (Modi Ka Parivar) (@DrSJaishankar) September 12, 2020
परंतु डॉ जयशंकर यहीं नहीं रुके। उन्होंने आगे ये भी कहा, “इस शांति वार्ता में ये सुनिश्चित करना होगा कि महिलाओं, अल्पसंख्यकों और समाज के पिछड़े वर्गों के अधिकारों की रक्षा हो और देश विदेश [अफ़गानिस्तान और उसके पड़ोसी] में व्याप्त हिंसा से निपटने के लिए एक स्पष्ट रणनीति का अनुसरण भी हो।
हमारे देशों के नागरिकों की बीच की मित्रता अफ़गानिस्तान के साथ हमारे समृद्ध इतिहास का परिचायक है। अफ़गानिस्तान का ऐसा कोई भाग नहीं है, जो हमारे 400 से अधिक विकासशील परियोजनाओं का हिस्सा न हो। मुझे विश्वास है कि हमारी सभ्यताओं के बीच के संबंध यूं ही फलते फूलते रहेंगे”।
• Ensure interest of minorities, women and the vulnerable
• Effectively address violence across the country
— Dr. S. Jaishankar (Modi Ka Parivar) (@DrSJaishankar) September 12, 2020
अब डॉ जयशंकर ने ये बातें यूं ही नहीं कही है वो एक बेहतरीन राजनयिक हैं, और किसी भी शब्दार्थ का उपयोग बहुत सावधानी से करते हैं। इसीलिए उन्होंने स्पष्ट किया कि अफ़ग़ान शांति प्रक्रिया में अफगानिस्तान की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान किया जाना चाहिए जैसा कि भारत हमेशा से चाहता है। उन्होंने ये भी इशारा किया कि भारत केवल सुझाव नहीं दे रहा बल्कि तालिबान को सख्त चेतवानी दे रहा है कि कायदे में रहोगे तो फ़ायदे में रहोगे। तालिबान आज भले ही शांति का राग अलाप रहा हो, परंतु कई वर्षों पहले वह एक दुर्दांत आतंकी गुट था, जिसने अफ़गानिस्तान से लेकर अमेरिका तक की नाक में दम कर रखा था। तालिबान के पाकिस्तान के साथ काफी गहरे संबंध हैं, और ऐसे में किसी को कोई हैरानी नहीं होगी अगर तालिबान अपनी ज़ुबान से मुकर जाये और एक बार फिर पुराने ढर्रे पर लौट आए। ऐसे में एस जयशंकर ने स्पष्ट संदेश दिया है कि
नई दिल्ली महज सुझाव नहीं दे रही है, बल्कि तालिबान को स्पष्ट रूप से कह रही है कि वह अल्पसंख्यकों पर हमला करने, महिलाओं को पीड़ा देने और युद्ध-ग्रस्त देश पर ‘शरिया कानून लागू’ करने की हिमाकत न करे।
बता दें कि अफगानिस्तान भारत के लिए कूटनीतिक और रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है, ऐसे में ‘इंट्रा-अफगान’शांति वार्ता से पहले भारत का ये रुख काफी महत्वपूर्ण हो जाता है। भारत और पाकिस्तान के बीच टकराव भारत की मध्य एशियाई महत्वाकांक्षाओं को प्रभावित करती है, ऐसे में ईरान और अफगानिस्तान का मार्ग ही भारत और मध्य एशिया के बीच व्यापार और आर्थिक संपर्क बढ़ाने के लिए एक मजबूत विकल्प है। वहीं पूर्वी लद्दाख में चल रहे तनाव के बीच ताजीकिस्तान जैसे मध्य एशियाई देश चीन-भारत के लिए एक ऐसा मंच बन गया जहाँ दोनों के बीच होड़ है। ऐसे में भारत को दुनिया के अन्य हिस्सों में अपनी पकड़ को मजबूत जल्द ही करना होगा।
भारत ने अपने बयान से ये भी स्पष्ट किया है कि जब पूरी दुनिया अफ़ग़ानिस्तान को लूटने के लिए प्रयासरत थी तब वो भारत ही था जो उसके विकास को एक नयी दिशा दे रहा था। वो भारत ही था जिसने अफगान संसद का पुनर्निर्माण किया, सड़कों, पावर ट्रांसमिशन लाइन्स, स्कूलों, पुस्तकालयों और यहाँ तक कि एक क्रिकेट स्टेडियम का निर्माण किया, इसके अलावा अफगान सेना को प्रशिक्षित करने के लिए, वहां के छात्रों छात्रवृत्ति का प्रबंध किया। इसके साथ ही 2001 के बाद से 3 बिलियन डॉलर की सहायता के साथ, भारत अफगानिस्तान का सबसे बड़ा दक्षिण एशियाई दानदाता बना हुआ है।
सच कहें तो डॉ एस जयशंकर ने अपने वीडियो कॉन्फ्रेंस से एक तीर से दो शिकार किए हैं। एक ओर उन्होंने अफ़गानिस्तान को भारत की मित्रता का भरोसा दिलाया, तो दूसरी ओर उन्होंने तालिबान को यह संदेश दिया कि वह अपनी मनमानी फिर से अफ़गानिस्तान में नहीं कर पाएगा, क्योंकि इस बार उस पर भारत की नज़र है।