भारत, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, ताइवान, इजरायल और पूरा यूरोप, ये सारे वो देश हैं जिन्होंने इस्लामिक कट्टरपंथ के खिलाफ लड़ाई में फ्रांस का साथ देने का ऐलान किया है। ये दुनियाभर के बड़े लोकतान्त्रिक देशों का ऐसा गठबंधन है जो एक तरफ चीन के बढ़ते खतरे से निपट रहा है, तो साथ ही दुनिया के लिए अन्य सबसे बड़े खतरे यानि इस्लामिक कट्टरपंथ के खिलाफ भी अब एकजुट हो रहा है। दुनियाभर की सारी लोकतान्त्रिक शक्तियां साथ मिलकर चीन के लिए जिस प्रकार मुश्किलें खड़ी कर रही हैं, उम्मीद है कि अब इस्लामिक कट्टरपंथ के खिलाफ भी इन शक्तियों का यह युद्ध निर्णायक साबित होगा!
इस्लामिक कट्टरपंथ के खिलाफ इस लड़ाई में पूरी दुनिया दो भागों में बंटी नज़र आती है। एक तरफ तुर्की, पाकिस्तान और ईरान जैसे देश हैं जो खुलकर फ्रांस का विरोध कर रहे हैं, तो वहीं दूसरी तरफ भारत और अमेरिका जैसे देश हैं जो बिना शब्दों को तोड़े-मरोड़े खुलकर इस्लामिक कट्टरपंथ की निंदा कर रहे हैं।
उदाहरण के लिए एर्दोगन, इमरान खान और महातिर मोहम्मद जैसे इस्लामिक जगत के नेताओं को ही ले लीजिये, जो कि आजकल फ्रांस के लोगों के खून के प्यासे दिखाई दे रहे हैं। एर्दोगन ने अपने हालिया बयान में ना सिर्फ Macron को दिमागी तौर पर पागल घोषित कर दिया, बल्कि मुस्लिम देशों से फ्रांस के उत्पाद का बहिष्कार करने का भी आह्वान किया। इसी प्रकार पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने भी अपने ट्वीट्स में Macron पर मुसलमानों को बांटने का आरोप लगा डाला और Macron को ऐसा करने से बचने की नसीहत दी। इसके बाद महातिर मोहम्मद तो सारी सीमाएं ही लांघ गए। अपने एक ट्वीट में मोहम्मद साहब ने यह कह डाला कि गुस्साए मुस्लिमों को फ्रांस के लोगों की हत्या करने का पूरा अधिकार है!
अपने बेहूदा tweets से मुस्लिम जगत के ये “नेता” यह स्पष्ट कर चुके हैं कि इनके नेतृत्व में इस्लामिक जगत शांत और समृद्ध तो रह ही नहीं सकता। इस्लामिक कट्टरपंथ दुनिया और लिबरल मूल्यों के लिए सबसे बड़ा खतरा है और इसिलिए अब दुनियाभर के लोकतान्त्रिक देश एक साथ आ रहे हैं, एर्दोगन या किसी इमरान खान से लड़ने के लिए नहीं, बल्कि इस्लामिक कट्टरपंथ के खिलाफ इस लड़ाई को अंजाम तक पहुंचाने के लिए।
आज भारत का दोस्त फ्रांस बेशक इस्लामिक कट्टरपंथियों के निशाने पर आया हुआ हो, लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं है कि आज सभी लोकतान्त्रिक देशों खासकर भारत में भी आतंकवाद का खतरा कोई कम नहीं है। आतंकवाद के खिलाफ भारत का रुख शुरू से ही सख्त रहा है और भारत दुनिया के उन चुनिन्दा देशों में से एक है जो UN के मंच पर आतंकवाद के मुद्दे को सबसे ज़्यादा तीव्रता के साथ उठाता है।
वर्ष 2016 में UN को संबोधित करते हुए पीएम मोदी ने कहा था “संयुक्त राष्ट्र का कोई मतलब नहीं रह जाएगा अगर ये वैश्विक संस्था इस बुरे अभिशाप से सही तरीके से नहीं निपटेगी। भारत संयुक्त राष्ट्र से ये बात वर्षों से कह रहा है कि आतंकवाद, आतंकवादी और जो आतंकवादियों की मदद कर रहा है उसकी परिभाषा तय करो।”
सच तो यह है कि आतंकवाद को कभी यूरोप या पश्चिमी दुनिया ने करीब से देखा ही नहीं है। 9/11 के बाद अमेरिका के रुख में बड़ा बदलाव ज़रूर देखने को मिला, लेकिन यूरोप कभी इस खतरे को गंभीरता से ले ही नहीं पाया और यह यूरोप की ढीली आप्रवासी नीति से साफ स्पष्ट भी होता है। हालांकि, अब धीरे-धीरे आतंकवाद और इस्लामिक कट्टरपंथ के खिलाफ दुनिया जागरूक हो रही है और आज इसी का नतीजा है कि दुनियाभर की सारी लोकतान्त्रिक शक्तियाँ एक साथ आई हैं। इस्लामिक कट्टरपंथ के खिलाफ अब इस बड़ी लड़ाई का आगाज़ हो चुका है और अगर सब सही रहा तो इसे सफल होने से कोई नहीं रोक सकता।