ट्रम्प सरकार ने ताइवान को लेकर एक बड़ा नीतिगत बदलाव किया है। ट्रम्प सरकार ने यह निर्णय लिया है कि वे अमेरिका की ओर से, ताइवान अमेरिका संबंधों में, स्वयं अपने देश पर लगाई गई सभी रुकावटों को हटा देंगे। इस फैसले के बाद अमेरिका के प्रमुख राजदूत, प्रशासनिक अधिकारी आसानी से ताइवान के समकक्षों के साथ मुलाकात कर सकेंगे। यह फैसला, बाइडन प्रशासन में अमेरिका चीन संबंधों के सुधरने के रास्ते में एक बड़ी रुकावट बन सकता है।
ऐसा नहीं है कि अमेरिका ने सीधे ताइवान के स्वतंत्र अस्तित्व को स्वीकार कर लिया है, ना ही अमेरिका ने अपनी One China Policy को बदला है, लेकिन ऐसा कुछ न करते हुए भी US ने चीन को बहुत बड़ा झटका दिया है। 1979 के पूर्व अमेरिका ताइवान का खुले तौर पर समर्थन करता था, किंतु इसके बाद उसने चीनी कम्युनिस्ट पार्टी को संतुष्ट करने के लिए धीरे धीरे ताइवान के साथ अपने राजनयिक रिश्ते काफी हद तक खत्म कर लिए। अब ट्रम्प सरकार ने इसी नीति को आधिकारिक तौर पर बदल दिया है।
अपने आधिकारिक बयान में विदेश मंत्रालय ने कहा “ताइवान संयुक्त राज्य अमेरिका का एक जीवंत लोकतंत्र और विश्वसनीय साझेदार है, और फिर भी कई दशकों तक विदेश विभाग ने ताइवान के समकक्षों के साथ हमारे राजनयिकों, सेवादारों और अन्य अधिकारियों की बातचीत को विनियमित करने के लिए जटिल आंतरिक प्रतिबंध बनाए हैं। बीजिंग में कम्युनिस्ट शासन को खुश करने की कोशिश में संयुक्त राज्य सरकार ने एकतरफा ये कार्रवाई की। अब और नहीं।”
अपने इस वक्तव्य से अमेरिकी प्रशासन ने आधिकारिक तौर पर यह स्वीकार कर लिया है कि CCP के तुष्टिकरण के लिए, ताइवान से सम्बंध शिथिल करना उनकी विदेश नीति की गलती थी, जो आगे नहीं दोहराई जाएगी। ऐसा करके ट्रम्प सरकार ने यह सुनिश्चित कर लिया है कि आने वाले सालों में, ताइवान पुनः, चीन अमेरिका संबंधों का मुख्य मुद्दा बन जाएगा। अब बाइडन ताइवान मुद्दे पर निकट भविष्य में केवल आगे बढ़ने का निर्णय ही कर सकते हैं, उनके लिए ताइवान मुद्दों को ठंडे बस्ते में डालना बहुत मुश्किल होगा।
महत्वपूर्ण यह है कि बाइडन लगातार चीन के साथ ट्रेड वॉर खत्म करने की बात कह चुके हैं, यदि ऐसा हुआ तो अमेरिका चीन को उससे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने का मौका दे देगा। अभी अमेरिका से ट्रेड वॉर तथा अमेरिका प्रतिबंधों के कारण, चीन को उच्च तकनीक हासिल करने में कठिनाई हो रही है। इसका असर उसके टेलीकॉम सेक्टर पर साफ दिख रहा है। साथ ही चीन के 5G नेटवर्क का विरोध करने हेतु, ट्रम्प ने जो अभियान चलाया उसके कारण यूरोप, जापान, ऑस्ट्रेलिया आदि में हुआवे का विरोध हुआ। लेकिन बाइडन के आने के बाद ट्रेड वॉर खत्म होने के साथ ही चीन से रिश्ते सामान्य होने की संभावना बढ़ रही थी, यदि ऐसा होता तो चीन को पुनः लोकतांत्रिक देशों में अपनी चालबाजी चलाने का मौका मिल जाता।
लेकिन तिब्बत और दलाई लामा के मुद्दे पर चीन विरोधी कार्रवाई के बाद ताइवान के संबंध में अमेरिका की ओर से लागू प्रतिबंधों को हटाकर, ट्रम्प ने बाइडन के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी हैं। आंतरिक राजनीति में भले बाइडन ट्रम्पवाद को बदलने का काम करें लेकिन विदेश नीति के मोर्चे पर जो बदलाव ट्रम्प सरकार में हो गए हैं, उन्हें बदलना बाइडन के लिए नामुमकिन है। ट्रम्प वैसे भी बाइडन को चीन का सरपरस्त बताते रहे हैं, अतः बाइडन के लिए यह सम्भव नहीं होगा कि वे ट्रम्प द्वारा लागू नीतियों को बदल सके। हम कह सकते हैं कि यह विदेश नीति में ट्रम्पवाद की जीत है।