जब देश में कोरोना संक्रमण त्रासदी चरम पर था और हजारों की संख्या में लोग रोज मर रहे थे। तब देश के वामपंथी पत्रकारों ने कोरोना संक्रमण की भयावह स्थिति में भी फेक न्यूज फैला कर, अपनी रोटी सेंकने में लगे हुए थे। ठीक ऐसा ही एक मामला है प्रयागराज का। प्रयागराज के गंगा घाट पर शवों को दफनाने का मामला, इलाहाबाद उच्च न्यायालय तक जा पहुंचा था जिस पर कोर्ट ने अपनी सुनवाई करते हुए, याचिका को आधारहीन बताकर उसे रद्द कर दिया।
दरअसल, प्रयागराज के गंगा घाट पर लोगों के शव दफनाए गए थे। इस बात के पीछे का पूरा सच जाने बिना, मुख्यधारा की मीडिया ने उत्तर प्रदेश सरकार को कोसना शुरू कर दिया था। इसके बाद दैनिक जागरण ने अपनी एक रिपोर्ट में सच को उजागर करते हुए छापा था कि, घाट के किनारे रह रहे लोगों की यह परंपरा है कि, मृत्यु के बाद शवों को दफनाया जाता है। दैनिक जागरण ने प्रयागराज अर्धकुंभ मेले के दौरान प्रकाशित की गई अपनी रिपोर्ट का हवाला दिया था, जिसमें लिखा था, कि कोरोना से पहले भी इस घाट पर लोग शवों को दफनाते हुए आ रहे है।
और पढ़ें-सच्चाई का हुआ खुलासा – प्रयागराज में दफन शव कोरोना से मरने वाले लोगों के नहीं
जब इस मामले ने तूल पकड़ा तो इस मामले को लेकर एक याचिकाकर्ता ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में “पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन” यानी जन हित के लिए एक याचिका दायर कर दी।
याचिका पर सुनवाई करते हुए इलाहाबाद उच्च न्यायालय के चीफ जस्टिस संजय यादव ने याचिकाकर्ता वकील प्रणवेश से पूछा कि,”इसमें उनका व्यक्तिगत योगदान क्या रहा है? और क्या उन्होंने खुद खोदकर शवों का अंतिम संस्कार किया है?”
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने आगे कहा, “यदि आप एक लोकहितैषी व्यक्ति हैं, तो हमें बताएं कि आपने कितने शवों की पहचान की है? क्या आपने उन शवों का सम्मानजनक दाह संस्कार किया है? यह वहां रह रहें लोगों की परंपराएं हैं, रीति-रिवाज हैं और विभिन्न समुदायों के लोग गंगा के तट पर निवास करते हैं।”
इस पर याचिकाकर्ता ने कहा कि, “ हमारे पास इसका कोई रिकॉर्ड नहीं है, पर मैनें लोगों को बिजली के माध्यम से शवों को दफनाने के लिए प्रोत्साहित किया था।”
याचिकाकर्ता की दलील के जवाब में कोर्ट ने कहा कि, “पहले आप जाकर तथ्यों का पता लगाएं, जमीनी हकीकत क्या है इसके बारे में आपको कुछ भी नहीं पता, ऐसे में हम आपकी याचिका पर अपना समय बर्बाद नहीं करेंगे।”
वकील प्रणवेश ने केंद्र और राज्यों को मृतकों की गरिमा और अधिकारों की रक्षा के लिए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग द्वारा जारी की गई एडवाइजरी का हवाला देते हुए कहा कि, धार्मिक संस्कारों के अनुसार दाह संस्कार करना और गंगा नदी के किनारे दफन किए गए शवों का निपटान करना राज्य की जिम्मेदारी है।
इस पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा कि, “राज्य ऐसा क्यों करे? अगर किसी परिवार में किसी की मृत्यु होती है तो क्या दाह संस्कार करना राज्य की जिम्मेदारी है?”
अंततः इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने याचिका को रद्द कर दिया और कहा कि, “यह जनहित याचिका नहीं, बल्कि प्रचार हित याचिका है।”