ब्रिटिश प्रधानमंत्री बॉरिस जॉनसन 25 अप्रैल को भारत आने वाले हैं। उनका यह दौरा वर्ष 2019 के ब्रिटिश चुनाव के बाद पहला ऐसा दौरा होने वाला है जब जॉनसन यूरोप के बाहर किसी देश की यात्रा करेंगे और द्विपक्षीय वार्ता में सम्मिलित होंगे। जॉनसन का भारत आगमन कई मामलों में महत्वपूर्ण होने वाला है क्योंकि इस दौरे में भारत और ब्रिटेन के बीच ‘रोडमैप 2030’ को लेकर कई महत्वपूर्ण समझौते होने की गुंजाइश है।
इस दौरे में भारत और ब्रिटेन के बीच हेल्थकेयर, क्लाइमेट चेंज, व्यापार के अतिरिक्त सामरिक साझेदारी बढ़ाने और रक्षा सहयोग विकसित करने को लेकर समझौता हो सकता है। सबसे महत्वपूर्ण यह होगा कि भारत और ब्रिटेन, हिन्द प्रशांत क्षेत्र में अगले एक दशक की साझा रणनीति को लेकर रोडमैप तैयार करेंगे। साथ ही ब्रिटेन के यूरोपीय यूनियन से बाहर निकलने के बाद, दोनों देशों के बीच व्यापारिक गतिविधियों कैसे आगे बढ़ेंगी, इसे लेकर भी बातचीत होने वाली है।
बता दें कि ब्रिटेन को भारत के यूरोपीय बाजार का प्रवेश द्वार माना जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि यूरोप में संचालित होने वाली अधिकांश आर्थिक गतिविधियों के लिए भारतीय कंपनियों का केंद्रस्थल ब्रिटेन ही है। लगभग हर बड़ी भारतीय कंपनी अपने ब्रिटिश कार्यालय के द्वारा ही यूरोपीय व्यापार संचालित करती है। किंतु EU से अलगाव के बाद, इन समीकरणों को नए सिरे से साधना होगा।
इसमें एक महत्वपूर्ण पहलू यह भी है कि फ्रांस पिछले कुछ वर्षों से यह प्रयास कर रहा है कि वह भारतीय कंपनियों के लिए ब्रिटेन का विकल्प बने। ऐसे में यह दौरा भारतीय हितों के लिए ही नहीं, बल्कि ब्रिटिश हितों के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।
इस समय जब कोविड अपनी पूरी शक्ति से वापस आया है तथा दुनियाभर में वैक्सीनेशन की प्रक्रिया शुरू हो गई है, भारत और ब्रिटेन का आपसी सहयोग और भी महत्वपूर्ण हो जाता है। भारत की वैक्सीन मैत्री को दुनियाभर में सराहा जा रहा है, जिससे चीन ही नहीं पश्चिमी देशों को भी जलन हो रही है। इसके चलते उन्होंने वैक्सीन उत्पादन हेतु आवश्यक कच्चे माल की सप्लाई पर प्रतिबंध लगा दिया है। किंतु ब्रिटिश प्रधानमंत्री जॉनसन का यह दौरा इस गतिरोध को खत्म करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
सबसे बड़ी बात है कि भारत और ब्रिटेन, दोनों लोकतांत्रिक शक्तियां, एक साझा शत्रु, चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के रवैये से परेशान हैं। एक ओर चीन, लद्दाख में भारत को अनावश्यक रूप से उकसा चुका है, दूसरी ओर उसने हाँग-काँग को लेकर ब्रिटेन से किए अपने समझौते का उल्लंघन किया है। हांगकांग में नया सुरक्षा कानून लादकर चीन ने ब्रिटिश दबदबे को गहरा आघात पहुंचाया। इसके अतिरिक्त ब्रिटेन में चीनी जासूसी तंत्र के खुलासे और उसके विरुद्ध ब्रिटिश कार्रवाई के कारण भी दोनों देशों के संबंध में खटास आ चुकी है।
अब ब्रिटेन के पास एक ही रास्ता है कि वह दक्षिण चीन सागर एवं हिन्द महासागर में और अधिक सक्रिय भूमिका निभाकर, स्वयं को पूर्वी एशिया और हिन्द महासागर के शक्ति समीकरण में प्रासंगिक बनाए रखे। इससे चीन पर दबाव भी बनेगा। इस कार्य में भारत उसकी मदद कर सकता है।
वहीं रक्षा क्षेत्र की बात करें तो भारत और ब्रिटेन फाइटर प्लेन से लेकर साइबर सुरक्षा तक तमाम पहलुओं पर सहयोग कर रहे हैं। ब्रिटेन फाइटर प्लेन के लिए स्वदेशी इंजन के निर्माण में भारत का सहयोग कर सकता है। यदि ब्रिटेन ऐसा करता है, तो यह एक ऐसा प्रस्ताव होगा, जो अब तक फ्रांसीसी,रूसी या अमेरिकी; किसी भी डिफेन्स सेक्टर ने भी नहीं दिया है।
भारत और ब्रिटेन के बीच सहयोग के लिए असीमित संभावनाएं हैं ऐसे में जॉनसन का यह दौरा, भारत ब्रिटेन के संबंधों के लिहाज से तो महत्वपूर्ण है ही, साथ ही यह पूरे हिन्द प्रशांत की राजनीति पर दूरगामी प्रभाव डालेगा।