जब फ्रांस में शिक्षक सैमुएल पैटी की हत्या के पश्चात राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने कट्टरपंथी इस्लाम के विरुद्ध मोर्चा संभालने की बात कही, तो किसी को तनिक भी अंदाज़ा नहीं था कि वे किस हद तक इस लड़ाई में आगे जा सकते हैं। आज स्थिति यह है कि इमैनुएल मैक्रों अफ्रीका को अपनी रणभूमि बनाकर एक ही तीर से दो शिकार करने को तैयार है – कट्टरपंथी इस्लाम पर करार प्रहार और चीन की हेकड़ी पर वार।
अभी कुछ ही दिनों पहले एक बड़ी एयरस्ट्राइक में फ्रेंच आर्मी ने करीब 50 अलकायदा से जुड़े आतंकियों को माली देश में मार गिराया। आतंक विरोधी ऑपरेशन बरखाने का प्रमुख उद्देश्य अफ्रीका में दक्षिणी सहारा क्षेत्र में व्याप्त अलकायदा और इस्लामिक स्टेट का सर्वनाश करना है। जिस प्रकार से कट्टरपंथी इस्लाम अफ्रीका में त्राहिमाम मचा रहा है, उस हिसाब से फ्रांस की गतिविधियां बढ़ना अफ्रीका में कट्टरपंथी इस्लाम के विरुद्ध उसके अभियान की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
फ्रांस ऐसा इसलिए कर रहा है क्योंकि अफ्रीका और अरब क्षेत्र में उत्पन्न हुई पलायन की समस्या से फ्रांस भी अछूता नहीं है। कई अफ्रीकी विद्यार्थी फ्रांस में उच्च शिक्षा पूरी करते हैं, और फ्रांस में पढ़ने वाले 46 प्रतिशत अंतर्राष्ट्रीय विद्यार्थी अफ्रीकी देशों से ही आते हैं।
लेकिन इस पलायन संकट का एक दुष्परिणाम भी फ्रांस को झेलना पड़ा है, और वो है कट्टरपंथी इस्लाम में वृद्धि। आव्रजन नियम में सख्ती न होने के कारण लाखों की संख्या में शरणार्थियों ने बेरोक-टोक फ्रांस समेत कई यूरोपीय देशों में प्रवेश किया है, जिसमें सबसे अधिक संख्या कट्टरपंथी मुसलमानों की है। जिस प्रकार से कट्टरपंथी इस्लाम को अल्पसंख्यक तुष्टीकरण के नाम पर कुछ यूरोपीय राजनेताओं ने बढ़ावा देने का प्रयास किया, उसी का परिणाम है कि आज फ्रांस समेत कई यूरोपीय देशों को इस्लामिक आतंकवाद की समस्या से दो चार होना पड़ रहा है।
Read More: Leftist media stood with Islamists and rallied against France. Now, Macron is furious
ऐसे में फ्रांस ने जिस प्रकार से अफ्रीका को अपना आधार बनाते हुए इस्लामिक आतंकवाद के विरुद्ध मोर्चा खोला है, उससे स्पष्ट पता चलता है कि वह आतंकवाद को जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए कितना प्रतिबद्ध है। औपनिवेशिक काल के घावों को भरने के लिए इमैनुएल मैक्रों को यह समय सबसे उपयुक्त लगा है, और इसी दिशा में वह अफ्रीका को कट्टरपंथी इस्लाम से लड़ने योग्य बनाना चाहते हैं। इस कूटनीतिक अभियान की शुरुआत तभी हो गई जब फ्रांस ने हाल ही में सेनेगल और बेनिन जैसे देशों को उनके अहम ऐतिहासिक वस्तुएं अपने पेरिस के संग्रहालय से वापिस भेजी।
लेकिन ये कदापि मत समझिएगा कि फ्रांस केवल अफ्रीका में कट्टरपंथी इस्लाम को मिटाने के लिए आया है। वह अफ्रीका को चीन के जाल से भी मुक्त कराने के लिए कमर कस चुका है। कर्ज के मायाजाल में जिस प्रकार से चीन ने कई अफ्रीकी देशों को फँसाने का प्रयास किया, उससे क्रोधित कई देश जैसे केन्या, इथिओपिया, नाइजीरिया इत्यादि को फ्रांस की ओर आकर्षित किया, जिसने कई यहां इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स के जरिए चीन के BRI अभियान को आगे बढ़ने देने से रोका है।
Read More: ‘We reject Islamo-leftism coming from US,’ France dumps American ‘liberals’ after Paris beheading
यूके जैसे देशों के साथ प्रतिस्पर्धा करने के अलावा फ्रांस अपने इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं के जरिए चीन और तुर्की के भी पर काटने में लगा हुआ है, जो कैसे भी करके अफ्रीका पर कब्जा जमाना चाहते हैं। उदाहरण के लिए जहां इमैनुएल मैक्रों ने एक ओर रवांडा जैसे देशों के साथ अपने बिगड़ते रिश्ते सुधारे, तो वहीं पश्चिमी अफ्रीका में उपयोग में लाए जाने वाले फ्रेंच मुद्रा को भी वापिस लिया।
अफ्रीका के साथ अपने संबंध मजबूत करने की दिशा में फ्रांस ने अफ्रीका को दिए जाने वाली सहायता को 20 बिलियन यूरो तक बढ़ा दिया है। जिस प्रकार से चीन और कट्टरपंथी इस्लाम को बढ़ावा देने वाले देश अफ्रीका की स्वायत्ता के साथ साथ फ्रांस के हितों को भी खतरे में डाला है, उसे हल्के में न लेते हुए फ्रांस ने दोनों ही चुनौतियों को एक साथ निपटाने का बीड़ा उठा लिया है।